‘मदर इंडिया’ का महान फिल्मकार महबूब ख़ान

अपने तीस साल के फिल्मी करियर में महबूब खान ने  हॉलीवुड की तरह ही भव्य और तकनीकी  स्तर पर  श्रेष्ठ फिल्में बनाने की  कोशिश की। ‘आन देश’ की पहली  टेक्नीकलर फिल्म थी। ‘मदर इंडिया’ को  उनकी ऑल टाइम ग्रेट फिल्म कहा जाता  है और इसे क्लासिक फिल्म का दर्जा प्राप्त है।

उत्तम कुमार: एक सितारा जो आज तक चमकता है

उत्तम कुमार बंगाल के लोगों के चहेते थे, जिन्होंने उन्हें महानायक का खिताब दिया था। बंगाल में कोई और अभिनेता नहीं हुआ, जिसने तीन दशक में उत्तम कुमार जितना कद हासिल किया हो। उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था।

‘चंपारण मटन’: ‘मटन’ की ख्वाहिश, ‘चंपारण’ का प्रतिरोध

फिल्म ‘चंपारण मटन’ की सफलता की सार्थकता सिर्फ ऑस्कर नाम से जुड़े चकाचौंध वाले मुकाम या उससे जुड़े तमाम आंकड़ों भर में नहीं है.. ‘चंपारण मटन’ की कामयाबी इस फिल्म को देखकर ही समझा जा सकता है। ये वो सिनेमा है जो हमें आज चाहिए।

अपने बूते खड़ा होना सिखाती ‘लव ऑल’

हिंदी सिनेमा में बैडमिंटन को आधार बना ‘साइना’ नाम से बायोपिक भी बन चुकी है।  लेकिन वह फ़िल्म कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई थी। परन्तु ‘लव ऑल’ उसी कमी को पूरा करती है और एक देखने लायक फिल्म बन जाती है।

ओएमजी2: सेंसर के 27 कट और ए सर्टिफिकेट पर सवाल क्यों?

फिल्म ‘ओ माई गॉड 2’ को सेक्स एजुकेशन पर बनी एक बेहतरीन फिल्म करार दिया जा रहा है और साथ ही फिल्म सेंसर बोर्ड द्वारा 27 कट के बाद दिये गये ‘ए’ सर्टिफिकेट पर भी आपत्ति  जताई जा रही है। अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह फिल्म वाकई में एक एजुकेशनल फिल्म है, और यदि यह एजुकेशनल फिल्म है तो यह किन लोगों को एजुकेट करती है, और क्यों करती है?

गुलज़ार की फिल्मों का ज़िंदगीनामा

एक शायर और गीतकार के तौर पर गुलज़ार आज भी सक्रिय हैं, लोकप्रिय हैं और प्रासंगिक हैं। बल्कि साल दर साल उनकी लोकप्रियता और मुकाम और ऊंचाई हासिल करता जा रहा है। 89वें जन्मदिन के मौके पर चर्चा फिल्मकार गुलज़ार और उनकी फिल्मों की।

OMG2: एक ‘मस्ट वॉच’ फिल्म

निर्देशक अमित राय ने बड़े तार्किक और दिलचस्प सिनेमाई कौशल के साथ अपनी नई फिल्म ‘ओह माय गॉड -2’ में यह सवाल उठाया है कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में सेक्स एजुकेशन जरूरी क्यों है?

बदल चुका है पाकिस्तान का सिनेमा ‘जिंदगी तमाशा’ से

“जिंदगी तमाशा” पाकिस्तान की एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते समय आप अपनी सांसों तक को महसूस करना भूल जाते हैं। फिल्म एक मौलवी के संघर्ष को बयां करती है। जिसका डांस करते एक वीडियो वायरल हो जाता है।  उसके बाद लोग उसके खिलाफ हो जाते हैं। लोग कहते हैं कि जो शख्स पांच का वक्त नमाज पढ़ता है वो ऐसा कैसे कर सकता है। इसी कहानी को लेकर पाकिस्तान में विवाद हो गया।

अकबर की हुकूमत में एक संगतराश की आवाज़: मुग़ले आज़म 4

‘मुग़ले आज़म’ की पूरी कथा इन्हीं तीन चित्रों के इर्दगिर्द बुनी गई है। अकबर द्वारा एक कनीज को मौत की सजा देना उस चित्र की माफिक है जिसमें बताया गया है कि ”शहंशाह की जबान से निकला हर लफ्ज इंसाफ है जिसकी कोई फरियाद नहीं“। अनारकली के लिए सलीम और अकबर में युद्ध होना जंग के उस चित्र की तरह है जिसके बारे में संगतराश कहता है, ”और ये मैदाने जंग है… लाखों लोगों की मौत और एक इंसान की फतह“। अनारकली का दिवार में चुनवा दिया जाना उस तीसरे चित्र के समान है जिसके बारे में संगतराश कहता है, ”और ये है, सच बोलने का अंजाम, सजा-ए-मौत“।

भारतीय सिनेमा की नई इबारत गढ़ती बांग्ला फिल्म ‘दोस्तजी’ पहुंची ताइवान

सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन की विरासत (लीगेसी) को निर्देशक प्रसून चटर्जी आगे बढ़ाना चाहते हैं। फिल्म ‘दोस्तजी’ की ताज़ा कामयाबी इसका सबूत है।