
महान फिल्मकार ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर 1925 को बांग्लादेश के ढाका में हुआ था। ये उनका जन्मशती वर्ष है। वो जीवित होते तो 4 नवंबर 2025 को 100 वर्ष को हो रहे होते…। बांग्ला में बनाई उनकी फिल्मों ने यथार्थवाद की एक नई शैली स्थापित की और न सिर्फ बांग्लाभाषी बल्कि पूरी दुनिया के फिल्मप्रेमियों को लुभाया। उनकी सबसे अधिक सराही गई या कह लें प्रतिनिधि फिल्मों का तमगा मिलता है विस्थापन पर आधारित उनकी फिल्मों को। इनमें पहली फिल्म नागरिक है, जिसकी स्क्रीनिंग राजधानी में श्री अरबिंदो सेंटर फॉर ऑर्ट्स एंड क्रिएटिविटी ने 31 अक्टूबर को आयोजित की गई। इसमें डॉ इरा भास्कर जैसी सिने स्कॉलर भी मौजूद रहीं और उन्होने घटक के सिनेमा के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताईं।
‘ऋत्विक घटक की दूसरी फिल्म नागरिक (1952) अगर उस समय रिलीज़ हो जाती… यानी सत्यजित राय की पथेर पांचाली (1955) से पहले तो भारतीय कला सिनेमा का इतिहास कुछ और होता।’ ये बात ऋत्विक घटक की जन्मशताब्दी वर्ष के मौके पर आयोजित एक महत्वपूर्ण आयोजन में एक बार फिर सामने आयी। यह आयोजन था श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड क्रिएटिविटी की ओर प्रसिद्ध फिल्मकार ऋत्विक घटक की जन्मशताब्दी का उत्सव। मनाया। यह आयोजन सेंटर के द ट्वाइलाइट फिल्म क्लब के तत्वावधान में हुआ, जिसमें घटक की पहली फिल्म ‘नागरिक’ का विशेष प्रदर्शन किया गया। इस कार्यक्रम का क्यूरेशन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्मकार शंखजीत डे ने किया।
प्रदर्शन के बाद जानी मानी सिनेविद् प्रो. इरा भास्कर और डॉ. अनुज्ञान नाग ने फिल्म पर गहन चर्चा की।
फिल्म की शुरुआत से पहले, सिनेविद् डॉ. अनुज्ञान नाग, जो जामिया मिलिया इस्लामिया के ए.जे.के. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर में फिल्म, मीडिया एवं सांस्कृतिक अध्ययन पढ़ाते हैं, ने कहा –
“अपनी पहली फिल्म के रूप में नागरिक घटक की विस्थापितों के प्रति गहरी संवेदना और साधारण नागरिक के गरिमा के संघर्ष को दर्शाती है। नागरिक को देखना मानो उस सिनेमाई आवाज़ के जन्म का साक्षी बनना है जिसने निजी पीड़ा को सामूहिक स्मृति में रूपांतरित किया।”
प्रदर्शन के बाद प्रो. इरा भास्कर की संपादित, व्याख्यायित और प्रस्तावना-युक्त पुस्तक ‘Ritwik Ghatak’s Partition Quartet: The Screenplays: Volume 1 – Nagarik’ पर चर्चा हुई।
उन्होंने कहा –
“जहाँ मेघे ढाका तारा (1960), कोमल गांधार (1961) और सुवर्णरेखा (1962) को घटक की विभाजन त्रयी के रूप में जाना जाता है, वहीं नागरिक की कथा उन विस्थापित लोगों के बारे में है जिन्हें ‘नागरिक’ कहकर संबोधित किया गया — इस प्रकार ये चारों फिल्में मिलकर त्रयी नहीं बल्कि क्वार्टेट बनाती हैं।”

प्रो. इरा भास्कर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स में सिनेमा स्टडीज़ की पूर्व प्रोफेसर रही हैं। वह ऋत्विक घटक की प्रमुख अध्येता हैं और उन्होंने बॉम्बे सिनेमा की इस्लामिक संस्कृतियों और उसके उद्योग पर व्यापक रूप से लेखन किया है।
कार्यक्रम के क्यूरेटर शंखजीत डे ने कहा –
“ऋत्विक घटक का सिनेमा भारतीय फिल्मों के परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ता है। उनकी फिल्में निर्माण की दृष्टि से भले ही साधारण हों, लेकिन उनकी सिनेमाई रचनात्मकता में गहराई और तीव्रता दोनों झलकती हैं। हम उनकी शताब्दी को केवल फिल्म प्रदर्शन तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, बल्कि उनके सिनेमा और उसकी विरासत पर गहन चर्चा के माध्यम से मनाना चाहते थे।”
चर्चा से एक प्रमुख निष्कर्ष यह उभरा कि नागरिक भारतीय फिल्म इतिहास में एक आकर्षक ‘क्या होता अगर’ (What if) की संभावना प्रस्तुत करती है।
यदि यह फिल्म 1952 में, सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली से पहले रिलीज़ हो जाती, तो भारतीय कला सिनेमा का इतिहास शायद अलग होता — और घटक को अपने जीवनकाल में ही एक महत्वपूर्ण भारतीय ऑटर (Auteur) के रूप में मान्यता मिल जाती।
क्या है घटक की पहली फिल्म ‘नागरिक’ में?
1952 में बनाई घटक की (दूसरी) फिल्म ‘नागरिक’ वो फिल्म है जिसे बांग्ला सिनेमा में नवयथार्थवाद (Neo realism) शुरू करने का श्रेय मिलना चाहिए था…. लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
फिल्म की कहानी विभाजन के तुरंत बाद के कलकत्ता की है। फिल्म उत्तरी बंगाल के एक परिवार के ज़रिए युद्ध और विभाजन के बाद के दौर के संघर्षों के बारे में बात करती है। ये परिवार एक ऐसे महानगर में जीवित रहने के लिए बेतहाशा प्रयास कर रहा है, जो सीमा पार से आने वाले हजारों लोगों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है।
फिल्म के कथ्य के लिहाज़ से ऋत्विक घटक की फिल्मों में ‘विभाजन त्रयी’ की जगह ‘विभाजन चतुष्ट्य’ (Partition Quartet) के तौर पर ‘नागरिक’, ‘मेघे ढका तारा’, ‘कोमल गांधार’ और ‘सुबर्नरेखा’ का ज़िक्र होना चाहिए।
लेकिन ‘नागरिक’ फिल्म की कहानी की तरह ऋत्विक घटक की इस फिल्म की शूटिंग से लेकर रिलीज तक का सफर भी बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा। इसकी शूटिंग 1952 में हुई थी, सत्यजीत रे की ‘पथेर पांचाली’ से तीन साल पहले। उस वक्त ये रिलीज़ हो जाती तो बांग्ला सिनेमा का इतिहास दूसरे ढंग से लिखा जाता…लेकिन ‘नागरिक’ को सिनेमाघरों का पर्दा नसीब हुआ पच्चीस साल बाद 1977 में… जब 1976 में घटक की मृत्यु हो चुकी थी। रिलीज़ की तारीख थी 20 सितंबर 1977… अब से करीब 48 साल पहले इसका प्रीमियर कलकत्ता के न्यू एंपायर थिएटर में हुआ था।

