1947 के जूनागढ़ में छूटी एक घूंट चाय…

‘श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट एंड कम्युनिकेशन’ (SACAC) के साथ मिलकर ‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ (NDFF) ने 19 मार्च को नेशनल अवॉर्ड विनर फिल्ममेकर कौशल ओज़ा की फिल्म द मिनिएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़ की स्क्रीनिंग का आयोजन किया। फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद मुंबई से आए निर्देशक कौशल ओज़ा ने दर्शकों से संवाद भी किया। इस फिल्म पर एक समीक्षात्मक आलेख के साथ प्रस्तुत है पूरे आयोजन पर एक रिपोर्ट।

विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी त्रासदी रही है, जिसके ज़ख्म आज भी महसूस किए जाते हैं। साहित्य और सिनेमा ने उसे इस ढंग से याद रखा जो ज़ख्मों को हरा करने की बजाय उन्हे भरने का काम करे। ये अलग बात है कि बदलते दौर में सियासत की हवा सिनेमा के सुर पर भी कभी-कभी असर डाल देती है, पर बहुत कुछ ऐसा बचा हुआ है और बचा रहेगा, जो समाज के ताने-बाने को बनाए और बचाए रखेगा।
‘द मिनिएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ उसी दौर पर बनाई एक शॉर्ट फिल्म है, जब हवा में फैली दहशत, नफ़रत, अनिश्चितता और शक ने लोगों की बुद्धि और विवेक का काफी हद तक नाश कर दिया था। ज़माना नहीं खराब था, पर हवा खराब थी।
29 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म की दिल्ली में पहली बार स्क्रीनिंग आयोजित की गई, जिसमें फिल्म के डायरेक्टर कौशल ओज़ा भी दर्शकों से मुखातिब हुए और उनके सवालों का जवाब दिया।
इस स्क्रीनिंग का आयोजन ‘श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट एंड कम्युनिकेशन’ (SACAC) के साथ मिलकर ‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ (NDFF) ने किया था। दर्शकों के साथ बातचीत के दौरान निर्देशक कौशल ओज़ा ने इस फिल्म के बनने के पीछे की कहानी बतायी। उन्होने बताया कि वो मुंबई में मौजूद अपने सौ साल पुराने पुश्तैनी घर के डिमॉलिशन होने से पहले उसमें एक फिल्म शूट कर उसे हमेशा के लिए डॉक्यूमेंट कर लेना चाहते थे। यहां से शुरू हुई सोच ‘द मिनिएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ के तौर पर अंजाम तक पहुंची।
क्या है कहानी?

बंटवारे के उन दिनों में ये फिल्म जूनागढ़ में रहने वाले एक मुसव्वर (चित्रकार) हुसैन नक्काश की कहानी कहती है जिसे मिनिएचर पेंटिंग में महारत हासिल है और इस काम की साधना में उसने आंखें गंवा दी हैं। माहौल खराब हो रहा है इसलिए अब उसने घर-बार मय सामान बेच कर परिवार समेत कराची जाने का फैसला किया है। एक लोकल लाला किशोरीलाल उनकी हवेली खरीद रहा है। तमाम एंटीक पीसों से भरी इस हवेली को खरीदते समय उसे अचानक हुसैन की बेशकीमती मिनिएचर पेंटिंग्स के बारे में भी पता लगता है, तो उसकी आंखें लालच से चमक उठती हैं। लेकिन इन पेंटिंग्स से जुड़ा एक राज़ है… जिसका खुलासा अंत में होता है और तब सामने आता है कि ये फिल्म दरअसल कहना क्या चाहती है।
कास्टिंग और क्रू: ‘चुप्पी ही ज़ुबान है…’

फिल्म में कुल 5 अभिनेता सामने आते हैं, जिनमें नसीरुद्दीन शाह के बारे में तो कुछ कहने की ज़रुरत ही नहीं। दृष्टि से अक्षम हुसैन के तौर पर नसीरुद्दीन शाह को देखकर ‘स्पर्श’ और कुछ दूसरे बुजुर्ग किरदारों वाली फिल्में याद आती हैं, लेकिन यहां वो इन सबसे अलग हैं। ये नसीरुद्दीन शाह का हुनर और तजुर्बा ही है कि एक शॉर्ट फिल्म में गिने चुने दृश्यों के ज़रिए एक बूढ़े चित्रकार हुसैन को वो कितनी आसानी से लोगों के दिल में पहुंचा देते हैं- जो देख नहीं सकता, जिसके पास सिर्फ अपने सुनहरे दिनों की यादें हैं, जिसकी फीलिंग्स प्योर हैं, नीयत में इनोसेंस हैं और चेहरे पर ट्रांसपेरेंसी है जैसा कि कला के किसी सच्चे साधक में होती है। रसिका दुग्गल बेहद टैलेंटेड हैं और अब उनका नाम और काम भी अब इसी श्रेणी में आ चुका है।

