कान 2024 (2): क्लासिक खंड में श्याम बेनेगल की ‘मंथन’
फ्रांस में 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। एक और खास बात ये है कि श्याम बेनेगल की 1976 की फिल्म मंथन का कान क्लासिक्स के तहत विशेष प्रदर्शन किया गया। ‘कान क्लासिक्स’सेगमेंट के तहत महान फिल्मों के सम्मान देने के लिए उनका प्रदर्शनकिया जाता है। मंथन को इसी साल फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की कोशिशों से डिजिटली रीस्टोर किया गया है। इस फिल्म के विशेष प्रदर्शन पर कान से विस्तार से रिपोर्ट दे रहे हैं भारत के वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजित राय जो इस साल भी कान पहुंचे हुए हैं। प्रस्तुत है कान से भेजी उनकी दूसरी रिपोर्ट।अजित रायवरिष्ठ पत्रकार-फिल्म समीक्षकहैं जो दुनिया भर में घूमकर अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल कवर करते रहे हैं। उद्योगपति हिंदुजा बंधुओं के बॉलीवुड कनेक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन के ज़रिए भारतीय फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय फलक तक ले जाने के उनके योगदान पर अजित राय ने पिछले साल एक पुस्तक Hindujas And Bollywood लिखी थी, जो खासी चर्चित रही है।
भारत के दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने 77 वें कान फिल्म समारोह के कान क्लासिक खंड में शुक्रवार को श्याम बेनेगल की 48 साल पुरानी फिल्म मंधन के प्रदर्शन पर यहां कहा कि यह भारतीय सिनेमा के लिए गौरव का क्षण है। उन्होंने मंथन की पूरी टीम को याद करते हुए कहा कि उसमें से अब कई लोग हमारे बीच नहीं रहे जिन्होंने मिल जुल कर इस फिल्म को इस मुकाम पर पहुंचाया है। मुंबई के शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर की संस्था फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने इस फिल्म को 4 के में संरक्षित किया है और कान फिल्म समारोह को उपलब्ध कराया है। यह लगातार तीसरा मौका है जब इस संस्था द्वारा संरक्षित भारतीय फिल्में कान फिल्म समारोह में दिखाई जा रही है। फिल्म के मुख्य कलाकारों में गिरीश कर्नाड, स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी अब इस दुनिया में नहीं है। फिल्म की पटकथा लिखने वाले विजय तेंदुलकर और संवाद लिखने वाले कैफी आज़मी भी इस दुनिया में अब नहीं है। गोविंद निहलानी ने मंथन की सिनेमैटोग्राफी की थी। संगीत वनराज भाटिया ने दिया था। इस अवसर पर बीमारी की वजह से श्याम बेनेगल नहीं आ सके। कान फिल्म समारोह ने नसीरुद्दीन शाह और मंथन की पूरी टीम को सेरेमोनियल रेड कार्पेट दी गई। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने घोषणा की कि अगामी एक जून को मंथन देश के 70 शहरों में रीलिज की जाएगी।
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि यह भारत की पहली फिल्म थी जो क्राउड फंडिंग से बनी थी। उस समय गुजरात के पांच लाख किसानों ने दो दो रुपए का चंदा देकर दस लाख रुपए जमा किए थे। वर्गीस कुरियन ने तैंतीस साल की उम्र में गुजरात के खेड़ा जिले के एक गांव में पहली बार दुग्ध उत्पादन की को – आपरेटिव सोसायटी बनाई थी जो बाद में आनंद में अमूल को- आपरेटिव सोसायटी की बुनियाद बनी।
