‘बॉम्बे बेगम्स’: 5 किरदारों में आज की औरत

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Bombay Begums review
Parul Budhkar

नेटफ्लिक्स की नई वेब सीरीज़ ‘बॉम्बे बेगम्स’ की इन दिनों काफी चर्चा है, जिसे अलंकृता श्रीवास्तव ने निर्देशित किया है। अलंकृता ने इससे पहले ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’, ‘डॉली, पिंकी एंड दोज़ ट्विंकलिंग स्टार्स’ जैसी फिल्में और मेड इन हेवेन जैसी सीरीज़ बनाई है। इस सीरीज़ में 5 महिला किरदारों के ज़िंदगी की कहानी औरत के संघर्ष के नज़रिए से दिखाई गई है। इस सीरीज़ के कुछ सीन्स को लेकर विवाद शुरु हो गया है और बाल अधिकारों की संस्था NCPCR ने नेटफ्लिक्स से इसके कुछ सीन्स हटाने की भी मांग की है। आखिर क्या और कैसी है ये सीरीज़… बता रही हैं पारुल बुधकर

‘बॉम्बे बेगम्स’-  पांच औरतों की एक ऐसी कहानी, जो उनके वजूद को बनाने और बिगाड़ने के बीच गढ़ी गई। ये पांचों एक दूसरे से किसी न किसी रूप से जुड़ी हैं लेकिन सभी के अपने संघर्ष हैं, अपनी जिंदगी है, अपनी सफलताएं हैं, अपनी लड़ाइयां हैं और है अपनी एक #metoo कहानी।

अगर कहानी की बात की जाए तो इस वेब सीरीज़ की कहानी में यूं तो ऐसा कुछ नहीं है जो आपने पहले कभी ना देखा हो… कहानी का लगभग हर हिस्सा कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रूप में देखा है लेकिन फिर भी ये नहीं कहा जा सकता कि देखी-सुनी कहानी की वजह से सीरीज़ खराब है। सीरीज़ में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो इसे एक बेहतरीन नहीं तो एक बार देखने लायक तो बनाती ही हैं।

पूजा भट्ट कई सालों बाद स्क्रीन पर नज़र आई हैं और यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। अपनी शुरूआती फिल्मों में उनकी एक चुलबुली लड़की की छवि आज भी दर्शकों के मन से नहीं उतरी है। ऐसे में रानी के रूप में बैंक की महत्वकांक्षी सीईओ, सौतेली मां, प्रेमिका और सेक्सुअल हैरेसमेंट विक्टिम के तौर पर उन्होंने अच्छी एक्टिंग की है। 

सीरीज़ में चार अन्य मुख्य किरदार निभाने वाली कलाकारों की बात करते हैं। फातिमा वारसी का रोल निभाने वाली शहाना गोस्वामी, लिली के रूप में अमृता सुभाष, आयशा के रूप में प्लाबिता बोरठाकुर और शाई की भूमिका में आध्या आनंद, सभी ने अपने-अपने किरदारों की मुश्किलों और मन की गांठों को बहुत खूबसूरती से पेश किया है। फातिमा बच्चा चाहती है लेकिन अपने करियर की आहुति देकर नहीं, लिली एक वेश्या की ज़िंदगी पीछे छोड़कर अपने और बेटे के लिए इज्जत भरा जीवन चाहती है, आयशा छोटे शहर से मुंबई आई है और अपने सपने पूरे करना चाहती है, शाई हर उस मुश्किल से गुज़र रही है जो एक टीनएज लड़की को होती है… इन सबके साथ ही शाई को छोड़कर अपनी ज़िंदगी में ये सभी कभी ना कभी सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार हुई हैं। 

सीरीज़ में सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़े कन्फ्यूजन को दिखाया गया है.. जब लड़की के साथ ये हो रहा होता है और वो समझ नहीं पाती.. जब समझ आता है तो आवाज़ उठाती है और तब उसी पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। ऑफिस पॉलिटिक्स, सेम सेक्स लव, मेल ईगो, अमीरों का पैसे के दम पर कानून से बचने जैसे विषय भी सीरीज़ में छुए गए हैं। पूरी सीरीज़ में बैकग्राउंड में चल रहा शाई का वॉयस ओवर प्रभावी लगा है। सीरीज़ की डायरेक्टर अलंकृता श्रीवास्तव ने इससे पहले कुछ बेहतरीन फिल्में बनाई है और उनसे तुलना की जाए तो निश्चित तौर पर ‘बॉम्बे बेगम्स’ कई स्तर पर बेहद कमज़ोर सीरीज है। लेकिन एक बार देखने लायक फिर भी कही जाएगी।

कई विषयों को एक साथ परोसने के चक्कर ने ही शायद इस सीरीज़ का मज़ा किरकिरा कर दिया है। फिर भी मुख्य किरदारों के अलावा मनीष चौधरी, विवेक गोंबेर, राहुल बोस, इमाद शाह ने अच्छा अभिनय करके बात संभालने की पूरी कोशिश की है। 

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