बदल चुका है पाकिस्तान का सिनेमा ‘जिंदगी तमाशा’ से
लंबे अर्से से दुर्दशा झेल रहे पाकिस्तानी सिनेमा में हाल के सालों में एक नई लहर, एक नई ऊर्जा आई है। 2022 का साल पाकिस्तानी सिनेमा के लिए इस लिहाज़ से बहुत अच्छा रहा कि एक ओर जहां ‘मौला जट्ट’ पर एक बार फिर बनी (पंजाबी) फिल्म ‘द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट’ (मुख्य अभिनेता फ़वाद खान) ने कामयाबी के नए कीर्तिमान रच दिए, वहीं पाकिस्तानी फिल्म ‘जॉयलैंड’ पहली ऐसी फिल्म बनी जिसने कान फिल्म फेस्टिवल के अनसर्टेन रिगार्ड खंड में ज्यूरी प्राइज़ जीता। ये अलग बात है कि इस फिल्म को ‘आपत्तिजनक कंटेंट’ वाला बताकर पाकिस्तान में बैन कर दिया गया था। कुछ साल पहले भी 2019 में सरमद खूसट की फिल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’ (Circus of Life) ने भी काफी तारीफ बटोरी थी। 24वें बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (अक्टूबर 2019) में इसका प्रीमियर हुआ था। इसने बुसान के साथ साथ 2021 में लॉस एंजेलिस में एशियन वर्ल्ड फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार जीता था। पाकिस्तानी समाज पर आधारित ये फिल्म Gender, sexuality जैसे मुद्दों पर मौलवियों से टकराव पर आधारित है। कट्टरता को केंद्र में रखने की वजह से ये फिल्म 2007 की पाकिस्तानी फिल्म ‘खुदा के लिए’ की याद दिलाती है, जो धार्मिक कट्टरता पर बनी एक बोल्ड फिल्म थी। इसमें नसीरुद्दीन शाह ने भी अभिनय किया था और जो दोनों देशों में रिलीज़ हुई थी और काफी सफल भी रही थी। पाकिस्तान सिनेमा में उस वक्त परवेज़ मुशर्रफ की नीतियों के चलते कुछ ढील दी गई थी और भारतीय और पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर से सांस्कृतिक आदान प्रदान का माहौल बना था। लेकिन ये 15 साल पुरानी बात है, आज के पाकिस्तान में ‘जॉयलैंड’ भी बैन हुई और ‘ज़िंदगी तमाशा’ भी। इसीलिए ‘ज़िंदगी तमाशा’ बनाने वालों ने इसे यूट्यूब पर रिलीज़ कर दिया और अब इसे जो भी देख रहा है सराह रहा है। इस फिल्म को देखने के बाद इसकी समीक्षा के बहाने पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री की एक तस्वीर पेश कर रहे हैं तेजस पूनिया, जो एक युवा लेखक और फिल्म समीक्षक हैं। मुम्बई विश्वविद्यालय से शोध कर रहे तेजस का एक कहानी संग्रह और एक सिनेमा पर पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। अखबारों में नियमित लेखन करते रहते हैं।
इंडिपेंडेट फिल्म मेकर्स की दुश्वारियां केवल हमारे मुल्क में ही नहीं है। नजर जरा घुमाइए और पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को देखिए। वहां के निर्माता, निर्देशक भी उतने ही मजबूर हैं जितने की हमारे। लेकिन दोनों में एक खास और समानता की बात है कि वे हिम्मत नहीं हारते।
पाकिस्तानी डायरेक्टर सरमद खूसट की फिल्म ‘जिंदगी तमाशा’ अब थिएटर्स के बजाय यूट्यूब पर रिलीज हुई है। हालांकि साल 2020 में इसे रिलीज किया जाना था लेकिन इस फिल्म को लेकर खड़े हुए कई तमाशे और विवादों की वजह से इसके पाकिस्तान में सिनेमा घरों में रिलीज करने पर बैन लगा दिया गया।
