
SACAC और न्यू दिल्ली फ़िल्म फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित ALT EFF Delhi 2025 ने पर्यावरण-आधारित सिनेमा और दिल्ली–एनसीआर के बिगड़ते पारिस्थितिक संकट पर दो दिनों तक गंभीर और प्रभावशाली संवाद प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मों की स्क्रीनिंग, अरावली संकट पर महत्वपूर्ण पैनल चर्चा, और छात्रों, विशेषज्ञों व नागरिकों की सक्रिय भागीदारी ने यह स्पष्ट किया कि बढ़ती जलवायु आपातस्थिति में सिनेमा जागरूकता और सामाजिक जिम्मेदारी का एक सशक्त माध्यम बन सकता है। दो दिनों में दिखाई गई खोजी डॉक्यूमेंट्री फिल्में जहां सच की पड़ताल करती दिखी, वही इस दौरान हुए चर्चाएं और संवाद आज के पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर सख्त सवाल उठाती भी दिखे।
श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड क्रिएटिविटी (SACAC) और न्यू दिल्ली फ़िल्म फ़ाउंडेशन (NDFF) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ALT EFF Delhi 2025 ने दो दिनों तक पर्यावरण-संबंधी सिनेमा और दिल्ली–एनसीआर के बिगड़ते पारिस्थितिक संकट पर गहरी और प्रभावशाली चर्चा प्रस्तुत की।
ALT EFF (All Living Things Environmental Film Festival) दुनिया का एक प्रमुख पर्यावरण-जलवायु-केंद्रित फ़िल्म महोत्सव है, जो भारत और दुनिया भर से पर्यावरण, पारिस्थितिकी और सामाजिक समाधानों पर आधारित सार्थक और प्रभावी फ़िल्में क्यूरेट करने के लिए जाना जाता है। 6 साल पहले शुरु हुआ ये फेस्टिवल किसी एक जगह, शहर या देश में केंद्रित होने की बजाय 39 से अधिक देशों के कई शहरों में अलग-अलग संस्थाओं के साथ मिलकर आयोजित किया जाता है। दिल्ली में श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड क्रिएटिविटी और न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन के सहयोग से हुए इस फेस्टिवल में राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मों की चुनिंदा स्क्रीनिंग, अरावली संकट पर गंभीर पैनल चर्चा, और छात्रों व नागरिकों की सक्रिय भागीदारी ने यह साबित किया कि बढ़ती जलवायु आपातस्थिति में सिनेमा जागरूकता और सामाजिक जिम्मेदारी को मजबूत करने का सशक्त माध्यम बन सकता है।
राजधानी दिल्ली में 6–7 दिसंबर 2025 को SACAC में आयोजित ये फिल्म फेस्टिवल विद्यार्थियों, शिक्षकों, पर्यावरणविदों, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और फ़िल्मकारों को जलवायु के प्रति सचेत करने के साथ-साथ सिनेमा और बौद्धिक मंथन का एक अनूठा मंच बन कर सामने आया।
उत्सव की शुरुआत शनिवार को दलजीत वाधवा (Director, SACAC) और आशीष के सिंह (Founder, NDFF) के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें SACAC और NDFF की पर्यावरण-संवेदनशील सिनेमा और रचनात्मक जागरूकता के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया गया। पहले दिन देश-विदेश की 6 महत्वपूर्ण लॉन्ग और शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री और एनीमेशन फिल्में प्रदर्शित की गईं। हर स्क्रीनिंग के बाद उत्सुक और सार्थक चर्चाएँ हुईं, जिनमें विद्यार्थियों ने विशेष रूप से गहरी रुचि दिखाई। पहले दिन के आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार, फ़िल्मकार और शिक्षाविद रमेश मेनन ने भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों और जलवायु आपातकाल की गंभीरता पर अपने विचार साझा किए।

फोटोग्राफी प्रतियोगिता और वन्यजीव फ़ोटोग्राफ़ी प्रदर्शनी
इस फिल्म फेस्टिवल के तहत स्कूल स्तरीय फ़ोटोग्राफ़ी प्रतियोगिता (कक्षा 9–12) का भी आयोजन किया गया था। पहले दिन इस के विजेता घोषित किए गए। इनमें प्रथम पुरस्कार —नोएडा के यथार्थ चौधरी को जबकि द्वितीय पुरस्कार — शौर्य प्रताप बिष्ट को मिला। दोनों ही प्रतिभाशाली विजेता 9वीं कक्षा के विद्यार्थी हैं और दोनों ही नोएडा के पाथ वेज़ स्कूल के छात्र हैं। शौर्य नन्ही सी उम्र में ही वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के तौर पर उत्साहजनक काम कर रहे हैं और अपनी पहचान बना रहे हैं। शौर्य भी पाथवेज़ स्कूल के छात्र है। दोनों विजेताओं को OM Systems द्वारा सम्मानित किया गया।


