
टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर (TCOTF) ने नवंबर चैप्टर के साथ दिल्ली-NCR में अपने लगातार छठे सफल आयोजन को पूरा किया, और यह साबित किया कि संवेदनशील, रचनात्मक और सहयोगी सिनेमा समुदाय बनाने का NDFF का अभियान लगातार मज़बूत हो रहा है। हर महीने फिल्मकार, लेखक, छात्र, तकनीशियन और सिनेप्रेमियों का एक जीवंत समूह यहाँ जुटता है, जिससे यह पहल राजधानी का एक अनोखा community-driven creative hub बन चुकी है। नवंबर चैप्टर कई मायनों में बहुत खास रहा। पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट में…
‘सिनेमा में कंटेंट सिर्फ कच्चा माल है, अपने आप में कला नहीं। एक निर्देशक उस कंटेंट को किस परिप्रेक्ष्य में देखता है, उसे बरतता कैसे है… वो दृष्टि, वो समझ, वो ट्रीटमेंट उसे कला बनाती है।‘ ये कहना है सिनेमा के अनुभवी सिनेमैटोग्राफर और फिल्म एजुकेटर हर्ष विराग का। हर्ष विराग न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन द्वारा आयोजित मासिक आयोजन टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर में बोल रहे थे।

हर महीने श्री अरबिंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड क्रिएटिविटी (SACAC) के साथ संयुक्त रुप से आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम की यात्रा अब अपने लगातार छठे अध्याय तक पहुँच चुकी है। IICS और MESC जैसी संस्थाओं के सहयोग से आयोजित होने वाले इस इंटरैक्टिव आयोजन के छठे संस्करण का ‘नवंबर चैप्टर’ के नाम से सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।
हर बार सिनेमा से जुड़े नए एक्सपर्ट और अनुभवी पेशेवर कलाकार-टेक्नीशियन, नए विचार और नई ऊर्जा को एक मंच पर लाने वाला यह आयोजन राजधानी में एक अनूठा community-driven cinema space बन चुका है। जून में शुरू हुई NDFF की इस पहल का उद्देश्य दिल्ली-NCR में एक गंभीर, संवेदनशील और जीवंत रचनात्मक समुदाय तैयार करना है—जहाँ फिल्मकार, लेखक, तकनीशियन, छात्र, क्रिएटिव प्रोफेशनल्स और सिने-प्रेमी एक साथ मिलकर सीख सकें, सहयोग कर सकें और अपनी रचनात्मकता को आगे बढ़ा सकें।
सिनेमा की जमघट में सिनेमाई सुर
कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत भाषण और सामूहिक परिचय से हुई, जिसमें प्रतिभागियों और युवा फिल्मकारों-प्रोफेशनल्स-छात्रों ने अपने बारे में और सिनेमा से जुड़े किसी व्यक्तिगत अनुभव और विचार को साझा किया।
इस interactive शुरुआत ने माहौल को खुला, मैत्रीपूर्ण और रचनात्मक बना दिया।

पर्यावरण संवेदना की ओर—ALT EFF फेस्टिवल की घोषणा
SACAC की निदेशक दलजीत वाधवा ने SACAC और NDFF द्वारा अगले महीने आयोजित होने वाले ALT EFF Environmental Film Festival के बारे में बताया और इस पहल की पर्यावरणीय संवेदनशीलता पर आधारित दृष्टि साझा की। पर्यावरण फिल्मों पर आधारित इस दो दिनों के फिल्म फेस्टिवल में दुनिया भर की फिल्में शामिल हो रही हैं और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण प्रदर्शनियां और पैनल डिस्कशन भी आयोजित किए जा रहे हैं।

