‘उद्देश्यपूर्ण फिल्मों’ की अगली कड़ी है ‘द केरल स्टोरी’
साहित्य की ही तरह सिनेमा भी समाज का दर्पण है, वैसे कई मायनों में समाज भी सिनेमा का दर्पण है… तो एक दूसरे का अक्स दिखाने और उस पर असर डालने के इस रिश्ते में एक किरदार की तरह नए ज़माने का सिनेमा नए अवतार लेता रहता है। इसी की नई कड़ी है फिल्म ‘द केरल स्टोरी’। इस फिल्म पर एक समीक्षात्मक टिप्पणी पेश कर रहे हैं आलोकनंदन शर्मा। आलोकनंदन पटना स्थित एक पत्रकार-लेखक-चिंतक हैं, जो अपने व्यापक अनुभवों और गहन अध्ययन के बूते समाज, इतिहास और जीवन-दर्शन को समग्रता के साथ-साथ व्यावहारिकता की सूक्ष्मता के स्तर पर भी आंकलन की क्षमता रखते हैं। फिल्मों को लेकर उनका बेहद खास और एक बिलकुल अलग नज़रिया रहा है।
यदि सच्ची कहानी पर आधारित तमगे को हटा दिया जाये तो ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म ‘द कश्मीर फाइल’ की श्रेणी की ही अगली कड़ी है। इन्हें ‘उद्देश्यपूर्ण फिल्म’ कहा जा सकता है। इनका मकसद सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से किसी उद्देश्य को पूरा करने में सहायक उत्प्रेरक की भूमिका निभाना है। यानि इस तरह की फिल्मों का टारगेट स्पष्ट होता है। चलचित्रों के साथ-साथ कहानी और संवाद भी उसी निर्धारित उद्देश्य विशेष की पूर्ति करने में लगे होते हैं। आमतौर पर ऐसी फिल्में दर्शकों को किसी एक पक्ष में लामबंद करने की नीयत से बनाई जाती है, इसलिए इनके खिलाफ भी जबरदस्त लामबंदी होती है, जैसा कि ‘द केरल स्टोरी’ के साथ हो रही है और विगत में ‘द कश्मीर फाइल’ के साथ हो चुकी है।
सेंसर बोर्ड द्वारा 10 कट के बाद आखिरकार फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ सिनेमाघरों तक पहुंच ही गई। इन कटों में केरल के मुख्यमंत्री का पूर्व में लिया गया एक साक्षात्कार भी शामिल है। यह फिल्म के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह और निर्देशक सुदीप्तों सेन सहित पूरी टीम के लिए यकीकन एक बड़ी कामयाबी है क्योंकि इस फिल्म को रिलीज होने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया गया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने से इंकार कर दिया था।
केरल की मुख्य राजनीतिक पार्टियां सीपीएम और कांग्रेस इस फिल्म की लगातार मुखालफत कर रही है। पत्रकार कुर्बान अली ने तो विधिवत इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। कांग्रेस के कद्दावर नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और निजाम पाशा ने इस मामले को जस्टिस के एम जोसेफ और बी वी नागरत्ना की बेंच के सामने रखा था। कुल मिलाकर इस फिल्म को दर्शकों तक पहुंचने से रोकने की हर मुमकिन कोशिश की गई थी। इतनी सारे बाधाओं को पार करने के बाद यदि यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंच गई है तो निश्चित तौर पर पूरी टीम बधाई की पात्र है। अब निर्णय दर्शकों के हाथ में है, वे फिल्म को देखते हैं या फिर रिजेक्ट करते हैं।
