नीरज की याद: लिखे जो खत तुझे…

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Alok Sharma

आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
हिंदी के प्रसिद्ध कवि और फिल्म गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’ के शब्दों में, जिनकी आज जयंती है… यही उनका परिचय है। फिल्मी गीतों में हिंदी भाषा की कोमलता में श्रृंगार की अभिव्यक्ति के साथ-साथ अध्यात्म की गहराई को खूबसूरती से रचने के लिए नीरज को हमेशा याद किया जाएगा। 2018 में उनका दिल्ली में निधन हो गया था… आज वो जीवित होते तो 97 बरस के हुए होते। नीरज के जन्मदिन पर उन्हे याद कर रहे हैं आलोक शर्मा, जो फिल्म-टीवी-एनीमेशन से बतौर लेखक, निर्देशक और निर्माता जुड़े हुए हैं।

S D Burman and Neeraj, Pic courtesy: Film History Pics (Twitter)

दिल आज शायर है गीत में यदि आप देव आनंद की भयंकर नकली मूँछों से विचलित न हों और गीत सुनते समय यदि ध्यान सिर्फ गीत के बोलों पर बना रहे तो ये गीत आम गीतों से अलग और काव्यात्मक नज़र आता है। इसी फिल्म का मेरा मन तेरा प्यासा सुनिये, बिलकुल अलग तबीयत के ये दोनों गीत एक शानदार शायराना वज़न रखते हैं। कहीं भी काव्य ताल और लय पर भारी नहीं पड़ता न कहीं संगीत काव्य पर अपना वज़न डालता महसूस होता है। ये चमत्कार है गोपाल दास ‘नीरज’ की कलम का। सचिन देव बर्मन जैसे कद्दावर संगीतकार भी इस कवित्त का पूरा सम्मान करते नज़र आते हैं। ज्ञात रहे, ये वो सचिन देव बर्मन हैं, जिन्होंने साहिर के साथ काम करना सिर्फ इसलिए बंद कर दिया था कि साहिर के बोल अपनी जगह खड़े हो जाते थे और संगीत को उसके आजू-बाजू के रास्ते से निकालना सचिन देव बर्मन को गवारा नहीं था। पं प्रदीप के लिये भी दादा बर्मन का कहना था कि ये अपने गीत अपनी धुन पर गाते हुए लिखते हैं, मुझे यहाँ मेरे संगीत के लिये स्पेस नहीं दिखती।

ज़माना आर्टिस्टिक एथिक्स का था, सचिन देव बर्मन ने न कह दिया तो न कह दिया। अब जब शायर और संगीतकार का बँटवारा होना था, दोस्तों गुरुदत्त और आनंद भाईयों ने समझौता कर लिया। आनंद सचिन देव बर्मन ले गये, गुरुदत्त साहिर के साथ हो लिये। जब हम दोनों के लिये साहिर की ज़रूरत आन पड़ी, आनंद बंधुओं ने जयदेव से हाथ मिलाया जो सचिन देव बर्मन के असिस्टेंट थे। बरबादियों का सोग मनाना फज़ूल था बस संगीत की नैया अपने रास्ते बहती रही। सचिन देव बर्मन के साथ मजरूह साब जमे रहे मगर बीच में एक समय ऐसा आया जब इन्होंने एक साथ लम्बे समय तक काम नहीं किया। शैलेंद्र साहब का देहांत 1966 में हो चुका था, आनंद भाईयों के लिए उनका लिखा आखिरी गीत अगले साल ज्वेल थीफ़ में नज़र आया। अब तलाश शुरु हुई ऐसे गीतकार की जिसके कवित्त में दमखम भी पूरा हो और वो सिनेमाई संगीत के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके।

Dev Anand and Neeraj, Pic courtesy: kanppily.com

कवि सम्मेलनों में अपनी कविताओं को गा कर सुनाने की प्रथा को हरिवंश राय बच्चन ने एक ऐसे मुकाम पर पहुँचा दिया था कि कविता अब परफॉर्मिंग आर्ट बन चुकी थी। अच्छा कवि होना अब काफी नहीं था, आपकी कवितायें गुनगुनाई जा सकें तो आप मंच पर महफिल लूट सकते थे। आयोजक ऐसे स्टार कवियों के सामने लाइन लगा कर खड़े रहते थे। एक कवि सम्मेलन के लिए आयोजकों ने बस बुक करवाई, बस कवियों से खचाखच भरी हुई थी। कानपुर के युवा कवि नीरज जब बस में चढ़े तो उनके लिए सीट ही नहीं बची थी, बच्चन ने हँस कर कहा – “मेरी गोद में बैठ जाओ”। कवियों में मज़ाक चल निकला बच्चन ने नीरज को गोद ले लिया है। नीरज की कविताओं ने इसे सच भी साबित कर दिया कि वो बच्चन के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। इन कविताओं में लय थी, ताल थी और काव्य क्षमता में भी ये कवितायें वज़नदार थी। आखिर कितनी देर सिनेमा नीरज से दूर रह पाता।