क्राफ्ट एंड क्रू: हर्ष विराग की सिनेमैटोग्राफी मास्टरक्लास
क्राफ्ट एंड क्रू सेगमेंट में अनुभवी सिनेमैटोग्राफर हर्ष विराग मुख्य वक्ता थे। हर्ष विराग के पास डेढ़ दशक से अधिक का इंडस्ट्री का अनुभव है और वो फिल्म एजुकेटर के तौर पर भी महत्वपूर्ण संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। फिलहाल वो एशियन एकैडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन से बतौर फिल्म शिक्षक जुड़े हैं। उन्होंने मोबाइल से लेकर DSLR और हाई-एंड सिनेमा कैमरा तक—हर साधन के रचनात्मक उपयोग पर चर्चा की और बताया कि कैमरा केवल उपकरण नहीं, बल्कि भावनाओं और कहानी कहने की भाषा है। कई फिल्मों की स्लाइड्स दिखाकर उन्होने बताया कि कैमरा और सिनेमैटोग्राफी किस तरह किसी कहानी के मूड का विजुअल बेस तैयार करते हैं। उन्होने सिटिज़न केन से लेकर हिचकॉक और पथेर पांचाली से लेकर क्रिस्टोफर नोलन की फिल्मों तक के स्लाइड्स दिखाकर सिनेमा में विजुअल ग्रामर के बारे में विस्तार से बताया। अपने प्रेजेटेंशन के दौरान हर्ष विराग ने वीडियोग्राफी और सिनेमैटोग्राफी के बीच महत्वपूर्ण अंतर को समझाया। उन्होने बताया कि वीडियोग्राफी महज़ मूविंग इमेजेज़ को कैद करने को बोलते हैं, जबकि सिनेमैटोग्राफी में विजुअल्स को इस तरह से क्रिएट करना होता है कि मनचाहा इमोशन पैदा किया जा सके।
यह सत्र युवा फिल्मकारों के लिए अत्यंत उपयोगी रहा।

राइटर्स वर्ड / ऑथर्स ऐंगल – लेखक वेद कुमार शर्मा
TCOTF ने इस चैप्टर में अपने नए सेगमेंट राइटर्स वर्ड / ऑथर्स ऐंगल का दूसरा आयोजन भी किया।
इस बार अतिथि थे—लेखक और अनुवादक वेद कुमार शर्मा, जिन्होंने रूसी साहित्य के महत्वपूर्ण अनुवाद किए हैं और साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर और राइटर भी हैं। उन्होने अपनी किताबों ‘ज़िंदगी जश्न है’ के बारे में बताया जो डिप्रेशन से बचने और ज़िंदगी को खुश रहकर जीने के बारे में है। वेद कुमार शर्मा की इस किताब में इसमें लुप्त होती जा हंसी के बारे में व्यंग्य के तौर पर बेहतरीन चर्चा है, जिससे संबंधित अध्याय उन्होने पढ़कर सुनाया। इसमें भविष्य की एक काल्पनिक स्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष कहता है- हंसी की बात एक गंभीर विषय है, इसमें ज़रा सी भी ढील हमें आने वाली पीढ़ियों का गुनहगार बना देगी।

वेद कुमार शर्मा ने बताया कि कहानी की संवेदनाएँ साहित्य से सिनेमा तक कैसे यात्रा करती हैं, इसलिए एक रचनाकार के लिए मानसिक तौर पर स्वस्थ रहना ज़रुरी है। उन्होने कहा कि इसे समझना आज के हर लेखक और फिल्मकार के लिए बेहद ज़रूरी है।
नए विचारों, नई फिल्मों और नए सहयोगों का मंच
NDFF के फाउंडर आशीष के. सिंह ने Make Cinema अभियान, आने वाले पर्यावरण फिल्म फेस्टिवल समेत वर्कशॉप्स और नई गतिविधियों की जानकारी साझा की। उन्होने सिनेमा को लेकर बदलते रुझान और टेक्नॉलजी की भी चर्चा की।

चाय पर चर्चा और क्रिएटिव कनेक्शन
कार्यक्रम का समापन करते हुए NDFF की ओर से हरेंदर कुमार ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस पूरे कार्यक्रम का संचालन बतौर होस्ट सिमरन और निवृत्ति खत्री ने किया। टेक और प्रोडक्शन कृष गुप्ता ने संभाला जबकि मीडिया प्रासिक मेश्राम और कोऑर्डिनेशन शुभनव जैन ने संभाला। इसके बाद ‘चाय पर बातचीत’ का सेशन हुआ, जहाँ प्रतिभागियों ने आपस में और मेहमानों से खुलकर संवाद किया और नए रचनात्मक संपर्क बनाए। NDFF जल्द ही दिसंबर चैप्टर की घोषणा करेगा।

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