समाज को जगाती महत्वपूर्ण फिल्में
फेस्टिवल के दोनों दिन बेहद महत्वपूर्ण और नई जानकारियों से भरपूर कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्में प्रदर्शित की गईं। इनमें सामाजिक अन्याय, विस्थापन, जंगलों का विनाश, शहरी सीवेज प्रणाली और मानव–पर्यावरण संबंध जैसे मुद्दों को गहराई से दिखाया गया।
दो दिनों में ALT EFF द्वारा क्यूरेट की गई महत्वपूर्ण फ़िल्मों में प्रमुख रहीं:
- फ़्यूचर काउंसिल- पुरस्कार विजेता ऑस्ट्रेलियाई फ़िल्मकार डेमन गेम्यू की यह डॉक्यूमेंट्री आठ बच्चों की यूरोप यात्रा का अनुसरण करती है, जहाँ वे वैश्विक नेताओं से मिलकर पर्यावरणीय संकट के वास्तविक समाधानों की खोज करते हैं — यह यात्रा पूरी तरह युवाओं की तात्कालिक और निर्भीक दृष्टि से कही गई है। Trailer->https://www.youtube.com/watch?v=sLPQxANfoxo
- हाउ मल्लाह वीमेन फॉट-बिहार की 5,000 से अधिक मल्लाह महिलाओं के संघर्ष की यह मार्मिक कहानी जातिगत हिंसा, यौन शोषण और पितृसत्ता के खिलाफ उनके अधिकारों की लड़ाई को प्रस्तुत करती है। Trailer-> https://www.youtube.com/watch?v=zig8TzzUiWs
- ब्लड वुड-रोमानिया के अंतिम प्राथमिक वनों पर वाणिज्यिक कटाई के बढ़ते खतरे की जांच करती यह फ़िल्म न सिर्फ ग्रीनवॉशिंग, सक्रियता और प्राचीन वनों की जलवायु-स्थिरता में भूमिका को बल्कि कई चौंकाने वाले तथ्यों को भी उजागर करती है। Trailer-> https://www.youtube.com/watch?v=FTCrputkmhs
- बिनीथ द पैनल: द हिडन लॉसेज़ ऑफ़ इंडिया’ज़ सोलर पार्क्स-यह डॉक्यूमेंट्री तमिलनाडु के रामनाथपुरम में बड़े सोलर पार्कों के कारण हुए सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को सामने लाती है — ज़मीन का नुकसान, पानी का संकट और समुदायों का पलायन इसकी मुख्य धुरी है। Trailer-> https://www.youtube.com/watch?v=-6xgAAN1aRE
- घुघुती की माला- उत्तराखंड की मकर संक्रांति पर आधारित यह सुंदर एनिमेशन भोजन, लोककथाओं, परिवार और संस्कृति को जोड़ता है और प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान को रेखांकित करता है। Trailer-> https://www.youtube.com/watch?v=6xiB5s2eCd4
- देसी ऊन- दक्कनी ऊन और चरवाही परंपरा की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत को बालू मामा और उनके पवित्र झुंड के माध्यम से प्रस्तुत करती यह फ़िल्म आधुनिक समाज द्वारा खोई जा रही पारंपरिक बुद्धिमत्ता पर प्रश्न उठाती है। Trailer-> https://www.youtube.com/watch?v=fbU4eEsT9w4

