Tagged: Anurag Kashyap

हिन्दी सिनेमा में ब्राह्मणवाद और दलित मुक्ति के संदर्भ 2

भारतीय समाज में निहित जटिलताओं को कहीं ज्यादा सूक्ष्मता से चित्रित उन फ़िल्मकारों ने किया है जिन्होंने यथार्थवादी परंपरा से अपने को जोड़ा है। 1970 के लगभग भारतीय सिनेमा में यथार्थवाद की जो नयी लहर उभरी उसने दलित समाज की समस्याओं को भी अपना विषय बनाया। श्याम बेनेगल ने आरंभ से ही इस ओर ध्यान दिया है। ‘अंकुर’ (1973), ‘मंथन’ (1976) और ‘समर’ (1998) में उन्होंने दलित समस्या को अपनी फ़िल्मों का विषय बनाया है।

इजिप्ट डायरी-1: अनुराग कश्यप जीनियस डायरेक्टर, ऐक्टर को बिना सिखाए सब कुछ सिखा देते हैं- राहुल भट्ट

राहुल भट्ट ने अल गूना फिल्म फेस्टिवल के बारे में कहा कि इजरायल-हमास युद्ध के साये में यह फेस्टिवल मानवता के लिए हो रहा है। हम कलाकारों के लिए सबसे पहले मानवता है। मशहूर रूसी रंग चिंतक स्तानिस्लावस्की ने अपनी किताब ‘ऐन ऐक्टर प्रिपेयर्स’ में लिखा है कि एक अभिनेता को सबसे पहले एक अच्छा इंसान होना चाहिए।

सिनेमा एक खूबसूरत कविता की तरह: 29वां कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव

5 दिसंबर की शाम को कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का उद्घाटन हुआ था, जिसमें अभिनेता सलमान खान और अनिल कपूर ने बॉलीवुड के बनने में ‘बांग्लाभाषी फिल्मकारों के योगदान’ को शिद्दत से याद किया। निर्देशक विमल राय, हृषीकेश मुखर्जी, संगीतकार सलिल चौधरी और सचिन देव बर्मन ने कैसे और कितनी मेहनत से बॉलीवुड को तैयार किया, सलमान खान, अनिल कपूर और महेश भट्ट ने पूरी कहानी सुनाई।