‘आदिपुरुष’ की प्रमोशनल स्ट्रेटजी के मायने
बीते एक दशक के सिनेमा में बहुत बदलाव आया है… नैरेटिव, कैरेक्टर और ट्रीटमेंट तीनों ही स्तर पर। बिज़नेस और बॉक्स ऑफिस का संकट भले बना हुआ है, लेकिन ब्रांड के तौर पर सिनेमा का जलवा कायम है। यही वजह है कि बदलते दौर में ‘ओपिनियन मैन्युफैक्चरर’ के तौर पर सिनेमा की भूमिका और अहम हो गई है। क्या बदला है, कौन से तौर-तरीके बदले हैं इसी पर प्रस्तुत है पत्रकार-समीक्षक आलोकनंदन शर्मा का एक विश्लेषण। आलोक नंदन पिछले तीन दशक से पत्रकारिता कर रहे हैं। वीर अर्जुन, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे राष्ट्रीय दैनिक में विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके हैं। सिनेमा में इनकी गहरी दिलचस्पी है। फिल्म समीक्षक के तौर पर लगातार देश व दुनिया की फिल्मों की समीक्षा करते रहे हैं।
कंटेट के साथ साथ फिल्मों के प्रमोशन का ट्रेंड भी तेजी से बदला है। ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरला स्टोरी’, जैसी फिल्मों की छप्पड़ फाड़ कमाई की वजह एक मात्र इनके कंटेंट नहीं है, बल्कि प्रमोशन स्ट्रेटजी भी है, जो फिल्मों की पारंपरिक प्रमोशन स्ट्रेटजी से बिल्कुल अलहदा है।
‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ को सबसे पहले एक समुदाय विशेष को लक्षित करते हुए सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म करार दिया गया, देश के छोटे बड़े सिनेमाघरों में इन फिल्मों के प्रदर्शन के दौरान हॉल के अंदर और बाहर जमकर नारेबाजी भी करवाई गयी, और उनका वीडियो भी सोशल मीडिया पर व्यवस्थित तरीके से वायरल किया गया। कश्मीर की समस्या और लव जिहाद, जिसे लेकर पहले से ही देश में अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक संगठनों द्वारा कई स्तर पर आंदोलन चलाये जा रहे थे, के प्रति गैर मुस्लिम समुदाय-खासकर हिन्दुओं को-जागरुक करने का दम भरा गया। एक राजनीतिक पार्टी विशेष के शीर्ष नेताओं द्वारा इन फिल्मों की तारीफ किये जाने का बाद तो उस पार्टी विशेष के कई मुख्यमंत्रियों सहित पूरा कैबिनेट ही इन फिल्मों के प्रमोटर की भूमिका में आ गया। जगह जगह इन फिल्मों को गैर मुस्लिम लोगों के लिए जरुरी फिल्म बताया जाने लगा और जमकर बयानबाजी और नारेबाजी भी की जाने लगी।
समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में भी इन फिल्मों की तारीफ में कसीदे पढ़े जाने लगे और यह साबित करने की पूरी कोशिश की जाने लगी कि अपनी बेटियों को सुरक्षित रखने के लिए इन फिल्मों के संदेश को घर घर तक पहुंचाया जाया बेहद जरूरी है, मानों यह किसी राजनीतिक पार्टी के ‘मैनिफेस्टो’ का हिस्सा हो। देखते देखते लो बजट वाली ये फिल्में छप्पड़ कमाई करने वाली फिल्में बन गई , और प्रोड्यूसरों को भी इस तरह की कंटेंट वाली फिल्मों की तरफ तेजी से आकर्षिक करने लगी। इसी की अगली कड़ी ’72 हूरें’ हैं, जिसका प्रचार प्रसार भी उसी शैली में किया जा रहा है जिस शैली में ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरला स्टोरी’ की गई गयी थी। यानि फिल्मों की कामयाबी का नया नुस्खा प्रोड्यूसरों के हाथ लग गया है। ‘आदिपुरुष’ जैसी मेगा बजट की फिल्म को प्रमोट करने के लिए भी कुछ इसी तरह के नुस्खे का इस्तेमाल किया जा रहा है।
हाल ही में जारी किये गये फिल्म ‘आदिपुरुष’ के ट्रेलर में भगवान राम के मुंह से निकलने वाले एक संवाद में कहा जा रहा है, ‘आज मेरे लिए मत लड़ना, उस दिन के लिए लड़ना जब भारत की किसी बेटी पर हाथ डालने से पहले दुराचारी तुम्हारा पौरुष याद करने के पहले थर्रा उठेगा।
