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Remembering Chetan Anand
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‘हक़ीक़त’ जैसे माहौल में चेतन आनंद की याद…

चेतन आनंद एक बेहतरीन फ़िल्मकार होने के साथ साथ बेहद ज़हीन और नफ़ीस इनसान थे। 1946 में उनकी बनाई पहली ही फ़िल्म ‘नीचा नगर’ को फ्रांस के पहले कान फ़िल्म फेस्टिवल में ‘पाम डी ओर’ सम्मान से नवाज़ा गया था।

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पंचलाइट की रोशनी में ‘पंचायत’

‘पंचायत’ में गांव की सुबह 9 बजे वाली दोपहर का भी ज़िक्र है, शाम 7 बजे के सन्नाटे का भी और दो रुपए पीस बिकने वाले पेठे का भी। गांव के बाहर वाले पेड़ का भूत भी है, शादी में रुठ जाने वाला कमसिन उमर का शौकीन दूल्हा भी और रिंकिया के पापा यानी प्रधान-पति भी हैं। पंचायत में गांव के सारे बिंब उनको मनोरंजक बनाने वाली नज़र के साथ पेश किए गए हैं और यही वजह है कि इसे देखते हुए हिंदी के पाठकों को श्रीलाल शुक्ला के कालजयी उपन्यास ‘राग दरबारी’ की याद हो आएगी।

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