हमारा पर्यावरण, हमारा भविष्य
दूसरे दिन एक महत्वपूर्ण पैनल डिस्कशन भी आयोजित किया गया, जिसका विषय था— ‘हमारा पर्यावरण, हमारा भविष्य: स्थानीय चुनौतियाँ और समाधान’। इस महत्वपूर्ण सत्र में तीन प्रतिष्ठित वक्ता शामिल थे। इनमें वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजय कबीर थे, जिनकी पहचान एक पर्यावरण चिंतक के तौर पर भी है। प्रकृति औऱ वन्यजीवन को समर्पित जंगलकथा नाम के एक प्लैटफॉर्म का भी वो संचालन करते हैं। उनके अलावा People for Aravallis नाम के समूह की ओर से डॉ. अपूर्व ग्रोवर शामिल हुए जो पेशे से तो नेत्र विशेषज्ञ हैेे, लेकिन पर्यावरण को लेकर संवेदनशील हैे और अरावली से जुड़े मुददे पर बहुत सक्रिय हैं। People for Aravallis की ओर से मीनू घई भी इस बातचीत में शामिल हुईं, जो सतत जीवनशैली की समर्थक हैं और अरावली को लेकर लंबे समय से सक्रिय रही हैं। सत्र का संचालन आशीष के सिंह, संस्थापक NDFF ने किया।
इस चर्चा में जो प्रमुख बिंदु उठे वो इस प्रकार हैं-

• वायु गुणवत्ता और बच्चे — डॉ. अपूर्व ग्रोवर ने कहा कि दिल्ली की हवा इतनी विषाक्त हो गई है कि छोटे बच्चों और शिशुओं को बाहर ले जाना भी खतरनाक हो गया है। उन्होंने अरावली पर्वतमाला के जलवायु संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान को भी रेखांकित किया और सवाल खड़ा किया कि हम आने वाली पीढ़ी को कैसी दुनिया सौंप कर जाएंगे…।
• 53 दिन लगातार खराब हवा — संजय कबीर ने याद दिलाया कि 14 अक्टूबर से 53 दिनों तक दिल्ली–एनसीआर की AQI “खराब” या “बहुत खराब” श्रेणी में रही, जो कि एक बेहद खतरनाक स्थिति है। • अरावली संकट — अरावली और अन्य पर्वतों की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भावुक होती हुई मीनू घई ने चेताया कि सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय अरावली के विनाश का रास्ता खोलता है, जिसकी कीमत दिल्ली-एनसीआर को बड़े पैमाने पर चुकनी पड़ सकती है। उन्होने कहा कि हमारी संस्कृति में पर्वतों को देवतुल्य माना जाता रहा है और अब उसकी तबाही का रास्ता खोलना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होने लोगों से इस बारे में ऑनलाइन याचिका साइन करने की अपील भी की।
• दृश्य प्रमाण — पैनल ने अवैध खनन, वनों की कटाई के परिणामो और पारिस्थितिक पतन पर महत्वपूर्ण वीडियो दिखाए, जिन्हें देखकर श्रोता स्तब्ध रह गए।
• नागरिक कार्रवाई — People for Aravallis के प्रयासों का उल्लेख करते हुए पैनल ने बताया कि यह पर्वतमाला दिल्ली–एनसीआर के लिए एक जीवनरक्षक पारिस्थितिक ढाल है, जिसकी रक्षा आवश्यक है।
बतौर संचालक समापन करते हुए आशीष के सिंह ने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा: “धरती पर सभी की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी के लालच के लिए नहीं।”

दोनों दिन बतौर होस्ट समारोह का संचालन सिमरन (AAFT), आकृति तिवारी (SACAC), निवृत्ति खत्री (AAFT)और अभय सिंह तंवर (SACAC) ने किया, जबकि प्रोडक्शन और कोऑर्डिनेशन कृष गुप्ता और निशा गुप्ता द्वारा संभाला गया। फेस्टिवल में बतौर वॉलंटियर वितस्ता बख्शी, उन्नति बोयाट और रेवा पाल (K R Mangalam University) ने दोनों दिन कार्यक्रमों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
अंत और असर: जागरूक नागरिकता की ओर एक कदम
उत्सव का समापन दलजीत वाधवा और आशीष के सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी दर्शकों, पैनलिस्टों, विद्यार्थियों, फ़िल्मकारों, शिक्षकों, तकनीशियनों और वॉलंटियर्स का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस सामूहिक जागरूकता अभियान में योगदान दिया।
दो दिनों की प्रभावशाली फ़िल्मों, विचारोत्तेजक चर्चाओं, युवाओं की भागीदारी और पर्यावरणीय अंतर्दृष्टि ने ALT EFF Delhi 2025 को इस बात का सशक्त उदाहरण बना दिया कि सिनेमा जागरूकता और परिवर्तन का एक प्रभावी माध्यम है।

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