द इल्लीगल: कुछ ख्वाब…चंद उम्मीदें
‘लाइफ़ ऑफ़ पाई’ फ़ेम एक्टर सूरज शर्मा और निर्देशक दानिश रेन्ज़ू की नई फिल्म ‘द इल्लीगल’ अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज़ हुई है। NDFF के अध्यक्ष अमिताभ श्रीवास्तव की समीक्षा
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
-निदा फ़ाज़ली
दानिश रेन्ज़ू की फिल्म द इल्लीगल (The Illegal ) सपनों, महत्वाकांक्षाओं, उम्मीदों , नाकामियों और मायूसियों के बीच और उनके बावजूद आशावाद की एक प्यारी सी कहानी है । कश्मीर में जन्मे दानिश कश्मीर के माहौल पर बनाई गई अपनी पहली फ़िल्म हाफ़ विडो (Half Widow ) से अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म बिरादरी में चर्चित हुए थे जो श्रीनगर की एक ऐसी महिला की कहानी है जो अपने गुमशुदा पति की तलाश कर रही है।
अपनी दूसरी फिल्म द इल्लीगल में दानिश मुख्य किरदार हसन के ख़्वाब की कहानी कहने के साथ साथ अमेरिका में रह रहे प्रवासियों की पीड़ा के ज़रिये उस तथाकथित चमकदमक वाली अमेरिकी ज़िंदगी के सपने की कलई भी खोलते हैं । फ़िल्म की टैग लाइन कहती है- The American dream, at what cost? यानि अमेरिका का सपना, किस क़ीमत पर ?
उम्मीद है फ़िल्मों के शौक़ीन लोग आंग ली की फिल्म लाइफ़ ऑफ पाई में समंदर के बीच हिचकोले खाती नाव में रिचर्ड पारकर नाम के शेर के साथ सफ़र करने वाले पाई पटेल को भूले नहीं होंगे। पाई पटेल के किरदार के लिए इरफ़ान खान के अलावा सूरज शर्मा की ख़ूब तारीफ़ हुई थी। सूरज शर्मा अब द इल्लीगल में एक युवा भारतीय मुसलमान हसन के केंद्रीय किरदार में हैं। दिल्ली के दरियागंज के एक औसत मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार का लड़का हसन फ़िल्मकार बनना चाहता है। विदेश जाकर बाकायदा फ़िल्म बनाने की बारीकियों का अध्ययन करना चाहता है। हसन अपने परिवार के लोगों और आसपास की दुनिया को वीडियो में उतारता रहता है। मां-बाप और बहन उसे प्यार करते हैं और पिता अपनी दुनियादार सोच के बावजूद उसके शौक़ की ख़ातिर पैसा जुटाकर उसे अमेरिका भेज देते हैं। आदिल हुसैन, नीलिमा अज़ीम और श्वेता त्रिपाठी ने पिता, माँ और बहन के किरदार में बढ़िया काम किया है।
लाॅस एंजिलिस आकर हसन को पहला झटका लगता है जब उसके मामूजान और मामीजान उसे जता देते हैं कि वह उनके साथ नहीं रह सकता। उसे एक रेस्तराँ में काम मिल जाता है जहाँ बाबाजी नाम का बुज़ुर्ग कर्मचारी उससे हमदर्दी रखता है। हसन बाबाजी के साथ ही रहने लगता है। बाबाजी 25 साल से विदेश में है , अपनी बेटी गीता से मिलने हिंदुस्तान जाना चाहता है लेकिन रेस्तरां मालिक ख़ान ने उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर रखा है। रेस्तराँ में कोरिया, ईराक़, मेक्सिको के प्रवासी वेटर हसन के साथी बनते हैं। अपने घर लौटना चाहते हैं लेकिन रेस्तरां मालिक के शिकंजे में फँसे हुए हैं। रेस्तराँ में आने वाली एक लड़की जेसिका उसकी दोस्त बन जाती है , दोनों में नज़दीक़ियाँ बढ़ती हैं लेकिन हसन के हालात और उसके अंतर्द्वंद्व उसे प्रेम की डगर पर आगे बढ़ने से रोक देते हैं।
हसन के पारखी फिल्म अध्यापक को उसमें एक अच्छे फ़िल्मकार की संभावना नज़र आती है लेकिन उसकी फिल्म निर्माण प्रक्रिया पर मशहूर फ़िल्मकार फेलिनी का असर देखकर वह कहता है – तुम फेलिनी नहीं हो। तुम हसन हो , मैं हसन को देखना चाहता हूँ। फ़िल्म की कहानी से इतर यह संवाद किसी भी तरह के रचनाकर्म के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण और प्रेरक टिप्पणी की तरह भी देखा जा सकता है। आप अपना असर छोड़ना चाहते हैं तो किसी की नक़ल न करें, अपनी शैली विकसित करें।
पिता की बीमारी और आॅपरेशन की वजह से घर के हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि हसन की पढ़ाई का ख़र्चा उठाना नामुमकिन हो जाता है। फ़िल्म स्कूल छूट जाता है, रह जाती है रेस्तराँ की बेगारी । रेस्तराँ मालिक के क़र्ज़ की वजह से हसन अब घर लौट भी नहीं सकता । वाक़ई लौटना हमारे समय की सबसे मुश्किल क्रिया है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि हसन अपने सपने को मरने नहीं देता। नहीं होता । फ़िल्म के अंत में हम हसन को अपने साथियों की दर्दभरी आपबीती को ही पटकथा में दर्ज करते देखते हैं जिसका शीर्षक है द इल्लीगल । नाकामियों के बावजूद आशावाद पर कहानी ख़त्म करना सुखद है। पूरी फिल्म में दानिश ने हसन के पिता, माँ, बहन, बाबाजी और जेसिका के ज़रिये हौसला बढ़ाने वाले छोटे-छोटे टुकड़े डाले हैं जो बहुत अच्छा असर छोड़ते हैं। फ़ैज़ का शेर याद आता है –
दिल ना-उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है
लंबी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है
इस फ़िल्म में अतिनाटकीयता के सारे तत्व मौजूद थे लेकिन निर्देशक ने बड़ी कुशलता से इसे मेलोड्रामा से बचाये रखा है। सूरज शर्मा ने कमाल का काम किया है। एक और अच्छी बात यह है कि फ़िल्म का केंद्रीय चरित्र मुसलमान होने के बावजूद कहानी में न तो कोई धार्मिक विवाद है न कोई अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रसंग जैसा कि आजकल पर्दे पर मुस्लिम किरदारों को ढालने का चलन है। बल्कि यहाँ हालात के अलावा अगर कोई खलनायक है तो वह रेस्तराँ का मालिक ख़ान है जो ख़ुद भी मुसलमान है।
फिल्म 2019 में अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में चर्चित हो चुकी है। अमेज़न प्राइम पर 22 मार्च से उपलब्ध है।