
टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर का सितंबर चैप्टर एक प्रेरक और यादगार आयोजन रहा, जिसमें सिनेमा के दो महत्वपूर्ण पक्षों – साउंड और पटकथा लेखन – पर गहन चर्चा हुई। नेटफ्लिक्स की चर्चित फिल्म कटहल के सह-लेखक और दो बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अशोक मिश्र तथा पुष्पा 2और इंडियन 2जैसी फिल्मों के लिए काम कर चुके अंतरराष्ट्रीय अनुभव से सम्पन्न साउंड डिज़ाइनर सिद्धार्थ सदाशिव ने बतौर अतिथि शिरकत की। दिल्ली-एनसीआर के फिल्मकारों, छात्रों और सिनेप्रेमियों ने इनसे रूबरू होकर न केवल तकनीकी और रचनात्मक पहलुओं को समझा बल्कि अर्थपूर्ण सिनेमा की नई संभावनाओं पर भी विचार किया।
रविवार, 21 सितंबर 2025, एक ऐसा दिन बना जब टॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर (TCOTF) के सितंबर चैप्टर ने हार्मनी हाउस, SACAC को सिनेमाप्रेमियों, लेखकों और सृजनशील आवाज़ों के मिलन और रचनात्मक मंथन का अड्डा बना दिया। दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक, यह आयोजन उन लोगों को बुलावा था जो स्क्रीन पर कहानियाँ सुनना ही नहीं, उन्हें महसूस करना चाहते हैं, रचना चाहते हैं और उस प्रक्रिया में शामिल होना चाहते हैं।
माहौल सिनेमा का, मंच क्रिएटिविटी का
इस बार का विषय बेहद दिलचस्प और महत्वपूर्ण था— रिश्ते, साउंड और कहानियाँ। अक्सर सिनेमा को दृश्य-आधारित माना जाता है, लेकिन यहाँ जोर था उस अनजान पहलू पर जो ध्वनि यानी साउंड द्वारा दर्शकों के मन को छूता है। NDFF, SACAC, MESC और IICS के सहयोग से यह सत्र आयोजित किया गया — और हर प्रतिभागी के लिए निशुल्क था, यह साबित करता है कि कला तक पहुँच में बाधाएं नहीं होनी चाहिए।
क्राफ्ट & क्रू: साउंड डिजाइनर सिद्धार्थ सदाशिव
पहला सत्र क्राफ्ट & क्रू था, जिसमें सिद्धार्थ सदाशिव, अर्थपूर्ण साउंड डिज़ाइन और प्रोडक्शन साउंड मिक्सिंग के अनुभवी एक्सपर्ट, आए। उन्होंने बताया कि फिल्मों में संगीत से अलग जो आवाज़ प्रत्यक्ष सुनाई देती है, वह किस तरह रिकॉर्डर और मिक्सर की जुबानी होती है।

उनके अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के साथ, उनकी हालिया महत्वपूर्ण फिल्मों में Pushpa 2: The Rule, Indian 2, Lucifer 2: Empuraan, TEST और Aabeer Gulaal शामिल हैं। उन्होंने दुनिया भर के मिक्सर्स के workflow, डिज़ाइन तकनीक, और दृश्य-विहीन ध्वनि निर्माण की चुनौतियाँ साझा कीं। क्लिप्स और उदाहरणों के ज़रिये उन्होंने दिखाया कि कैसे ध्वनि एक दृश्य का स्वभाव बदल देती है और दर्शक की भावनाओं को दिशा देती है।
ऑडियंस के सवालों का जवाब देते हुए सिद्धार्थ सदाशिव ने बताया कि किस तरह ऑपेनहाइमर, ज़ोन ऑफ इंटेरेस्ट या हिंदी में एनीमल जैसी फिल्मों से साउंड और साइलेंस का रचनात्मक इस्तेमाल किया गया। उन्होने ये भी बताया कि छोटे बजट की फिल्मों में आम तौर पर साउंड डिज़ाइन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता जिससे फिल्म की क्वालिटी पर असर पड़ता है। फिल्मकारों के सुझाव देते हुए उन्होने कहा कि बजट सीमाओं की वजह से खुद साउंड पक्ष का काम करने या उसकी अनदेखी से बचें।
SVFS शंघाई की फैकल्टी रह चुके और अब IICS से जुड़े सिद्धार्थ ने विशेष टिप्स दिए—microphone placement, ambient control, mixing layers—और बताया कि कैसे ब्लॉग और सोशल मीडिया पर और उसके ज़रिए वे अपने ज्ञान को आगे बढ़ाते हैं।
स्पॉटलाइट: अशोक मिश्रा और सिनेमा का लेखन
स्पॉटलाइट सत्र में उपस्थित थे अशोक मिश्रा, सुप्रसिद्ध पटकथा लेखक और दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता। उन्होंने नसीम (1996) और समर (1999) जैसी फिल्मों के लिए पुरस्कार जीते। साथ ही भारत एक खोज, वेलकम टू सज्जनपुर, वेल डन अब्बा जैसी कृतियो के लिए उनके लेखन ने उनकी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है।
उनकी लिखी (सहलेखक) हालिया नेटफ्लिक्स फिल्म कटहल (निर्देशक- यशोवर्धन मिश्रा) को 71वें राष्ट्रीय पुरस्कार में बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी का सम्मान मिला। उन्होंने अपने सत्र में रिसर्च की भूमिका पर विशेष ज़ोर दिया — कहा कि संवाद लिखने में तथ्य, संदर्भ और स्थानीय अनुभवों का संयोजन कहानी को विश्वसनीय बनाता है।

