‘किलर्स आफ द फ्लावर मून’- अमेरिका के रक्तरंजित अतीत की अनजान कहानी
80 साल के मार्टिन स्कॉर्सेसी की नई फिल्म ‘किलर्स ऑफ द फ्लावर मून’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है और खूब तारीफ बटोर रही है। इससे पहले मई के महीने में कान फिल्म समारोह में इसका प्रीमियर हुआ था और तब हमने अजित राय की लिखी इस फिल्म की समीक्षा प्रकाशित की थी। कुछ तकनीकी कारणों से वो समीक्षा कुछ समय तक वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं रही, सो इसे हम पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं। मार्टिन स्कॉर्सेसी एक ऐसे फिल्मकार हैं जो मानवीय स्थितियों-परिस्थितियों की गहरी समझ, कहानी कहने की अपनी अनोखी शैली और कला और मनोरंजन को मिलाकर पेश करने की अपनी अद्वितीय क्षमता की वजह से जाने जाते हैं। “टैक्सी ड्राइवर,” “गुडफेलस,” और “द डिपार्टेड” जैसी फिल्मों के तौर पर उन्होने हिंसा, पापमुक्ति और नैतिकता के असमंजस से जूझते किरदारों के ज़रिए उन्होने ऐसी फिल्में बनाईं जिन्होने विश्व सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी है। इन खूबियों वाली लिस्ट में उनकी और भी फिल्में शामिल हैं और अब उनकी नई फिल्म किलर्स ऑफ द फ्लावर मून भी उसी के तौर पर देखी जा रही है। अजित राय ने इस फिल्म को कान फिल्म समारोह में देखने के बाद इसकी समीक्षा लिखी थी। अजित रायवरिष्ठ पत्रकार-फिल्म समीक्षकहैं जो दुनिया भर में घूमकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल कवर करते रहे हैं। उद्योगपति हिंदुजा बंधुओं के बॉलीवुड कनेक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के ज़रिए भारतीय फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय फलक तक ले जाने के उनके योगदान पर अजित राय ने पिछले साल एक पुस्तक Hindujas And Bollywood लिखी थी, जो खासी चर्चित रही है।
हॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार मार्टिन स्कॉर्सेसी की नई फिल्म ‘ किलर्स ऑफ द फ्लावर मून’ महाकाव्यात्मक अंदाज और सिनेमा की वेस्टर्न शैली में महाशक्ति के रूप में अमेरिका के रक्तरंजित इतिहास को दोबारा देखने समझने की कोशिश है। रॉबी रॉबर्टसन का संगीत पटकथा की करूणा को बहुत ऊंचाई पर ले जाता है तो रोड्रिगो प्रिएतो की सिनेमैटोग्राफी दृश्यों को एपिक जैसा बनाती है। एरिक रॉथ के साथ फिल्म की पटकथा मार्टिन स्कॉर्सेसी ने खुद लिखी है जो कई बार चकित करती है। लियोनार्डो डी कैप्रियो, रॉबर्ट डी नीरो और लिली ग्लैडस्टोन के जबरदस्त अभिनय से सजी यह फिल्म पश्चिमी अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रांत के उन ओसेज इंडियन जनजाति के सैकड़ों स्त्री पुरुषों के प्रति सिनेमाई श्रद्धांजलि है जिन्हें 1918-1931के दौरान पैसा, पावर और संसाधनों पर कब्जा करने के लिए मार डाला गया था। ओसेज इंडियन जनजाति के इलाके में यह सारी लड़ाई तब शुरू होती है जब अचानक बंजर पथरीली धरती पर पेट्रोलियम के असीमित भंडार का पता चलता है और यहां के मूल बाशिंदे अमीर हो जाते हैं।
यह फिल्म अमेरिकी पत्रकार डेविड ग्रान के इसी नाम से प्रकाशित बेस्टसेलर किताब पर आधारित है। एक रहस्यमय इंसान अर्नेस्ट (लियोनार्डो डीकैप्रियो) प्रथम विश्व युद्ध से लौटकर अपने चाचा विलियम हेल (राबर्ट डी नीरो) के यहां आता है। वह लालची, अति महत्वाकांक्षी, शराबी और झक्की किस्म का व्यक्ति है। वह आसानी से अपने चाचा की आपराधिक साजिश का कमांडर बन जाता है। यहीं उसकी मुलाकात ओसेज इंडियन ट्राइब्स की सबसे आकर्षक महिला मौली बर्खर्ट से होती है जो अपनी मां लिजी क्यू की बीमारी से परेशान है। कुछ ही मुलाकातों में दोनों में प्रेम परवान चढ़ता है और वे शादी कर लेते हैं।
