Author: ndff

प्यार किया तो डरना क्या…: मुग़ल ए आज़म 5

‘मुग़ले आज़म’ में न्याय का प्रतीक तराजू साझा संस्कृति के प्रतीकों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। फ़िल्म में इस तराजू को किले की खुली जगह पर रखा बताया जाता है और उसका आकार इतना बड़ा होता है कि अकबर भी उसके सामने बौने नज़र आते हैं। इस तरह फ़िल्मकार शायद यह बताना चाहता है कि इंसाफ का यह तराजू किसी राजा की हैसियत से बहुत बड़ा है। अकबर की नज़र में इंसाफ की कीमत आदमी की निजी सत्ता से कहीं ज्यादा है।

लोक कलाओं की दुर्दशा: ‘द लिपस्टिक बॉय’ के बहाने

उदय शंकर,केलुचरण महापात्र, राम गोपाल,बिरजू महाराज,गोपी कृष्ण जैसे नामचीन कलाकारों ने लंबे संघर्ष के बाद कला जगत में अपनी प्रतिष्ठाजनक जगह बना ली। पर पुरुष नर्तक होने के कारण उन्हें जिस तरह समाज, जाति और परिवार की उपेक्षा,तिरस्कार और प्रताड़ना सहनी पड़ी उस के बारे में मुंह पर ताला ही लगा कर रखा गया। इन्हें जातिगत और लिंग आधारित अपमान दोनों झेलने पड़े।

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‘आदमी और औरत’: तपन सिन्हा की नजर से

सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ सबसे प्रभावशाली बंगाली फ़िल्मकारो की चौकड़ी बनाने वाले तपन सिन्हा ने यूं तो हिन्दी में कम फ़िल्में बनाई लेकिन उनकी कई फ़िल्मों का हिन्दी रूपांतरण अक्सर हुआ। हिन्दी में “एक डॉक्टर की मौत” उनकी यादगार फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म भी ऐसी ही बिंबों से भरी, एक कहानी है, जो ऊपरी तौर पर सीधी-साधी होकर भी अनेक जटिल सवाल  हमारे सामने  उठाती है।

Celebrating Diversity and Inclusivity in Cinema: 5th Edition of CIFFI

Delhi Metropolitan Education Media School Noida with Deakin University, Melbourne, Australia and the University of Nottingham, China Campus inaugurated a three-day international film festival CIFFI (Cineaste International Film Festival of India) on 7th Feb 2024.

एक दक्ष अभिनेत्री, जिनका नाम था श्रीला मजुमदार

श्रीला मजुमदार असल में निर्देशक मृणाल सेन की खोज थीं। वह कलकत्ता के बंगबासी कॉलेज से अभी ग्रेजुएट होकर निकली ही थीं और बांग्ला नाटक के रिहर्सल वगैरह में हिस्सा ले रही थी तभी निर्देशक मृणाल सेन की नज़र एक रिहर्सल के दौरान श्रीला मजुमदार पर पड़ी ‌और सांवली रंग की श्रीला को मृणाल सेन ने अपनी अगली फिल्म के लिए चुन लिया।

10वां कोलकाता अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव

बीते दशकों में सिनेमा में बाल फिल्मों का ज़बरदस्त ढंग से लोप होता गया है… । बच्चों की फिल्मों के नाम का कोई जॉनरा नहीं बचा है… ऐसे में कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का लगातार आयोजन एक सुखद समाचार है।

हमारे समय की ‘झीनी बीनी चदरिया’

फिल्म ‘झीनी बीनी चदरिया’ कहीं भी बनारस की गंगा आरती, सांड, पान, क्लीशे बन चुका मणिकर्णिका जैसी और अन्य टूरिस्टी चीज़ों में नहीं फंसती. वो माइक पर हो रही घोषणाओं, निर्माण कार्य और गली कूचों के जरिए बनारस को बनाए रखती है और एक ऐसी चादर बीनती है जिसके पार हम धुंधला सा बनारस देख पाते हैं.

G. ARAVINDAN and his classic film KUMMATTY

Govindan Aravindan was one of India’s greatest filmmakers and a leading light of the New Indian Malayalam cinema of the 1970s and ‘80s. This piece talks about his classic film Kummatty which was restored to its original quality in the year 2021.

इजिप्ट डायरी 7: फ्रांस में रंगभेद और चीन की युवा पीढ़ी का असंतोष

फ्रांस के अश्वेत फिल्मकार लाड्ज ली ने अपनी पिछली चर्चित फिल्म ‘ल मिजरेबल्स’ की तरह हीं ‘ल इनडिजायरेबल्स’ में गोरे लोगों द्वारा काले लोगों के प्रति लगातार होनेवाले रंगभेद, अन्याय और भ्रष्टाचार को विषय बनाया है। जबकि चीन के वैंग बिंग की लंबी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘यूथ’ ( स्प्रिंग)  बताती है कि जिन युवा कामगारों के मेहनत के बल पर आज चीन मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में सबसे आगे हैं, उनके बेहतर जीवन की कोई योजना उसके पास नहीं है।

इजिप्ट डायरी 6: रोमन पोलांस्की की नई फिल्म ‘द पैलेस’: अश्लील अमीरी का वीभत्स मजाक

महान फिल्मकार नब्बे वर्षीय रोमन पोलांस्की की नई फिल्म ‘द पैलेस’ दुनिया भर में फैली अश्लील अमीरी का वीभत्स मजाक उड़ाती है। यह एक ब्लैक कॉमेडी है जो दर्शकों को हंसाते-हंसाते अमीर लोगों की जिंदगी के अंधेरों में ले जाती है। इसी 2 सितंबर 2023 को 80वें वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था।