लेकिन फिल्म में राज अर्जुन और पद्मावती राव दोनों अपनी एक्टिंग से अपने किरदार को दर्शकों के दिमाग में गहरे बिठा देते हैं। फिल्म के स्क्रीनप्ले की भी तारीफ करनी होगी जो दोनों को इसके लिए पूरी गुंजाइश देता है। राज अर्जुन ने एक शक्की, मुनाफ़े की ताक में रहने वाले तंगदिल लाला की भूमिका निभाई है जो बदली हुई हवा के घोड़े पर सवारी करने के मौके तलाश रहा है। इस किरदार में राज ने जिस तरह से इंप्रोवाइज़ किया है, साइलेंस में बगैर डायलॉग के दृश्यों में जिस तरह के हाव-भाव दिए हैं और डायलॉग के दौरान आवाज़ में जिस तरह का उतार चढ़ाव लाया है वो उनके टैलेंट और क्राफ्ट का सबूत है। यही वजह है कि टोरंटो (कनाडा) में ‘इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ साउथ एशिया’ में उन्हे इस फिल्म के बेस्ट एक्टर का भी अवॉर्ड मिला। वो कई प्रमुख फिल्मों में नज़र आ चुके हैं। दर्शकों को ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में ज़ायरा वसीम के पिता की उनकी भूमिका ज़रूर याद होगी। इसके अलावा ‘आर्टिकल 370’, ‘शेरशाह’, ‘थलाइवी’, ‘रईस’, ‘राउडी राठौड़’ जैसी फिल्मों में वो दिखते रहे हैं। थिएटर के बैकग्राउंड से आनेवाली पद्मावती राव ने भी ‘पद्मावत’ और ‘रात अकेली है’ जैसी फिल्मों समेत कई फिल्मों में अहम भूमिकाएं की हैं। तांगेवाले की छोटी सी भूमिका में उदय चंद्रा की अदायगी में भी भरपूर इमोशनल पुल है।
फिल्म का सेटअप इंटीरियर है। जिसे डायरेक्टर कौशल ओज़ा ने अपने पुश्तैनी घर में शूट किया है, 47 के दौर का मूड, माहौल और सेट क्रिएट करने में आर्ट डायरेक्टर और प्रोडक्शन डिज़ाइनर का काम काबिले तारीफ है। सिनेमाटोग्राफी खास तौर पर बहुत अच्छी है। लाइटिंग और शॉट डिविजन इसे और असरदार बनाते हैं। बेहद कसी हुई एडिटिंग इस छोटी सी कहानी का फ्लो ऐसा रखती है कि 29 मिनट के बीतने का बिलकुल पता नहीं लगता। बैकग्राउंड म्यूज़िक और साउंड पर की मेहनत भी साफ दिखती है। फिल्म के डायलॉग्स बहुत चुस्त हैं और लफ्ज़ों का इस्तेमाल बहुत ध्यान से, बारीकी से किया गया है। इसके लिए थिएटर के बैकग्राउंड से आने वाले असलम परवेज़ की तारीफ करनी होगी, जिन्हे उर्दू डायलॉग राइटर का क्रेडिट दिया गया है। नसीरुद्दीन शाह जैसे अदाकार के लिए जो एक दरबारी फ़नकार का किरदार निभा रहा है, डायलॉग लिखना कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा, समझा जा सकता है। राइटर ने कुछ बेहतरीन डायलॉग के ज़रिए कुछ सीन्स और पूरी फिल्म के असर को काफी बढ़ा दिया है…. मसलन ‘चुप्पी ही ज़ुबान है…’ और ‘…चाय की एक घूंट ज़रूर छोड़ देना’।
‘चाय की एक घूंट ज़रूर छोड़ देना..’
फिल्म में बेटी के साथ चाय पर चीयर्स करते हुए हुसैन अपनी बेटी को बताते हैं ‘कप में एक घूंट चाय ज़रूर छोड़ देना… क्योंकि जो चाय की आखिरी घूंट छोड़ देता है वो उसकी तलब में जूनागढ़ वापस ज़रूर आता है।‘

