बच्चों के मन के बंद दरवाज़े टटोलता बेल्जियम का सिनेमा

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यूरोपीय सिनेमा की हमेशा से एकअलग पहचान रही है। आज हॉलीवुड के बोलबाले के दौर में भी वो परंपरा कायम है और नए दौर के फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों से न सिर्फ अपनी बल्कि अपने देश के सिनेमा को भी एक पहचान दी है। बेल्जियम एक ऐसा ही देश है। बेल्जियम की फिल्मों, फिल्मकारों और वहां के सिनेमा की नई पहचान पर अजित राय का दिलचस्प आलेख। अजित राय वरिष्ठ पत्रकार-फिल्म समीक्षक हैं जो दुनिया भर में घूमकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल कवर करते रहे हैं। उद्योगपति हिंदुजा बंधुओं के बॉलीवुड कनेक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के ज़रिए भारतीय फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय फलक तक ले जाने के उनके योगदान पर अजित राय ने पिछले साल एक पुस्तक Hindujas And Bollywood लिखी थी, जो खासी चर्चित रही है।

विश्व में सिनेमा (1895) का आविष्कारक माने जाने वाले फ्रांस के लूमिए बंधुओं से भी करीब साठ साल पहले बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय(ब्रसेल्स) के भौतिकशास्त्री जोसेफ प्लेटो 1836 में हीं गतिशील तस्वीरों को दिखाने के लिए 'स्ट्रोबोस्कोपिक ' नामक यंत्र का आविष्कार कर चुके थे। हालांकि बेल्जियम में पहली बार एक मार्च 1896 को  ब्रसेल्स की किंग्स गैलरी में फिल्म दिखाई गई थी। उसी समय एक फ्रेंच व्यवसायी चार्ल्स पाथे और उसके सहायक अल्फ्रेड माचिन ने ब्रसेल्स में पहली फिल्म निर्माण कंपनी खोली। इसी वजह से इस देश में फिल्म उद्योग पर कई दशकों तक फ्रेंच लोगों का ही वर्चस्व रहा,  हालांकि यहां डच और जर्मन भाषी लोगों की भी अच्छी खासी संख्या है।

बेल्जियम में फिल्में तो सौ सालों से बनती रही हैं पर पहली बार जब 58वें कान फिल्म समारोह (2005) में डारडेन बंधुओं (ज्यां पियरे और लुक डारडेन) की फिल्म ‘ल इनफैंट’  (द चाइल्ड) को बेस्ट फिल्म का ‘पाम डि ओर’ पुरस्कार मिला तो दुनिया का ध्यान यहां की फिल्मों की ओर गया। इस फिल्म ने बेल्जियम के सिनेमा का एक नया व्याकरण रचा और इटैलियन न्यू वेव सिनेमाई दौर की वित्तोरियो डि सिका की विश्व प्रसिद्ध फिल्म ‘बायसिकिल थीव्स’ (1948) के 57 वर्ष बाद बच्चे एक बार फिर से सिनेमा के केंद्र में आए और उन्हें एक नया नायकत्व मिला। यह सिलसिला आज भी जारी है और बाल मनोविज्ञान बेल्जियम के सिनेमा की नई पहचान बन चुका है। इस बात का ताजा प्रमाण है कि इस बार 95वें एकेडमी अवार्ड (ऑस्कर) के लिए बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी में जो पांच फिल्में शार्टलिस्ट होकर फाइनल राउंड के लिए नामांकित हुई है उनमें बेल्जियम के लुकास डोंट की ‘क्लोज’ भी थी जो प्रबल दावेदार मानी जा रही थी।

         बेल्जियम के लुकास डोंट की फिल्म ‘ क्लोज’   बारह-तेरह साल के दो किशोरों लेवो और रेमी की सघन दोस्ती, अलगाव और स्मृतियों की कहानियां है जो बच्चों की अपनी दुनिया में हमें दूर तक ले जाती है। बच्चों के मनोविज्ञान पर बहुत गहराई से विचार किया गया है। इस फिल्म में एक दोस्त की असमय मृत्यु के बाद दूसरा दोस्त भयानक अपराध बोध से ग्रस्त हो जाता है और इसकी गुत्थी धीरे-धीरे खुलती हैं। इस फिल्म को कान फिल्म समारोह (2022)  का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार ‘ ग्रां प्री’ मिल चुका है। लुकास की ‘गर्ल’, ‘ब्वाएज़ ऑन फिल्म एक्स’ जैसी पिछली फिल्में भी किशोरों के मन की कश्मकश और बढ़ने की उम्र में उनके रोजमर्रा के संघर्ष, जद्दोजहद को विषय बनाती दिखती हैं। 2018 में बनाई फिल्म ‘गर्ल’ ने कान फेस्टिवल में कई पुरस्कारों समेत दुनिया भर में कई अवॉर्ड जीते थे।