अशोक मिश्रा ने दूरदर्शन के सीरियल सर्कस से लेकर कटहल तक की अपनी यात्रा में तमाम फिल्मों की कहानियों और पटकथा-संवादों के पीछे की तस्वीर पर विस्तार से चर्चा की। उन्होने बताया कि किस तरह दिल्ली की वास्तविक घटना को कटहल फिल्म के ज़रिए पर्दे पर लाया गया। ये भी बताया कि कैसे रिसर्च के दौरान मिले नए-नए किरदार और उनकी कहानियों ने फिल्म की मूल कथा को एक नया रूप दे दिया।
उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने कटहल की पटकथा को लिखते समय सामाजिक यथार्थ व शिल्प दोनों को साथ जोड़ा। उनकी मौजूदगी विशेष रही क्योंकि वे 23 सितंबर को होने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह के लिए दिल्ली में थे।
ऑडियंस से संवाद के दौरान उन्होने अपनी पहली राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म नसीम के बनने का ज़िक्र किया। उन्होने बताया कि किस तरह इसको लिखने-बनने में 3 साल लगे। उन्होने फिल्म के अहम किरदार नसीम के दादा जान के रोल के लिए सही अभिनेता के तलाश के भी दिलचस्प वाकये बताए कि किस तरह अमिताभ बच्चन से शुरू होकर नसीरुद्दीन शाह से होते हुए कैफ़ी आज़मी साहब तक ये रोल पहुंचा और किस तरह लकवाग्रस्त होने के बावजूद उन्होने इस फिल्म की शूटिंग की।
अशोक मिश्रा के इन संस्मरणों में एक लेखक की श्रमसाध्य मेहनत, धैर्य और निरंतरता की भी झलक मिली जो उभरते लेखकों के लिए काफी प्रेरक रहा।
टेक द फ्लोर: नई आवाज़ों को अवसर

टेक द फ्लोर: द 5-मिनट विंडो सेगमेंट ने प्रतिभागियों को मौका दिया कि वे अपनी कहानियाँ, विचार या परियोजनाएं सामने रखें। इस बार वेद कुमार शर्मा, जो हिन्दी में रूसी साहित्य के अनुवादक हैं, ने एक फिल्म-आधारित कहानी प्रस्तुत की। इस सत्र ने TCOTF की ताकत को दिखाया—कि यह मंच नई आवाज़ों को सुनने और जोड़ने का है।
मेक सिनेमा कैंपेन अपडेट
NDFF के संस्थापक आशीष के सिंह ने मेक सिनेमा अभियान की प्रगति बताई। इस पहल का लक्ष्य है—छह महीने में छह लघु फिल्में बनाना, इसका टैगलाइन है“छोटी फिल्में, बड़ी आवाज़ें”. उन्होंने रेखांकित किया कि यह अभियान नए फिल्मकारों को अवसर मुहैया करवाएगा और यथार्थ आधारित कहानियों को मजबूती से आगे ले जाएगा।
चाय पर चर्चा
कार्यक्रम का समापन चिट-चैट ओवर टी एंड लाइट बाइट्स नामक नेटवर्किंग सेशन के साथ हुआ। सुश्री दलजीत वाधवा (डायरेक्टर, SACAC) ने कहा कि इस तरह के मंच संवाद और सहयोग के लिए ज़रूरी हैं। वैभव मैत्रेय (NDFF, ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग) ने इस पहल के दीर्घकालीन और स्व-निर्भर दृष्टिकोण को रेखांकित किया, और हरिंदर कुमार (NDFF के ट्रेज़रर) ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
बतौर होस्ट कार्यक्रम का संचालन महक आनंद और प्रियांशु कुमार ने किया। टीम एनडीएफएफ की ओर से कार्यक्रम का प्रोडक्शन कंट्रोल कृश गुप्ता ने किया, जबकि मीडिया और कोऑर्डिनेशन की जिम्मेदारी प्रियांशु चंद्रा, रोशन राम और अनुराग कुमार ने संभाली।

Anchor ने सभी से आग्रह किया कि वे चाय पर रुके रहें, सिनेमा और रचनात्मकता पर आगे चर्चा करें, और एक-दूसरे को और जानें — क्योंकि TCOTF केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक क्रिएटिव कम्युनिटी बनाने की कोशिश है।
TCOTF के बारे में
Talk Cinema On The Floor (TCOTF) NDFF की मासिक इंटरैक्टिव पहल है, जो फिल्मकारों, कलाकारों, विद्वानों, नीति विशारदों और सिनेमा प्रेमियों को एक साझा मंच देती है — विचार साझा करने, प्रोजेक्ट पिच करने, ज्ञानवर्धक सत्र, टैलेंट प्रेजेंटेशन और कोलैबरेशन ढूंढने का यह अनूठा आयोजन TCOTF को दिल्ली-एनसीआर में सार्थक सिनेमा की दिशा में एक मजबूत क्रिएटिव इकोसिस्टम बना रहा है।


Media Coverage



