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कान 2025 (5): कान में नीरज घेवान की ‘होमबाउंड’ वापसी

नीरज घेवान की फिल्म ‘होमबाउंड’ के कई दृश्य बहुत ही मार्मिक है। दो नौजवानों की लाचारी और जिंदगी के लिए संघर्ष की नियति को बहुत ही संवेदना के साथ फिल्माया गया है। सबके लिए न्याय और बराबरी का विचार दृश्यों की सघनता में सामने आता है। इसमें कोई नारेबाजी और प्रवचन नहीं है और न ही प्रकट हिंसा है। ऐसा लगता है कि शोएब, चंदन और सुधा के लिए हमारा समय ही राक्षसी खलनायक के रुप में सामने खड़ा हो गया है।

मसान क्यों अलग थी...

साला ये दुःख काहे ख़तम नहीं होता है… : मसान के 5 साल

सिनेमा का यही मज़ा है और यही विस्मय और विडम्बना भी की एक छोर पर बाहुबली और बजरंगी भाईजान हैं तो दूसरी तरफ मसान.