अल गूना 1: अरब सिनेमा की पहचान गढ़ता एक फिल्म फेस्टिवल

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कुछ ही साल पहले शुरु हुए मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल को आज अरब जगत का सबसे प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल माना जाता है। ये फेस्टिवल इस मायने में बेहद खास है कि इसके ज़रिए अरब सिनेमा ने विश्व सिनेमा के फलक पर एक बड़ी पहचान कायम की है। इन फिल्मों के झरोखे से ही आज के अरब जगत की बदलती तस्वीर भी दुनिया के सामने आ रही है। इस साल 14 से 22 अक्टूबर तक पांचवें अल गूना फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हुआ, जिसमें विशेष अतिथि के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म समीक्षक अजित राय को भी आमंत्रित किया गया था। फेस्टिवल के अनुभव और अरब सिनेमा का उनका विश्लेषण एक सीरीज़ के ज़रिए यहां पेश है उन्ही की लेखनी से। इस बार सीरीज़ का भाग 1

मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई अरब देशों की फिल्मों में स्त्रियों की बिलकुल नई छवियां उभरती है। ये छवियां मुस्लिम देशों में औरतों की बनी बनाई छवियों से विलकुल अलग है। वेनिस फिल्म फेस्टिवल में तीन अवार्ड पाने वाली मिस्र के सबसे चर्चित फिल्मकार मोहम्मद दियाब की नई फिल्म  अमीरा, मिस्र के ही उमर अल जोहरी की फेदर्स, लेबनान की महिला फिल्मकार मौनिया अकल की कोस्टा ब्रावा, लेबनान और इली डागर की  द सी अहेड तथा  इस साल कान फिल्म फेस्टिवल के मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई मोरक्को के नाबिल आयुच की  कासाब्लांका बीट्स जैसी फिल्मों का उदाहरण दिया जा सकता है। इन फिल्मों में आजाद ख्याल औरतों की ऐसी बनती हुई दुनिया है जो अपनी पहचान और सपनों को लेकर सचेत हैं और उनपर मजबूती से टिकी हुई है। इन फिल्मों की पटकथा में पर्यावरण की तरह राजनीति की परतें है। इनमें अरब दुनिया की आज की सच्चाई है जिसकी ओर बाहरवालों का ध्यान कम ही जाता है। इन फिल्मों पर विस्तार से चर्चा से पहले जानते हैं कि आखिर कैसे शुरु हुआ ये फिल्म फेस्टिवल और कैसे कम समय में ही कायम कर ली इसने एक खास पहचान।

Film: Amira

इस तरह शुरू हुआ अल गूना फिल्म फेस्टिवल

तुर्की के पत्रकार नीलूफर देमिर की खींची हुई तस्वीर ने मिस्र के एक बड़े और पुराने ईसाई उद्योगपति नागीब साविरिस  और उनके छोटे भाई समीह साविरिस को इतना विचलित कर दिया कि उन्होंने शरणार्थियों के लिए एक टापू खरीदने का मन बनाया। वह तस्वीर सीरिया के युद्ध से भागकर अपनी मां और भाई के साथ यूरोप के रास्ते कनाडा जाते हुए भूमध्यसागर में डूबकर 2 सितंबर 2015 को मर गए तीन साल के अलान कुर्दी नामक बच्चे की थी। उसे तुर्की के ब्रोदुम समुद्र तट पर मृत पड़ा हुआ देखा गया था। दिल दहलाने वाली यह तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हुई थी। साविरिस बंधु किन्ही कारणों से टापू तो नहीं खरीद पाए,  पर 22 सितंबर 2017 को  मिस्र की राजधानी काहिरा से 445 किलोमीटर दूर रेड सी के किनारे बसाए गए अपने निजी शहर अल गूना में अरब दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण फिल्म फेस्टिवल जरूर शुरू कर किया। उनका मानना था कि धीरे-धीरे सिनेमा अरब दुनिया को बदल देगा।

Bushra Rozza

अरब सिनेमा में मिस्र के मोहम्मद दियाब की फिल्म काहिरा 678  से मशहूर हुई अभिनेत्री बुशरा रोजा ने जब उन्हें अल गूना फिल्म फेस्टिवल का आइडिया दिया तो  वे तुरंत मान गए। तब किसी को भी इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि महज पांच  साल में हीं यह अरब दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोह बन जाएगा। इसकी वजह है फिल्मों की गुणवत्ता, मानवीय सरोकार, विचारों की आजादी और मार्केटिंग। बुशरा रोजा अगले साल अमिताभ बच्चन को सपरिवार आमंत्रित कर उनकी फिल्मों पर यहां एक विशेष कार्यक्रम करना चाहती है। मिस्र में अमिताभ बच्चन के प्रति पागलपन की हद तक दीवानगी है। वे इसे अरब दुनिया का कान फिल्म फेस्टिवल बनाना चाहती है जहां सिनेमा केवल रेड कारपेट और पार्टियों में सिमटकर न रह जाए। सिनेमा के माध्यम से दुनिया की गंभीर समस्याओं पर चर्चा होनी चाहिए। अल गूना फिल्म फेस्टिवल के कारण अरब और इस्लामी दुनिया के प्रति लोगों का नजरिया बदला है।