डायरेक्टर इस फिल्म में कप में एक घूंट चाय छोड़ने का एक खूबसूरत मेटाफर रचते हैं जिसकी अभिव्यक्ति डायलॉग फॉर्म के अलावा विजुअल फॉर्म में भी बहुत संवेदनशील और भावुक कर देने वाली है। नसीरुद्दीन शाह घर को अलविदा करते समय अपनी संदूकची उठाते हैं और पीछे एक घूंट बची चाय का प्याला दिखता है।
दर्शकों को इसने कितना भीतर तक छुआ, ये तब पता लगा जब स्क्रीनिंग के बाद आयोजित चाय के दौरान डायरेक्टर कौशल ओज़ा दर्शकों से मिल रहे थे। चाय की चुस्कियों के बीच फिल्म के बनने के पीछे की कई कहानियां सुनाते हुए कौशल ओज़ा से दर्शकों ने कहा कि आप अपने कप में एक घूंट चाय ज़रूर छोड़ दीजिएगा ताकि दिल्ली फिर लौट कर आते रहें…।
डायरेक्टर कौशल ओज़ा ने बताया कि उन्होने इसे 15 मिनट की फिल्म बनाने का सोचा था। शूटिंग के लिए मुंबई के बोरीवली स्थित अपने पुश्तैनी घर में महज़ 4 दिन का शिड्यूल रखा था। लेकिन एडिट के बाद ये फिल्म 29 मिनट की निकली और बिलकुल चुस्त, जिसे कहीं से भी काटा नहीं जा सकता था। निश्चित तौर पर इसके लिए निर्देशक के विज़न, उसकी तैयारी और ट्रीटमेंट की तारीफ करनी होगी। राइटर और डायरेक्टर की इस बात के लिए भी तारीफ करनी होगी कि उन्होने हर कैरेक्टर के लिए पूरा स्पेस दिया है। इस छोटी सी फिल्म में सारे किरदारों को पूरी तरह समझने का मौका मिलता है। डायरेक्टर कौशल ओज़ा प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे से फिल्म निर्देशन में प्रशिक्षित हैं। उनकी दो शॉर्ट फिल्मों ‘वैष्णव जन तो’ और ‘आफ्टरग्लो’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा उनकी फिल्में 15 के करीब अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। ‘आफ्टरग्लो’ यूट्यूब पर मौजूद है और 14 लाख से ज्यादा व्यूज़ इसे मिल चुके हैं। ‘द मिनिएचरिस्ट ऑफ जूनागढ़’ को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में सम्मानित किया जा चुका है। फिल्म अमेज़न, हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर मौजूद है।

दिल्ली में पहली स्क्रीनिंग
दिल्ली में इस फिल्म की पहली स्क्रीनिंग और डायरेक्टर से मुलाकात के तौर पर 19 मार्च को हुए इस आयोजन की शुरुआत कार्यक्रम की होस्ट निकिता ने की। जिसके बाद श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट एंड कम्युनिकेशन की फाउंडिंग डायरेक्टर दलजीत वाधवा ने दर्शकों का स्वागत किया। NDFF की ओर से फाउंडर आशीष कुमार सिंह ने फिल्म को इंट्रोड्यूस किया। स्क्रीनिंग और निर्देशक से चर्चा के बाद न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर (ब्रांडिंग एंड मार्केटिंग) वैभव मैत्रेय ने डायरेक्टर कौशल ओज़ा को गुडी बैग देकर सम्मानित किया। The event on Insta

‘टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर’
इस आयोजन की खास बात ये भी रही कि इसमें समाज के हर वर्ग के लोग फिल्म देखने के लिए पहुंचे। इनमें वकील, पत्रकार, फिल्मकार, लेखक, रंगमंच कलाकार, एक्टर, म्यूज़िशियन, आर्टिस्ट, छात्र, रिसर्च स्कॉलर, पेंटर, फोटोग्राफर, सिनेमाटोग्राफर तमाम शामिल है। अंत में दर्शकों का धन्यवाद करते हुए न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन ने अपने आगामी कैंपेन ‘टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर’ का परिचय दिया, जिसके तहत दिल्ली और उत्तर भारत में फिल्ममेकिंग और फिल्ममेकर्स के लिए एक कंप्लीट इकोसिस्टम मुहैया कराने की योजना है। इसके तहत कंटेंट क्रिएटर्स से लेकर क्रिएटिव आर्टिंस्ट, टैलेंट और इन्वेस्टर, प्रोड्यूसर, इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और पॉलिसीमेकर्स को एक मंच पर लाया जाएगा। इसका आयोजन हर महीने हुआ करेगा। जल्द ही NDFF की ओर से इसका औपचारिक ऐलान किया जाएगा।