बाहर से आया दबंग व्यापारी माफिया की तरह पेट्रोलियम के सारे संसाधनों पर कब्जा करना चाहता है जिन पर मालिकाना हक ओसेज इंडियन ट्राइब्स के लोगों का है। अचानक इस ट्राइब के लोगों की हत्याएं होने लगती हैं। मौली चकित हैं कि आखिर उसके लोग एक-एक कर क्यों मरते जा रहे हैं और जब वह अपनी सगी बहन अन्ना की क्षत विक्षत लाश देखती है तो भीतर से टूट जाती है। वह अपनी मां को खो चुकी है और उसे डर है कि कोई उसे भी खत्म कर देगा। स्थानीय प्रशासन हत्यारे का पता नहीं लगा पाता। करीब साठ से भी अधिक लोगों की हत्या के बाद जांच के लिए वॉशिंगटन डीसी से ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के एक काबिल अफसर टॉम ह्वाइट को भेजा जाता है। यहीं एजेंसी आज फेडरल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन (एफ बी आई) के नाम से जानी जाती हैं। जांच जैसे जैसे आगे बढ़ती है, विलियम हेल और एर्नेस्ट के अपराधों से पर्दा उठना शुरू होता है। पता चलता है कि मौली ने जिस एर्नेस्ट से बेइंतहा प्यार किया, अपना सबकुछ सौंप दिया, वही अपने शातिर चाचा के कहने पर उसे डायबिटीज की दवा में धीमा जहर देकर मार रहा है। यह एक झूठी जहरीली प्रेम कथा है जो बाद में कई नाटकीय घटनाओं के बाद अंजाम पाती है। मुकदमा चलता है और सबको सजा होती है।
मार्टिन स्कॉर्सेसी ने पूरी ईमानदारी से इतिहास की विलक्षण कहानी कही है। उनके गोरे अभिनेताओं ने ओसेज इंडियन ट्राइब्स चरित्रों को बखूबी निभाया है। खुद लिली ग्लैडस्टोन पूरी फिल्म में अपने स्वभाव और शांत अभिव्यक्तियों से मन मोह लेती हैं। एर्नेस्ट हालांकि मौली के प्रति भावुक और अपनी तरह से ईमानदार दिखने की कोशिश करता है पर अविश्वास, लालच और हिंसा की राजनीति सबकुछ नष्ट करती चलती है। विलियम हेल की भूमिका में राबर्ट डी नीरो इतने वास्तविक लगते हैं कि विस्मय होता है। यह एक ऐसी फिल्म है जो हमें बताती है कि आज जो अमेरिका हमारे सामने है वह कैसे वहां के स्थानीय नेटिव लोगों की लाश पर बना है।
अंतिम दृश्य में एक ऑर्केस्ट्रा के जरिए फिल्म के निष्कर्ष बताए गए हैं और हम मार्टिन स्कॉर्सेसी को प्रकट होते हुए देखते हैं और वे बताते हैं कि मौली ने एर्नेस्ट से तलाक लेकर दूसरी शादी की और 1937 में वह मर गई। एर्नेस्ट से मौली की आखिरी मुलाकात का दृश्य बहुत ही मार्मिक है जिसमें लिली ग्लैडस्टोन शांत है और पूछती है कि उसने उसे डायबिटीज की दवा में मिलाकर धीमा जहर का इंजेक्शन देने की बात उससे क्यों छुपाई? इसी दृश्य में लियोनार्दो डीकैप्रियो की अभिव्यक्ति देखने लायक है- लाचार, पछताता हुआ, बेचैन और गहरे अवसाद में नि:शब्द।
मार्टिन स्कॉर्सेसी ने चरित्र चित्रण में कमाल की सावधानी बरती है और एक-एक चरित्र वास्तविक लगते हैं। उन्होंने अमेरिकी सत्ता के पीछे के हिंसा, शोषण और लूट के छुपे हुए इतिहास को आज के संदर्भ में देखने की कोशिश की है। लियोनार्डो डीकैप्रियो का लिली ग्लैडस्टोन और राबर्ट डी नीरो के साथ की केमिस्ट्री गजब की है और पता ही नहीं चलता कि कब साढ़े तीन घंटे की फिल्म खत्म हो गई। 76 वें कान फिल्म समारोह में मार्टिन स्कॉर्सेसी की यह फिल्म ‘किलर्स ऑफ द फ्लावर मून’ मानवता के लिए एक एक्स्ट्रावैगेंज़ा है जिसका बड़े पैमाने पर स्वागत हो रहा है।