ऋत्विक घटक: भारतीय सिनेमा का एक ‘अनकट डायमंड’

निमाई घोष निर्देशित बांग्ला फिल्म ‘छिन्नमूल’ (अपरुटेड, 1950) में ऋत्विक घटक ने पहली दफा अभिनय किया। यह पहली भारतीय मूवी है, जो विभाजन (1947) की कहानी कहती है। इस फिल्म में दिखलाया गया है कि किसानों के एक समूह को ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से किस तरह कलकत्ता आने को मजबूर किया गया।

‘किलर्स आफ द फ्लावर मून’- अमेरिका के रक्तरंजित अतीत की अनजान कहानी

मार्टिन स्कॉर्सेसी ने पूरी ईमानदारी से इतिहास की विलक्षण कहानी कही है। उन्होंने अमेरिकी सत्ता के पीछे के हिंसा, शोषण और लूट के छुपे हुए इतिहास को आज के संदर्भ में देखने की कोशिश की है।  स्कॉर्सेसी ने चरित्र चित्रण में कमाल की सावधानी बरती है और एक-एक चरित्र वास्तविक लगते हैं।

मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ वाया गौरी

हिंदी सिनेमा में रियलिज़्म की नींव भले ही ‘नीचा नगर’ के ज़रिए चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1946 में ही रख दी थी, मगर समांतर, समानांतर, कला फिल्मों या सार्थक फिल्मों के...

फिल्म समीक्षा: भेदभाव की ‘गुठली’, अधिकार का ‘लड्डू’

दलितों, अनुसूचित जातियों के लोगों को केंद्र में रख भेदभाव की कहानियां कई बार कही गई हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा की ऐसी कहानियां खास करके पूरी दुनिया में चर्चित रहीं। बॉलीवुड में भी ऐसी कई कहानियां आती रही हैं जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है, लेकिन मौजूदा दौर में इसे लेकर सजगता, सक्रियता और रचनात्मकता बढ़ गई है।

‘मदर इंडिया’ का महान फिल्मकार महबूब ख़ान

अपने तीस साल के फिल्मी करियर में महबूब खान ने  हॉलीवुड की तरह ही भव्य और तकनीकी  स्तर पर  श्रेष्ठ फिल्में बनाने की  कोशिश की। ‘आन देश’ की पहली  टेक्नीकलर फिल्म थी। ‘मदर इंडिया’ को  उनकी ऑल टाइम ग्रेट फिल्म कहा जाता  है और इसे क्लासिक फिल्म का दर्जा प्राप्त है।

उत्तम कुमार: एक सितारा जो आज तक चमकता है

उत्तम कुमार बंगाल के लोगों के चहेते थे, जिन्होंने उन्हें महानायक का खिताब दिया था। बंगाल में कोई और अभिनेता नहीं हुआ, जिसने तीन दशक में उत्तम कुमार जितना कद हासिल किया हो। उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था।

‘चंपारण मटन’: ‘मटन’ की ख्वाहिश, ‘चंपारण’ का प्रतिरोध

फिल्म ‘चंपारण मटन’ की सफलता की सार्थकता सिर्फ ऑस्कर नाम से जुड़े चकाचौंध वाले मुकाम या उससे जुड़े तमाम आंकड़ों भर में नहीं है.. ‘चंपारण मटन’ की कामयाबी इस फिल्म को देखकर ही समझा जा सकता है। ये वो सिनेमा है जो हमें आज चाहिए।

अपने बूते खड़ा होना सिखाती ‘लव ऑल’

हिंदी सिनेमा में बैडमिंटन को आधार बना ‘साइना’ नाम से बायोपिक भी बन चुकी है।  लेकिन वह फ़िल्म कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई थी। परन्तु ‘लव ऑल’ उसी कमी को पूरा करती है और एक देखने लायक फिल्म बन जाती है।

ओएमजी2: सेंसर के 27 कट और ए सर्टिफिकेट पर सवाल क्यों?

फिल्म ‘ओ माई गॉड 2’ को सेक्स एजुकेशन पर बनी एक बेहतरीन फिल्म करार दिया जा रहा है और साथ ही फिल्म सेंसर बोर्ड द्वारा 27 कट के बाद दिये गये ‘ए’ सर्टिफिकेट पर भी आपत्ति  जताई जा रही है। अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह फिल्म वाकई में एक एजुकेशनल फिल्म है, और यदि यह एजुकेशनल फिल्म है तो यह किन लोगों को एजुकेट करती है, और क्यों करती है?