Pic courtesy: Film History Pics (Twitter)

अपनी ओजस्वी कविताओं में देशज शब्दों के वज़न के साथ गहरी बातें कह देने वाले शैलेंद्र की कमी सभी को महसूस हो रही थी। मगर उतने गहरे उतर कर आसानी से अपनी बात कहना और गुनगुनाने लायक तरीके से कह देने वाले कवि बनाये नहीं जाते, पैदा होते हैं। नीरज इस दौर में कवि सम्मेलनों के सुपरस्टार बन कर उभर चुके थे। नीरज की कविता – “वो हम न थे, वो तुम न थे” फिल्म चा चा चा में नज़र आ चुकी थी। नई उमर की नई फसल, दुनिया जैसी कुछ फिल्मों में उनके गीत नज़र तो आये मगर तहलका मचा कन्यादान के लिखे जो ख़त तुझे से। म्युज़िकल जायण्ट्स शंकर-जयकिशन के संगीत के सामने ये बोल कहीं उन्नीस नहीं थे। ये गीतकार शैलेंद्र तो नहीं था, मगर इसका अपना एक सॉफ्ट पावर था जो सबकी नज़र में आ चुका था।राज कपूर, देव आनंद, मनोज कुमार सब को नीरज की कलम का साथ चाहिये था और ये उन्हें बखूबी मिला। सबसे ज़्यादा शायद देव आनंद को, जिन्हें अंततः वो गीतकार मिल गया था जिसके साथ सचिन देव बर्मन के पहाड़ी संगीत का सही संगम हो सकता था। अपने कविता संकलन ‘नीरज की पाती’ में उनका पत्र प्रेम, नीरज के फिल्मी गीतों में भी झाँक जाता। फिल्मों में पत्र व्यवहार वाले बेहद कोमल गीत नीरज की कलम से निकले – लिखे जो ख़त तुझे और फूलों के रंग से,दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज़ पाती (प्रेम पुजारी) जैसे गीत आज भी अमर हैं। मगर नीरज की सॉफ्टनेस के पीछे गहरी फिलॉसफ़ी भी नज़रअंदाज़ करना नामुमकिन है।

मेरा नाम जोकर के लिए राज कपूर पहुँचे नीरज के पास और उनसे एक ऐसे गीत की माँग रखी जिसे तीन भागों में बाँटा जा सके, जिसमे सर्कस के साथ जीवन दर्शन भी हो। नीरज का मानना था जोकर और गवैये दो अलग तरह के लोग हैं, जोकर को संस्कृत नाटकों के विदूषक की तरह ब्लैंक वर्स में अपनी बात रखनी चाहिये। एक बात जो गा कर सुनाई जा रही हो, शेक्सपियर से प्रभावित नीरज ने वो गीत लिखा जिसने आज तक लोगों को याद है – ऐ भाई ज़रा देख के चलो

इस गीत के बोल –
कोड़ा जो भूख है, कोड़ा जो पैसा है, कोड़ा जो किस्मत है,
तरह तरह नाच कर दिखाना यहाँ पड़ता है
बारबार रोना और गाना यहाँ पड़ता है
          – बहुत जल्द नीरज जी के फिल्मी सफ़र में सच होने जा रहे थे। देव आनंद की अगली फिल्म छुपा रुस्तम के लिए नीरज जी गीत लिख रहे थे। देव साहब एक जगह अड़ गये कि उन्हें फिल्म के लिए एक खटमल गीत चाहिये। किशोर कुमार अपने गुरु सचिन देव बर्मन के क्लासिक गीत धीरे से जाना बगियन में की पैरडी करना चाहते थे, आइडिया देव आनंद को भा गया। नीरज जैसे स्वाभिमानी कवि को खटमल पर गीत लिखना अपनी कविता और कला का दर्जा कमतर करना लगा। बहुत समझाने के बाद भी जब क्लाइंट ज़िद पर अड़े रहे तो नीरज ने खटमल गीत लिखा और फिल्मी गीतों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

बीस साल बाद जब नीरज ने फिर कुछ फिल्मों के गीत लिखे तो वो अपनी शर्तों पर लिखे और बेहद चुनिंदा गीत लिखे।

समय ने जब भी अंधेरों से दोस्ती की है,
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है,
सुबूत हैं मेरे घर में धुएँ के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने खुदकुशी की है।

गोपाल दास नीरज

…आज उनका जन्मदिन है।

Neeraj with Javed Akhtar, Pic courtesy: Amar Ujala

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