        डारडेन बंधुओं (ज्यां पियरे और लुक डारडेन) की ही एक अद्भुत फिल्म ‘ यंग अहमद’ है जिसके लिए उन्हें 72वें कान फिल्म समारोह (2019)में बेस्ट डायरेक्टर का पुरस्कार मिल चुका है। ‘यंग अहमद’  दुनिया भर में कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों द्वारा जेहाद के नाम पर बच्चों के दिमाग में हिंसा का जहर घोलने की साज़िशों के खिलाफ एक सिनेमाई प्रतिरोध है। तेरह साल का अहमद एक मौलवी के चक्कर में जेहादी बनना चाहता है। वह जेहाद के अभ्यास के लिए अपनी ईसाई टीचर की हत्या का असफल प्रयास करता है। उसे सुधारने के लिए एक फार्म हाउस में रखा जाता है। फार्म हाउस के मालिक की बेटी लूइस  एक दिन उसे प्यार से चूम लेती है। अहमद को लगता है कि वह इस चुंबन से अपवित्र हो गया और उसका जेहाद खतरे में पड़ गया। वह लूइस को कहता है कि उसके चुंबन से वह अपवित्र हो गया है इसलिए वह इस्लाम कबूल कर लें जिससे सब ठीक हो जाए। अहमद की मां, टीचर, जज, वकील, मनोवैज्ञानिक, सहपाठी, दोस्त- किसी को सपने में भी यकीन नहीं हो सकता कि अहमद जैसा मासूम बच्चा सच्चा मुसलमान बनने के लिए दूसरे की हत्या करने का निर्णय ले सकता है। फिल्म यूरोप में मुस्लिम बच्चों के मनोविज्ञान को सादगी से सामने लाती है।

       डारडेन बंधुओं को अभी पिछले साल कान फिल्म फेस्टिवल (2022) के 75 साल पूरे होने पर  ‘प्री 75’ का विशेष पुरस्कार उनकी नई फिल्म ‘ टोरी एंड लोकिता’ के लिए मिला था। इस फिल्म में अफ्रीका से बेल्जियम भागकर आई एक किशोरी लोकिता अपने छोटे भाई टोरी के साथ मुश्किल जीवन संघर्ष करती हुई अंततः मारी जाती है। फिल्म के अंत में उसके शव को दफन करने से पहले उसका छोटा भाई एक मार्मिक और हृदयविदारक वक्तव्य देता है। फिल्म यूरोप में अवैध बाल श्रमिकों की बदहाल दुनिया मे ले जाती है जहां हर कोई उनका शोषण करने को तैयार बैठा है।

       ‌           75वें कान फिल्म समारोह में ही बेल्जियम के फेलिक्स वान गोएनिंजेन और शरलॉट वांडेरमियर को उनकी फिल्म की  फिल्म ‘दि एट माउंटेन्स ‘ के लिए जूरी प्राइज से नवाजा गया था। यह फिल्म दो अलग-अलग पृष्ठभूमि के किशोरों की दोस्ती के माध्यम से गांव और शहर का द्वंद्व रचती है। पहाड़ी गांव का ब्रूनो और शहर से आया पिएत्रो जवान होकर अपनी अभूतपूर्व मित्रता में घर और परिवार की नई परिभाषाएं गढ़ने की कोशिश करते हैं।

इस समय बेल्जियम की जिस फिल्म की चर्चा दुनिया भर में हो रही है, वह है आदिल अल अरबी और बिलाल फल्लाह की सच्ची घटनाओं पर आधारित ‘ रेबेल’। यह एक हृदयविदारक साहसिक फिल्म है जो आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट(आइएसआइएस) के पूरे प्रपंच को परत दर परत बेपर्दा करती है।

(क्रमश:)

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