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लोक कलाओं की दुर्दशा: ‘द लिपस्टिक बॉय’ के बहाने

उदय शंकर,केलुचरण महापात्र, राम गोपाल,बिरजू महाराज,गोपी कृष्ण जैसे नामचीन कलाकारों ने लंबे संघर्ष के बाद कला जगत में अपनी प्रतिष्ठाजनक जगह बना ली। पर पुरुष नर्तक होने के कारण उन्हें जिस तरह समाज, जाति और परिवार की उपेक्षा,तिरस्कार और प्रताड़ना सहनी पड़ी उस के बारे में मुंह पर ताला ही लगा कर रखा गया। इन्हें जातिगत और लिंग आधारित अपमान दोनों झेलने पड़े।

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‘आदमी और औरत’: तपन सिन्हा की नजर से

सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ सबसे प्रभावशाली बंगाली फ़िल्मकारो की चौकड़ी बनाने वाले तपन सिन्हा ने यूं तो हिन्दी में कम फ़िल्में बनाई लेकिन उनकी कई फ़िल्मों का हिन्दी रूपांतरण अक्सर हुआ। हिन्दी में “एक डॉक्टर की मौत” उनकी यादगार फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म भी ऐसी ही बिंबों से भरी, एक कहानी है, जो ऊपरी तौर पर सीधी-साधी होकर भी अनेक जटिल सवाल  हमारे सामने  उठाती है।

‘चंपारण मटन’: ‘मटन’ की ख्वाहिश, ‘चंपारण’ का प्रतिरोध

फिल्म ‘चंपारण मटन’ की सफलता की सार्थकता सिर्फ ऑस्कर नाम से जुड़े चकाचौंध वाले मुकाम या उससे जुड़े तमाम आंकड़ों भर में नहीं है.. ‘चंपारण मटन’ की कामयाबी इस फिल्म को देखकर ही समझा जा सकता है। ये वो सिनेमा है जो हमें आज चाहिए।