सत्यजित रे… जिसने बदल दिया भारतीय सिनेमा
दूरबीन का क्या काम होता है? दूर के दृश्य को आपके पास ले आना , इतना पास कि लगे जैसे आँख से जुड़ा रखा हो। सत्यजित रे का सिनेमा समय और समाज की हकीकत देखने की एक ऐसी ही दूरबीन लगता है। सत्यजित रे के जन्म की 99वीं वर्षगांठ पर उन्हे याद कर रहे हैं NDFF के अध्यक्ष अमिताभ श्रीवास्तव
2 मई 1921 को जन्मे कालजयी फिल्मों के रचयिता सत्यजित रे यानी मानिक दा अगर हमारे बीच होते तो 99 साल पूरे करके अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर गए होते। ।
सत्यजित रे ने संवेदना को, समूचे जीवन को गढ़ने वाला सिनेमा रचा जो देश, काल की सीमाओं में दिखते हुए भी उनसे परे जाता है। सिनेमा के सौ साल के इतिहास में सत्यजित रे की पहली फिल्म पाथेर पांचाली सिर्फ भारत की ही नहीं, पूरी दुनिया की सार्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिनी जाती है।
पाथेर पांचाली की सार्वभौमिकता और सार्वकालिक लोकप्रियता का रहस्य सादगी की गहराई में निहित है जिसको रे ने किसी तामझाम के बिना अभिव्यक्त किया। पाथेर पांचाली मानव जीवन के सुख-दुख, राग-विराग, मासूमियत और कौतूहल की करुण कथा है । सिर्फ उस एक फिल्म की कितनी अलग-अलग व्याख्याएं हुई हैं और अब भी हो रही हैं। दुनिया भर के समीक्षकों ने उसके बारे में और उसके ज़रिये अभिव्यक्त होने वाली कला और जीवन मूल्यों के बारे में हज़ारों पन्ने लिख डाले हैं। दुर्गा, अपू, सर्वजया, हरिहर, इंदिर जैसे पात्र विभूति भूषण बंद्योपाध्याय ने बंगाल के ग्रामीण परिवेश में रचे थे लेकिन उन जैसे चरित्रों को देश के अन्य हिस्सों के गांवों में आज भी देखा जा सकता है। सत्यजित रे निर्मित छोटी सड़क पूरी दुनिया तक फैल गई है और उसका गीत सब जगह गूंज रहा है।
आज जब पूरी दुनिया एक ग्लोबल गांव की परिभाषा के भीतर सिमट गई है तो बहुत संभव है पाथेर पांचाली के पात्रों की झलक दूसरे देशों के समाजों में हाशिये पर रह रहे लोगों और समूहों में दिखती हो। क्या पता!
दूरबीन का क्या काम होता है? दूर के दृश्य को आपके पास ले आना , इतना पास कि लगे जैसे आँख से जुड़ा रखा हो। सत्यजित रे का सिनेमा समय और समाज की हकीकत देखने की एक ऐसी ही दूरबीन लगता है।
1955 में पाथेर पांचाली से उनका सफर शुरू हुआ था और 1992 में मृत्यु तक उन्होंने कुल 36 फिल्में बनाईं जिनमें डाक्यूमेंट्री फिल्में भी शामिल हें। जीनियस कहे जाने वाले रे सिर्फ फिल्मकार नहीं थे, लेखक थे, चित्रकार थे, पब्लिशर थे, कैलिग्राफी जानते थे और ग्राफिक डिजायनर थे। बतौर कॉमर्शियल आर्टिस्ट करियर शुरू करने वाले सत्यजित रे रेनुआ और विटोरियो डि सिका के असर में फिल्म निर्माण की तरफ मुडे और फिर पीछे मुड कर नहीं देखा। पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूर संसार, देवी, कंचनजंगा, चारुलता,नायक, महानगर, गोपी गायन बाघा बायन, अरण्येर दिन रात्रि ,जन अरण्य, घरे बाइरे, शाखा प्रोशाखा, गणशत्रु और आगंतुक को कौन सिनेमा प्रेमी भूल सकता है।
सत्यजित रे ने प्रेमचंद की दो कहानियों शतरंज के खिलाड़ी और सद्गति पर हिंदी में भी फिल्में बनायीं। सौमित्र चटर्जी , विक्टर बनर्जी, उत्तम कुमार और छवि बिस्वास के साथ काम कर चुके सत्यजित रे ने शतरंज के खिलाड़ी में संजीव कुमार, सईद जाफरी, शबाना आजमी को लिया। सिनेमा के अमर खलनायक गब्बर सिंह यानी अमजद खान ने शतरंज के खिलाड़ी में वाजिद अली शाह जैसे किंचित स्त्रैण शासक का क्या खूब रोल किया था। रिचर्ड एटनबरो भी दिखाई दिये थे। रे को भारत रत्न तो मिला ही, फ्रांस की सरकार ने विशेष सम्मान दिया और मृत्यु से थोड़ा पहले ऑस्कर भी मिला।
सत्यजित रे भारतीय सिनेमा के महानतम रचयिताओं की पहली कतार में थे, हैं और रहेंगे।