रवि बासवानी की याद…
1981 में फ़िल्म ‘चश्मेबद्दूर’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत करने वाले और जाने भी दो यारों से अपनी अलग पहचान बनाने वाले रवि बासवानी का 27 जुलाई 2010 को निधन हो गया। 64 साल के रविएक फिल्म के सिलसिले शिमला में थे तभी उनको दिल का दौरा पड़ा। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे बासवानी अविवाहित थे। उन्होंने 30 से भी ज़्यादा फ़िल्मों के साथ-साथ कुछ टेलिविज़न धारावाहिकों में भी काम किया था। ‘जाने भी दो यारो’ में अपने हास्य किरदार के लिए उन्हें 1984 में फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। रवि की याद में हम यहां 1987 में दिल्ली में लिया उनके एक इंटरव्यू का टेक्स्ट प्रकाशित कर रहे हैं, जो उस वक्त दिल्ली से निकलने वाली पाक्षिक पत्रिका ‘युवकधारा’ के लिए आज के वरिष्ठ पत्रकार सुमित मिश्र ने मार्च 1987 में लिया था। सुमित जी इस वक्त टीवी टुडे ग्रुप से जुड़े हुए हैं।
कमर्शियल फिल्मों में अब काम नहीं करुंगा- रवि वासवानी
-मैं अपनी पहली फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ को नहीं मानता, मेरी समझ से मेरी पहली फिल्म ‘स्पर्श’ थी, हां ये अलग बात है कि मैंने उसमें अभिनय की बजाय प्रबंधक का कार्य किया है।
-फिल्मों से पहले मैं नाटकों में अभिनय करता था, नाटकों में मैंने ओम शिवपुरी, बीएम शाह, कारंत, एम के रैना, बंसी कौल, राजेंद्र नाथ आदि के साथ काम किया है। ‘अंधा युग’ में मैंने एम के रैना के निर्देशन में काम किया है, जबकि ‘व्यक्तिगत’ में रैना ने मेरे निर्देशन में काम किया है। वैसे में ‘यांत्रिक’ और ‘देशांतर’ नाट्य संस्थाओं के साथ जुड़ा रहा हूं।
-लोगों ने मुझसे कमर्शियल फिल्मों में भी काम करने के लिए कहा। चूंकि और कोई अच्छी फिल्म हाथ में थी नहीं, इसलिए मैंने सोचा कि चलो कमर्शियल फिल्म में भी काम कर लिया जाए। अत मैंने ‘लव 86’ में काम करना स्वीकार कर लिया। जहां तक छोटे मोटे रोल का सवाल है, तो ‘लव 86’ में मेरा और सतीश शाह का काम कम भी नहीं था। इस्माइल श्राफ ने हमारे हिस्से को इतना काट दिया कि सतीश शाह तो फिल्म देखकर रो पड़े।
-मैने ये निश्चय कर लिया है कि कमर्शियल फिल्मों में अब काम नहीं करुंगा। सिर्फ अनुभव प्राप्त करने के लिए मैंने कमर्शियल फिल्मों में काम करने का मन बनाया था। लेकिन ऐसा अनुभव मुझे हुआ कि अब कमर्शियल फिल्मों में काम न करने का फैसला कर लिया है।
-फिलहाल तो मैं सतीश कौशिक के निर्देशन में एक धारावाहिक ‘सारा जहां हमारा’ कर रहा हूं। इसके लेखक करना राजदान हैं। एक और दारावाहिक ‘कबीर’ में मैंने कोतवाल की भूमिका निभाई है। इनेक अलावा सरबजीत सिंह के ‘हिमालय दर्शन’ और बेदी के ‘जिंदगी जिंदगी’ में भी काम कर रहा हूं।
-राजनीति में आने का मेरा कोई विचार नहीं है। यह महज़ इत्तफाक था कि हड़ताल के दौरान मैं दिल्ली में ही था, और कुणाल गोस्वामी जो कि मेरा अच्छा दोस्त है, वह भी मौजूद था। मैंने हड़ताल के समर्थन में कुणाल को साथ लेकर धरना दिया। लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इतनी लंबी हड़ताल को हमारे दूरदर्शन ने बिलकुल कवर नहीं किया। मैंने इस धरने से लोगों का ध्यान हड़ताल की ओर खींचा।
-देखिए शुरू में तो ऐसा कुछ ज़रुर था, लेकिन गोडबोले रिपोर्ट के बाद सबकुछ साफ हो गया। लोगों की शंकाएं दूर हो गईं।
-मेरी दो फिल्में बनकर तैयार हैं- ‘पीछा करो’ और ‘यातना’। ‘यातना’ में मैने एक साठ साल के खलनायक त्यागी जी भूमिका निभाई है। ‘पीछा करो’ में मैं एक जासूस बना हूं। पंकज पराशर की ‘यातना’ में मेरे अलावा शफी इनामदार, सतीश शाह भी हैं। फिल्म ‘दोजख’ में भी मैंने काम किया है।