आगे बढ़ो और गाड़ दो अहंकार की छाती पर विजय का भगवा।’ महिलाओं की सुरक्षा एक अहम मसला है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। लेकिन बेटियों या फिर महिलाओं की सुरक्षा भगवा झंडे के नीचे ही किया जाना चाहिए? अभी हाल ही में रिलीज हुई मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘सिर्फ एक ही बंदा काफी है’ का मुख्य खलनायक भगवा वस्त्र की आड़ में ही तो अपने कुस्तित इरादों को अंजाम देता है।
वैसे तो फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ का ‘आदिपुरुष’ से कोई सीधा संबंध नहीं है, दोनों अलग अलग जॉनर की फिल्में हैं, लेकिन जिस तरीके से इनकी प्रमोशन स्ट्रेटजी मेल खा रही है उससे फिल्मों के प्रमोशन ट्रेंड में तब्दीली का स्पष्ट आभास हो रहा है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ के प्रमोशन के दौरान एक समुदाय विशेष के लोगों के खिलाफ जहां जागरुक करने पर जोर दिया जा रहा था वहीं ‘आदिपुरुष’ के प्रमोशनल ट्रेलर में भारत की बेटी पर हाथ डालने वालों को थर्रा देने की बात कही जा रही है। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि गाड़ दो विजय का भगवा। कुछ समय से भारत को एक हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की आक्रामक वकालत करने वालों का एक समूह उभर कर सामने आया है। यह समुदाय संपन्न भी है और फिल्म सहित संचार के तमाम माध्ययों की शक्ति से भी अच्छी तरह से वाकिफ है। फिल्म ‘आदिपुरुष’ के ट्रेलर का प्रमोशन का ऑब्जेक्ट अप्रत्यक्ष रूप से क्या इसी समूह को संबोधित करता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है? फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ की प्रमोशन स्ट्रैटजी दर्शकों को पहले से ही इस मनोस्थित में लाने में कामयाब हो गई थी कि थियेटर के अंदर उन्हें एक समुदाय विशेष की नापाक करतूतों को देखने को मिलेगा। क्या अब समुदाय विशेष के तथाकथित नापाक मनसूबों और हरकतों से छुटकारा पाने का रास्ता फिल्म ‘आदिपुरुष’ के प्रमोशन ट्रेलर में भगवान राम के ‘भगवा ध्वज गाड़ने’ वाले संवाद में नहीं दिखाया जा रहा है? ट्रेलर में अपने सैनिकों से भगवान राम का यह आह्वान कि मेरे लिए मत लड़ना, उन बेटियों पर हाथ डालने वाले दुराचारियों के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए लड़ना, क्या फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ के संदेश को ही तो आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं है? जो बातें ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ की प्रमोशन टीम प्रत्यक्ष रूप से कह रही थी वही बात आदिपुरुष की प्रमोशनल टीम अप्रत्यक्ष रूप से नहीं कर रही है?
जिस तरह से सिनेमाघरों में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरला स्टोरी’ दिखाये जाने के दौरान दर्शकों को नारेबाजी के लिए प्रेरित करने की पुख्ता व्यवस्था की जाती थी कुछ उसी तरह की व्यवस्था फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर भी की जा रही है। थियेटर में एक सीट हनुमान जी के लिए खाली रखने की घोषणा की गई है। अब जब दर्शक सिनेमाहॉल में दाखिल होंगे तो निश्चित रूस से उस सीट के प्रति भी अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे जो हनुमान जी के लिए खाली छोड़ी गई हो। तर्क यही दिया जा रहा है कि जहां कहीं भी रामकथा होती है वहां हनुमान जी निश्चित तौर पर मौजूद होते हैं। यह फिल्म 16 जून को एक साथ दुनियाभर के 3000 से भी अधिक थियेटरों में रिलीज की जा रही है। अब एक साथ सभी थियेटरों में हनुमान जी प्रत्येक शो को कैसे देखेंगे और कब तक देखते रहेंगे इसका भले ही कोई स्पष्ट जवाब न हो लेकिन सिनेमाघर में आने वाले दर्शक हनुमान जी के नाम पर खाली छोड़ी गई कुर्सी के पास अपना मत्था टेकने के लिए हाल के अंदर ही कतार में लगने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए।