पहचान की तलाश वाया ‘पाताललोक’
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अमेज़़ॉन प्राइम पर अनुष्का शर्मा की प्रोडक्शन कंपनी ‘क्लीन स्लेट फिल्म्स’ की नई वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ इन दिनों बेहद चर्चित हो रही है … बतौर एक पेंचदार, क्राइम-सस्पेंस-थ्रिलर वेब सीरीज़ जो आपको लगातार बांधे रखती है। कहानी में कई सबटेक्स्ट भी हैं और इन्ही में एक है पहचान की पीड़ा। वो पीड़ा जिससे सीरीज़ का मुख्य पात्र इंस्पेक्टर हाथी राम चौधरी भी जूझ रहा है, और कहीं न कहीं वो चार आरोपी भी जिन्हे एक मीडिया टाइकून के कत्ल की साज़िश के आरोप में पकड़ा गया है। इन सभी की कहानी के ज़रिए समाज के तमाम सतहों पर जारी संघर्ष की परते भी उघड़ती हैं, जो पाताल लोक को महज़ एक क्राइम थ्रिलर से ऊपर ज़मीनी मुद्दों से जूझती एक वास्तविक कहानी बनाती हैं। आज के मौजूदा राजनैतिक-सामाजिक परिदृश्य में ‘पाताल लोक’ के ऐसे ही एक पहलू को टटोलती अमिताभ श्रीवास्तव की समीक्षा।
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पाताल लोक के इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी की सब तरफ ख़ूब तारीफ़ हो रही है लेकिन हम यह न भूलें कि हाथीराम की दास्तान इमरान अंसारी के ज़िक्र के बिना अधूरी है। पाताल लोक की चुस्त पटकथा की एक बड़ी ख़ूबी दो पुलिस वालों हाथीराम चौधरी और इमरान अंसारी के किरदारों के रिश्ते का बहुत खूबसूरत ट्रैक भी है। अमिताभ बच्चन-धर्मेंद्र या अमिताभ बच्चन-शशि कपूर की जोड़ियों की याद दिलाता हुआ। सीनियर-जूनियर की दफ़्तरी औपचारिकता से शुरू होकर बड़े-छोटे भाई जैसी आत्मीयता और फिर दोस्ती तक दोनों के बीच की केमिस्ट्री बहुत अच्छी तरह से कहानी का ग्राफ़ लगातार ऊपर ले जाती है ।
हाथीराम की भूमिका में जयदीप अहलावत का काम बहुत शानदार है और उन्हें इसमें बेहतरीन साथ मिला है इमरान अंसारी के किरदार में इश्वाक सिंह का ।
बेतहाशा गालीगलौज करने वाले सख़्त मिज़ाज हाथीराम का एकदम उल्टा है नफ़ीस, शालीन और नर्म इमरान जो ऊँची आवाज़ में बोलते नहीं दिखता। यूपीएससी की तैयारी में लगे इमरान अंसारी की मौजूदगी में पूछताछ के दौरान हाथीराम चौधरी एक मुसलमान अभियुक्त के लिए एक ऐसा शब्द इस्तेमाल करता है जो हमारे समाज में पूरे मुस्लिम समुदाय के प्रति हिक़ारत दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता है। बोलते ही हाथीराम को यह अहसास होता है कि कुछ ग़लत बोल दिया। इमरान के चेहरे के हावभाव बहुत महीन ढंग से उसका असहज होना दिखाते हैं लेकिन वह कोई मुखर प्रतिक्रिया नहीं देता। हाथीराम गलियारे में आकर लगभग माफ़ी वाले अंदाज़ में इमरान से कहता है कि ज़्यादा हो गया । लेकिन इमरान सिर्फ़ इतना कहता है -It worked, sir । यानि उसे यह अहसास है कि पूछताछ के दौरान इस तरह के हथकंडे अपनाना आम बात है और यह कारगर साबित होता है।
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जहाँ यह सीरीज़ ख़त्म होती है हम देखते हैं हाथीराम यूपीएससी के इंटरव्यू के लिए इमरान को अपनी पुलिस गाड़ी में लिफ़्ट देता है ताकि उसे देर न हो । हाथीराम का यह कहना कि ‘ मैं न बन सका न सही, कम से कम दोस्त तो बड़ा अफ़सर बने’ बहुत मार्मिकता लिए हुए है। इस संवाद में अपनी नाकामी की उदासी भी है और एक युवा साथी के बेहतर भविष्य की शुभकामना भी।
पाताल लोक में हम अल्पसंख्यकों के मसले पर समाज की सोच की परतें भी उघड़ती देखते हैं। कैसे एक व्यक्ति पर टिप्पणी करते हुए पूरे समुदाय को निशाना बनाया जाता है, सीरीज़ यह बख़ूबी दिखाती है। इमरान केस के एक संदिग्ध ताहिर को पकड़ने में नाकाम रहता है तो उसके थाने का एक हिंदू पुलिस वाला कहता है- एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान को पकड़ने भेजोगे तो यही होगा। सीबीआई की अफ़सर इमरान के आईएएस बनने की बात पर कहती है- आजकल इनकी कम्युनिटी से काफी आ रहे हैं। इमरान अंसारी के आईएएस के इंटरव्यू की तैयारी के सिलसिले में अल्पसंख्यकों की स्थिति से जुड़े सवाल पर उसका प्रशिक्षक कहता है – पाॅलिटिकली लोडेड सवाल के जवाब में पाॅज़िटिव, प्राॅग्रेसिव रहना ज़रूरी है।
सीरीज़ में ‘बड़े’ के गोश्त के शक में भीड़ के हाथों पीट-पीट कर मार डालने और जेल में मुसलमान अभियुक्त को ‘पाकिस्तानी’ कह कर उस पर एक दूसरे क़ैदी के हमले की उपकथाएं भी हैं जो दरअसल आजकल समाज में मुस्लिम समुदाय के प्रति बढ़ रही नफ़रत और हिंसा की ही झलक हैं।
सबसे मार्मिक टिप्पणी लेकिन एक अभियुक्त कबीर के पिता के माध्यम से आती है जब वह हाथीराम और इमरान से कहता है- जिसे मैंने मुसलमान तक नहीं बनने दिया, उसे आप लोगों ने जिहादी बना दिया?
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