इस फिल्म के बारे में प्रचारित किया गया था कि यह सच्ची घटना पर आधारित है, केरल जैसे तटीय राज्य से 32 हजार लड़कियों को गायब करके उन्हें आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के हत्यारों के बीच उनकी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए फेंक दिया गया। कुछ इस्लामिक सगंठनों ने फिल्म की टीम को चुनौती दी थी कि वे उन 32 हजार लड़कियो के नामों की सूची सबके सामने रखें। इसके बाद से टीम के लोग बैकफुट पर आ गये थे। हालांकि फिल्म में पीड़ित परिवार के सदस्यों का इंटरव्यू दिखाने का दावा किया गया है। यह कितना सत्य है पड़ताल का विषय है।
कुशल कार्यप्रणाली की वजह से केरल की नर्सों की मांग देश और दुनियाभर के अस्पतालों में है। केरल में नर्स ट्रेनिंग कॉलेजों का जाल बिछा हुआ है। इस पेशे को बहुत ही सम्मान से देखा जाता है और वहां की लड़कियां स्वेच्छा से इस पेशे को अपनाने में गर्व महसूस करती है, क्योंकि इस पेशे को वह पवित्र मानती हैं।
इस फिल्म की कहानी ऐसी ही चार लड़कियों की है जो नर्स बनने के इरादे से एक नर्सिग कॉलेज में दाखिला लेती हैं और उन्हें एक साथ रहने का मौका मिलता है। एक लड़की बाकी लड़कियों को गुमराह करती हैं, ब्रेन वाश करती है और उन्हें अपने पारंपरिक धार्मिक रास्ते से भटकाती है और इसके लिए वह व्यवस्थित तरीके से कुचक्र भी रचती है।
हालांकि ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि क्या बहकाई जाने वाली तीन लड़कियों की सांस्कृतिक और पारिवारिक जड़ें इतनी कमजोर हैं कि किसी के कहने पर वे किधर भी फिसल सकती हैं? या फिर उनकी जेहनी हालत इतनी कमजोर है कि नर्स के रूप मे अपना करियर बनाने की पढ़ाई करने के दौरान अपने उद्देश्य से भटक जाती हैं ? और क्या केरल की शैक्षणिक संस्थाओं में किसी भी रूप में इस तरह की गतिविधियां चल रही है, जबकि केरल को पूर्ण साक्षरता वाला राज्य होने का गौरव प्राप्त है?
फिल्म में शालिनी से फातिमा बनी अदा शर्मा अपने अभिनय से चौंकाती हैं। उसके चेहरे पर वेदना, खौफ और आक्रोश की लकीरों को दर्शक शिद्दत से महसूस करते हैं। उनका पुरकशिश अभिनय लुभाता भी है और क्षोम भी पैदा करता है। जो किरदार उन्हें दिया गया है उसे जीवंत करने में उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। योगिता बिहानी और सिद्धि इदनानी भी इस फिल्म के जरिये अपने अभिनय करियर में एक मजबूत लकीर खींचती दिख रही हैं।
फिल्म की कहानी सूर्यपाल सिंह, सुदीप्तो सेन और विपुल अमृतलाल शाह ने मिलकर लिखी है।
पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से भारत में लव जेहाद जैसे शब्द को अलग-अलग संचार माध्यमों के जरिये अलग-अलग तरीके डिफाइन किया जा रहा है, और यह समझाया जा रहा है कि लव जेहाद में एक तरफ मुसलमान लड़के होतें है तो दूसरी तरफ गैर मुस्लिम लड़कियां। अब इस काम में फिल्म तकनीक के इस्तेमाल की भी शुरुआत हो चुकी है। ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फिल्म मनोवैज्ञानिक रूप से दर्शकों पर यह दबाव बनाती है कि वह अपना स्टैंड तय कर लें, कि वे किस तरफ खड़े हैं और इसी में फिल्म की कामयाबी का राज छुपा हुआ है। इस कामयाबी को बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के साथ जोड़कर देखना एक भूल होगी।
फिल्म क्यों देखे : अदा शर्मा, योगिता बिहानी और सिद्धि इदनानी के भावपूर्ण अभिनय के लिए।
(डिस्क्लेमर: NDFF का किसी समीक्षा या लेखकीय टिप्पणी से सहमत होना, न होना आवश्यक नहीं। ये समीक्षक-लेखक का मौलिक दृष्टिकोण और कलात्मक मूल्यांकन है।)