Author: ndff

सिनेमा में साहित्य के ‘ढाई आखर’ की सार्थक वापसी

दर्शकों को खींचने के लिए अनेकोनेक हथकंड्डों को आजमाती फिल्मों की आपाधापी में ‘ढाई आखर’ एक ऐसे सिनेमा की दरकार  है, जिसकी गुंजाइश तो हमेशा रही है पर हर बार उसे अगर जिंदा रहना है तो एक ऐसे दर्शक वर्ग का सहयोग भी चाहिए।

दुर्गा का प्रयाण

दुर्गा को आप बंगाली, या भारतीय सिनेमा का चरित्र ही नहीं कह सकते। यह विश्व सिनेमा की धरोहर है। जैसे लियोनार्दो दा विंची की मोनालिसा।

नहीं रहीं ‘पथेर‌ पांचाली’ की दुर्गा

उमा दासगुप्ता ने दुर्गा के किरदार को ‘पथेर पांचाली’ में ऐसा जीवंत किया कि आज यह फिल्म दुनिया की एक ‘आइकोनिक मूवी’ बन गई है। ‘पथेर पांचाली’ को संसार की सौ बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया जात है।

उत्पलेंदु चक्रवर्ती: ‘चोख’ और ‘देबशिशु’ का फिल्मकार

उत्पलेंदु चक्रवर्ती अपनी फिल्मों के ज़रिए अक्सर हाशिये पर पड़े और उत्पीड़ितों के संघर्षों पर फोकस करते थे और उनके काम में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता झलकती थी। 

Film Paar

गौतम घोष की ‘पार’: जीवन के भीतर पार पाने का संघर्ष

फिल्म का शीर्षक ’पार’ है,  भाववादी दर्शनों में मनुष्य सांसारिकता से छुट्टी पाकर जीवन नैया ’पार’ करना चाहता है। यहां श्रमिक दंपत्ति इस जीवन के भीतर सुकून की तलाश के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें भवसागर पार नहीं करनी है। एक नदी पार करनी है ताकि अपना घर वापस लौट सकें, जहां भले भूख,गरीबी है मगर इस तरह अनामिकता, अजनबियत, छल –प्रपंच नहीं है। यद्यपि शोषण वहां भी है मगर वहां कम से कम रात को सोने को झोपड़ी तो है!

पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’

‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ एक कलात्मक फिल्म है जो दर्शकों का मनोरंजन करती है। उनके विचारों को छूती है। उन्हें समृद्ध करती है। यह आनेवाले फिल्मकारों के लिए नये प्रतिमान गढ़ती है।

प्रेम के बरक्स आज के यूरोप का अंधेरा दिखाती फिल्म ‘फालेन लीव्स’: कान फेस्टिवल 2023 (4)

फिनलैंड जैसे अमीर देश में गरीबी के आखिरी पायदान पर जी रहे अंसा और होलप्पा की इस मार्मिक प्रेम कहानी के माध्यम से अकी कौरिस्माकी ने आधुनिक यूरोपीय पूंजीवादी सभ्यता का अंधेरा दिखाया है जिस तरफ हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता।

मुग़ल ए आज़म 6: अनारकली को माफ़ी बानज़रिए अकबर

एक बादशाह के अपने देश से और अपने सिद्धांतों से प्यार की कीमत एक मामूली कनीज़ को अपनी जिंदगी देकर चुकानी पड़ती है। वह जिन उसूलों की बात करता है उनमें बराबरी की बात शामिल नहीं है। यह गैरबराबरी नस्ली अहंकार और और निरंकुश सत्ता के मद से उपजी है। यह गैरबराबरी किसी धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी सत्ता को भी लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख सकती। यह बात जितनी अकबर के समय के लिए सत्य है, उससे भी कहीं ज्यादा आज के लिए सच है।

एक इंडो-फ्रेंच लव स्टोरी का फ्रांस में ‘निर्वाण’

कान फिल्म फेस्टिवल के ठीक बाद फ्रांस में एक ऐसा अनोखा फिल्म फेस्टिवल होता है जो भारतीय संस्कृति और भारतीय सिनेमा को समर्पित है। दक्षिणी फ्रांस के समुद्री शहर सेंट ट्रोपे में भारतीय संस्कृति का निर्वाण फिल्म फेस्टिवल होना बहुत मायने रखता है।

गिरीश कर्नाड:  मिथक से यथार्थ तक का सफर

 गिरीश कर्नाड को संगीत अकादमी , साहित्य अकादमी , कन्नड़ साहित्य अकादमी के पुरस्कार के साथ ज्ञानपीठ सम्मान मिला था । वे पद्मश्री , पदमविभूषण से विभूषित किये गये थे लेकिन यह उनका वास्तविक परिचय नही है । वास्तविक परिचय यह है उन्होने नाटकों के क्षेत्र में मौलिक काम किया । पुराण और लोकमिथकों की प्रस्तुति नये संदर्भो में की । बादल सरकार , विजय तेंदुलकर , उत्पल दत्त जैसे साथी नाटककारों से मिल कर रंगमंच की भारतीय छबि बनाई । उनके साथ इस पीढ़ी का अंत हो रहा है ।