          मिस्र में दो चीज़ें सबसे महत्वपूर्ण है, गीज़ा के  पिरामिड और नील नदी। लेकिन सिनेमा की दुनिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण नाम है – ओमर शरीफ। मिस्र के महान अभिनेता ओमर शरीफ ने हॉलीवुड में डेविड लीन की दो बड़ी  फिल्मों में काम किया है। लारेंस आफ अरेबिया  (1962) और  डा जिवागो (1965) जैसी फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं निभाने के कारण दुनिया भर में ओमर शरीफ को याद किया जाता है।

अल गूना फिल्म फेस्टिवल में भारत

अरब सिनेमा पर बात करने से पहले थोड़ी चर्चा मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल में भारत की उपस्थिति की। इस बार करीब 12 लोगों का भारतीय प्रतिनिधिमंडल यहां आया हुआ है जिसमें न्यूयार्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर असीम छाबड़ा से लेकर जूरी में शामिल बॉलीवुड के प्रसिद्ध फिल्मकार कबीर खान शामिल हैं। एन एफ डी सी की पूर्व प्रमुख नीना लाठ गुप्ता और ओसियान की इंदु श्रीकांत भी क्रमशः स्प्रिंग बोर्ड और नेटपैक जूरी की सदस्य हैं जबकि रमण चावला मुख्य प्रोग्रामर है।


इस बार भारत की दो फिल्में यहां दिखाई जा रही है। आदित्य विक्रम दासगुप्ता की बांग्ला फिल्म वंस अपान ए टाइम इन कलकत्ता  मुख्य प्रतियोगिता खंड में है। दिल्ली के प्रदूषण पर कान फिल्म समारोह के ऑफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा चुकी राहुल जैन की डाक्यूमेंट्री इनविजिबल डीमंस  का यहां विशेष प्रदर्शन किया जा रहा है।  इन दोनों भारतीय फिल्मों को यहां के दर्शक बहुत पसंद कर रहे हैं।


अल गूना फिल्म फेस्टिवल के निर्देशक इंतिशाल अल तिमिमी कहते हैं कि उन्हें भारत से बेइंतहा मोहब्बत है। मिस्र और भारत के बीच करीब पांच हजार सालों से अनोखा रिश्ता रहा है। वे केरल अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की जूरी में भी रह चुके हैं। अडूर गोपालकृष्णन, शाजी एन करूण, मणि कौल से उनकी गहरी दोस्ती रही है।


         राहुल जैन की फिल्म इनविजिबल डीमंस  में दिल्ली और देश में जानलेवा प्रदूषण की समस्या की तह में जाने की कोशिश की गई है। ऐसी भयानक दिल्ली पहली बार सिनेमा में दिखाई गई है। एक ओर भारत को तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाला देश कहा जाता है तो दूसरी ओर राजधानी दिल्ली के चारों ओर कचरा कबाड़ गंदगी और बीमारियों का नरक फैलता जा रहा है। दिल्ली में प्रदूषण के कारण अस्सी प्रतिशत लोगों के फेफड़े हमेशा के लिए खराब हो जा रहे हैं। यमुना नदी गंदे काले नाले में तब्दील हो गई है। एक ओर थोड़ी सी बारिश से हर जगह पानी भर जाता है तो दूसरी ओर पीने के पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। प्लास्टिक का कचरा खाकर मरती गाएं हैं तो कूड़े के ढेर पर बच्चे भटक रहे हैं।

Film: Once upon A Time In Calcutta


आदित्य विक्रम सेनगुप्ता की फिल्म वंस अपान ए टाइम इन कलकत्ता  में एक साथ कई कहानियां हैं जिनमें हर कोई जिंदगी की जंग लड़ रहा है। पति से असंतुष्ट और अलग रह रही अधेड़ अभिनेत्री, चिट फंड कंपनी का एजेंट और उसका मालिक, उजाड़ थियेटर में मृत्यु का इंतजार करता पूर्व अभिनेता, भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ता एक इंजीनियर और अंत में सारी लड़ाइयां हारते लोग। फिल्म एक कालखंड की त्रासदी को पूरी कलात्मकता से पेश करती है। 

(भाग 2 में: मोहम्मद दिआब, ‘अमीरा ‘और अरब सिनेमा)

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