अरब डायरी 9: झूठी शान के लिए ली जान की सच्ची कहानी ‘डियर जस्सी’
सऊदी अरब के जेद्दा में 30 नवंबर से 9दिसंबर तक तीसरे ‘रेड सी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ का आयोजन किया गया। ईजिप्ट के एल गुना फेस्टिवल की तरह जेद्दा में होने वाला रेड सी फिल्म फेस्टिवल भी अरब वर्ल्ड की बेहतरीन फिल्मों को देखने-दिखाने का एक बड़ा मंच बन चुका है। इस साल इस फेस्टिवल में भारत से जुड़ी तीन फिल्में शामिल हुईं, जिनमें एक थी पंजाबी फिल्म ‘डियर जस्सी’। इस फिल्म पर एक विशेष समीक्षात्मक आलेख भेजा है जाने माने फिल्म समीक्षक और लेखक अजित रायने, जो सऊदी अरब के इस फेस्टिवल में विशेष आमंत्रण पर शामिल होने पहुंचे थे।
भारतीय मूल के कनाडाई फिल्मकार तरसेम सिंह की पंजाबी फिल्म ‘डियर जस्सी’ को सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार ‘सिल्वर यूसर अवार्ड’ प्रदान किया गया जिसके तहत उन्हें तीस हजार डॉलर का कैश प्राइज भी दिया गया।
‘डियर जस्सी’ को ‘ओ माय गॉड-2’ के निर्देशक अमित राय ने लिखा है। इसे टी सीरीज के भूषण कुमार, वकाऊ फिल्म्स के विपुल शाह और अन्य ने प्रोड्यूस किया है। यह फिल्म कनाडा की जसविंदर कौर सिद्धू के जीवन की सच्ची कहानी पर आधारित है जिसने पंजाब आकर एक नीची जाति के गरीब लड़के से प्यार किया और बाद में काफी संघर्ष के बाद कोर्ट में शादी की पर उसके घरवालों ने इसे स्वीकार नहीं किया और अंततः दोनों की हत्या कर दी गई। इसमे पाविया सिद्धू, युग्म सूद, विपिन शर्मा, बलजिंदर कौर, सुनीता धीर आदि ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। यह एक सच्ची प्रेम कथा का दुखांत है जिसमें ऊंची जाति की एक अमीर लड़की नीची जाति के गरीब लड़के से प्रेम विवाह करती है और दोनों की हत्या करवा दी जाती है। फिल्म के निर्देशक तरसेम सिंह ने मीडिया से गुजारिश की है कि इस घटना को ‘ऑनर किलिंग’ न लिखा- बोला जाय। ऑनर किलिंग शब्द से यह भ्रम होता है कि प्रेमी युगल की हत्या उचित थी। इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर इसी साल 11 सितंबर 2023 को टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में हुआ। कुछ अज्ञात कारणों से ‘डियर जस्सी’ का शो गोवा में आयोजित भारत के 54 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में अंतिम क्षणों में रद्द कर दिया गया था।
निर्देशक ने विलियम शेक्सपीयर के मशहूर नाटक ‘रोमियो जूलियट’ की मूल प्रेरणा से पंजाब में एक सच्ची दुखांत प्रेम कहानी रची है। फिल्म की शुरुआत पंजाब के एक विशाल हरे भरे खेत में दो लोक गायकों के गायन से होती है। वे दोनों बुल्ले शाह का गीत गा रहे हैं जिसमें वे कहते हैं कि मंदिर मस्जिद भले ही तोड़ दो पर प्यार भरा दिल मत तोड़ो। दोनों प्रेमियों जस्सी (पाविया सिद्धू) और मिट्ठू (युग्म सूद) की हत्या के बाद फिल्म का अंत भी उन्ही दोनों लोक गायकों के गीतों से होता है। हम एक वॉयस ओवर कमेंट्री सुनते हैं कि सबको पता है कि हत्या किसने करवाई, पर बाइस साल से अभी मुकदमा ही चल रहा है, सजा नहीं हो पाई।
तरसेम सिंह ने कई दृश्यों को कलात्मक तरीके से फिल्माया है मसलन पंजाब के गांव में अपनी-अपनी छत से जस्सी और मिट्ठू का एक दूसरे को देखना। यह दृश्य शेक्सपियर के रोमियो-जूलियट के बालकनी वाले दृश्य की ओर इशारा करता है। दोनों प्रेमियों में एक दूसरे को पा लेने के उत्साह से ज्यादा एक गरिमामय जीवन के लिए असाधारण धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाई देता है। फिल्म की मेकिंग सहज और यथार्थवादी है हर दृश्य एक सादगी के साथ घटित होता है। एक देश से दूसरे देश जाने आने की नागरिकों की जायज इच्छाओं के लिए ट्रैवल एजेंसी नामक जो संस्था बनी है वह सुविधा देने की बजाय जानबूझ कर हतोत्साहित करती है और फर्जीवाड़ा करने को तैयार बैठी है। दूसरी ओर रिश्वत लेकर पुलिस मामले को उलझाए रखती है और हमेशा बड़े अपराधियों की सेवा में लगी हुई है। फिल्म की खासियत है कि तरसेम सिंह ने बिना सनसनीखेज हुए अंतिम क्रूर दृश्य को रचा है जिसमें प्रेमियों की हत्या होती है।
क्लाइमेक्स तक पहुंचने से पहले फिल्म कई मजेदार दृश्यों से भरी पड़ी है। हालांकि हर जगह एक ‘काफ्का दु: स्वप्न’ मौजूद रहता है जो अगले पल अनहोनी का आभास देता चलता है। लेखक अमित राय ने छोटे से छोटे प्रसंगों को ध्यान में रखा है यहां तक कि जस्सी और मिट्ठू की सुहागरात की सुबह बिस्तर पर खून का धब्बा भी दिखता है और रूम सर्विस के वेटर द्वारा दरवाजा खटखटाने पर प्रेमियों का डर जाना भी स्वाभाविक लगता है। उसी तरह सर्द आधी रात को मिट्ठू द्वारा दोस्त के पीसीओ के बाहर कनाडा से जस्सी के फोन का इंतजार करना भी मार्मिक है।