‘पिकासो’ का दशावतार

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Film ‘Picasso’ poster
Amitabh ji
Amitabh Srivastava

सिनेमा के अकाल के दौर में ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर उमड़ रही कंटेंट की बाढ़ के बीच, अच्छे सिनेमा के तौर पर कुछ राहत भी मिलती रहती है। मराठी फिल्म ‘पिकासो ‘वैसी ही एक फिल्म है…। 22 मार्च को घोषित हुए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘पिकासो ‘को फीचर फिल्म कैटेगरी में स्पेशल मेंशन के तौर पर पुरस्कार के लिए चुना गया है। अमिताभ श्रीवास्तव की संक्षिप्त समीक्षा

महाराष्ट्र के कोंकण इलाक़े के एक गाँव का एक बच्चा पेंटिंग की प्रतियोगिता में पूरे राज्य में अव्वल आया है। उसे गोल्ड मेडल मिला है। अब उसके पास राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीत कर पाब्लो पिकासो की जन्मभूमि स्पेन जाकर पेंटिंग सीखने का मौक़ा है लेकिन उसके लिए 1500 रुपये की फ़ीस चाहिए। पैसा जमा करने के लिए सिर्फ़ एक दिन की मोहलत है। बच्चे का पिता एक शरीफ़ सा , क़ाबिल लेकिन ग़रीब मूर्तिकार है, गणपति की मूर्तियां बनाता है और दशावतार लोकनाट्य शैली के नाटक खेलने वाली घुमंतू नाटक मंडली में प्रमुख किरदार निभाने वाला कलाकार भी है। अच्छा अभिनेता है, अच्छा गायक है लेकिन ग़रीबी की मायूसी में शराब की लत के चलते उसके काम और नाम पर असर पड़ा है। उसकी पत्नी बीमार है, सोनोग्राफी के लिए पैसे जुटाने की भी दिक़्क़त है। इन अभावों के बीच बच्चे का मासूम सा सपना है पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर आगे बढ़ने का । संक्षेप में यही कहानी है मराठी फिल्म पिकासो की जिसका शुक्रवार को अमेज़न प्राइम पर डिजिटल प्रिमियर हुआ ,हालाँकि फिल्म 2019 की है ।

Film ‘Picasso’ poster

पिकासो एक बच्चे की कहानी के साथ-साथ दशावतार लोकनाट्य शैली के कलाकारों का अभिनंदन भी है। लेखक-निर्देशक अभिजीत मोहन वारंग ने फ़िल्म के अंत में हमारे समृद्ध लोक रंगमंच की परंपरा में महाराष्ट्र के कोंकण इलाक़े में दशावतार लोकनाट्य से जुड़े लोगों के योगदान को सम्मानपूर्वक याद किया है। विष्णु के दस अवतारों पर आधारित मनोरंजक कथाओं के मंचन से जुड़ी दशावतार 800 साल से भी ज़्यादा समय से प्रचलित नाट्य शैली है जो किसी राजकीय या सरकारी संरक्षण के बग़ैर स्थानीय जनता के प्रोत्साहन से ही अब तक जीवित है।

क़रीब सवा घंटे की इस फ़िल्म में आजकल के चलन के विपरीत न कोई हिंसा है, न सेक्स है, न गालियाँ हैं और न ही ग़रीबी-अमीरी का कोई मेलोड्रामा। सभी कलाकारों ने बहुत अच्छा काम किया है। फिल्म सीधी सादी सी शैली में मुश्किलों के बीच भी जीवन के प्रति एक आशावादी नज़रिया दर्शाती है। साफसुथरा सिनेमा देखने की चाह है तो यह फ़िल्म देख सकते हैं। ग़ैर मराठी भाषियों के लिए अंग्रेज़ी सबटाइटिल की सुविधा है।