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि मंथन उनके कैरियर की दूसरी हीं फिल्म थी। श्याम बेनेगल ने इस फिल्म में सिनेमाई सौंदर्यबोध को नई उंचाई दी है। उन्होंने भारतीय सिनेमा को कलात्मक उंचाई दी है जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।उन्होंने कहा कि जब यह फिल्म रिलीज हुई तो वे काफी नर्वस थे क्योंकि इस फिल्म में न तो चमक दमक थी न नाच गाना न कोई खास ऐक्शन। फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत उम्दा काम किया था। आज सालों बाद इस फिल्म को देखकर लगता है कि हमारी टीम कितनी गंभीर और प्रतिबद्ध थी। स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर ने कहा कि उन्होंने अपनी मां को कभी देखा नहीं क्योंकि उनके जन्म के कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया था। उन्होंने अपनी मां को केवल सिनेमा के पर्दे पर हीं देखा है। पहली बार कान फिल्म समारोह में भागीदारी पर उन्होंने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे अपनी खुशी को कैसे व्यक्त करें।
फिल्म मंथन के प्रदर्शन के बाद यहां बुनुयेल थियेटर में देर तक दर्शक नसीरुद्दीन शाह के लिए खड़े होकर ताली बजाते रहे। यह फिल्म एक तरह से भारतीय सिनेमा का ऐतिहासिक दस्तावेज है। सीनोग्राफी कुछ स्टाइलाइज्ड और कुछ यथार्थ वादी है। पटकथा में भावुकता से बचा गया है और कलाकारों का अभिनय स्वाभाविक है।
डा राव ( गिरीश कर्नाड) वेटेनरी सर्जन है।वे अपने सहयोगियों, चंद्रावरकर ( अनंत नाग) और देशमुख ( डा मोहन अगाशे) के साथ गुजरात के एक गांव पहुंचते हैं जहा गरीब किसान दुध बेचकर गुजारा करते हैं। वे वहां सरकार की ओर से एक दुग्ध उत्पादन को – आपरेटिव सोसायटी बनाना चाहते हैं। इससे सबसे ज्यादा नुक्सान मिश्रा जी ( अमरीश पुरी) को होता है जो एक निजी डेयरी चलाते हैं और ग्रामीणो के दूध औने-पौने दाम पर खरीदकर शहर में उंचे दाम पर बेच देते हैं। गांव का सरपंच ( कूलभूषण खरबंदा) पहले तो साथ देता है पर जैसे ही इसमें दलितों की भागीदारी बढ़ती है वह मिश्रा जी के साथ मिलकर इनका दुश्मन बन जाता है और फिर साजिशों का दौर शुरू होता है।
एक दलित यंग एंग्री मैन है भोला ( नसीरुद्दीन शाह) । बहुत पहले एक शहरी ठेकेदार उसकी मां को गर्भवती बनाकर भाग गया था। भोला अमीरों और ऊंची जाति वालों से नाराज़ रहता है। डा राव के कहने पर दलित एकजुट होकर चुनाव में सरपंच को हरा देते हैं। सरपंच बदला लेने के लिए दलित बस्ती में आग लगवा देता है। वह अपनी ऊंची पहुंच से डा राव का तबादला भी करवा देता है। एक दलित लड़की से शारीरिक संबंध बनाने के बाद चंद्रावरकर को भी गांव छोड़कर जाना पड़ता है। डा राव की पत्नी गांव आती है और बीमार पड़ जाती हैं। एक दलित हिम्मती महिला बिंदु ( स्मिता पाटिल) अपने छोटे बच्चे के साथ डा राव का साथ देती हैं। तभी उसका लापता पति वापस आ जाता है और डा राव पर बदचलनी का आरोप लगाता है। अंत में हम देखते हैं कि डा राव अपनी पत्नी के साथ निर्जन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ रहा है और भोला दौड़ता हुआ आ रहा है। ट्रेन चल देती हैं। आगे की कहानी भोला की है कि कैसे वह साजिशों के बावजूद डेयरी को- आपरेटिव सोसायटी बनाने में सफल होता है।
हाल ही में फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के कर्ताधर्ता शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया था कि किस तरह साल 2014 में श्याम बेनेगल ने उन्हे मंथन का 35mm प्रिंट सौंपा था, और किस तरह इसे करीब 10 साल लगाकर इसके पुनरुद्धार को अंजाम दिया गया।