पाकिस्तान का सिनेमा , जिसे लॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान में फिल्म निर्माण उद्योग को संदर्भित करता है। पाकिस्तान कई फिल्म स्टूडियो केंद्रों का घर है, जो मुख्य रूप से इसके तीन सबसे बड़े शहरों – कराची , लाहौर और फैसलाबाद में स्थित हैं।
हाल के कुछ वर्षों में ‘ बोल’ फिल्म के बाद से पाकिस्तानी सिनेमा ने अपनी संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक समय तक खस्ता हाल हो चुका यह फिल्म उद्योग पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। निर्देशक शोएब मंसूर की खुदा के लिए (2007) और बोल (2011) के बाद हाल के साल उल्लेखनीय बने जिसमें खूसट फिल्मवालों ने 2019 में ‘जिंदगी तमाशा’ बनाई तो 2022 में ‘जॉयलैंड’। बेहतरीन सिनेमा की नई धारा के बीच 2022 में ‘द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट’ की कमर्शियल सफलता ने भी पाकिस्तानी फिल्मोद्योग का हौसला बढ़ाया है।
ये भी दिलचस्प है कि ‘जॉयलैंड’ की ही तरह इस टीम को अपनी पिछली फिल्म ‘ज़िंदगी तमाशा’ के लिए भी पाकिस्तान में सेंसर सर्टिफिकेट हासिल करने में जितनी समस्या आई उससे कहीं अधिक उनके रिलीज में आई थी। दोनों ही फिल्में सिनेमाघरों के लिए प्रतिबंधित कर दी गई। लेकिन अब ‘जिंदगी तमाशा’ फिल्म मजबूरन ‘सरमद सुल्तान खूसट’ एंड टीम को यू ट्यूब पर रिलीज करना पड़ा है।
फिल्म रिलीज करते समय फिल्म के निर्देशक ने इंडिपेंटेंड फिल्ममेकर के नाते अपनी मजबूरियां भी गिनाई है और सहयोग की गुजारिश भी की है। हाल में ‘जॉयलैंड’ जिस तरह कान फिल्म फेस्टिवल 2022 में प्रदर्शित होने वाली पहली पाकिस्तानी फिल्म बनी थी और खूब चर्चा में रही पूरी दुनिया में, उससे पाकिस्तानी फिल्म उद्योग ने तेजी से अपना ध्यान खींचा। ‘जॉयलैंड’ को 95वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए पाकिस्तानी फिल्म फ्रैटर्निटी द्वारा पाकिस्तानी प्रविष्टि के रूप में चुना गया था।
खैर 1929 में मूक सिनेमा से आरंभ हुआ आज का हमारा पड़ोसी मुल्क जिसे आप दुश्मन देश भले कहते रहें लेकिन सिनेमा को लेकर यह सच है कि कुछ मामलों में प्रगतिशील सिनेमा के लिहाज़ से वो भारत से आगे रहा है। आज़ादी से पहले लाहौर फिल्म निर्माण का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। साल 1948 यानी आजादी के बाद से पाकिस्तान में 14,000 से अधिक उर्दू फीचर फिल्मों का निर्माण किया गया है, साथ ही 10,000 से अधिक पंजाबी , 8,000 से अधिक पश्तो , 4,000 से अधिक सिंधी और 1,000 से अधिक बलोची फीचर-लेंथ फिल्में बनाई गई हैं। अब तक निर्मित पहली फिल्म 1929 में लाहौर में अब्दुर रशीद कारदार द्वारा निर्देशित हुस्न का डाकू थी। आधारिकारिक रूप से आजाद पाकिस्तान की पहली पाकिस्तानी फ़िल्म तेरी याद थी, जिसका निर्देशन 1948 में दाउद चंद ने किया था
2007 तक पाकिस्तान के ध्वस्त फिल्म उद्योग के घाव ठीक होने लगे और कराची ने खुद को पाकिस्तानी सिनेमा के केंद्र के रूप में स्थापित किया। यह वह समय था जब नई पीढ़ी के निर्माताओं ने गुणवत्तापूर्ण कहानी और नई तकनीक वाली लघु फिल्मों के साथ अपना दमखम दिखाना शुरू किया।
“पाकिस्तानी सिनेमा के पुनरुत्थान” के यही प्रमुख कारण रहे है। पाकिस्तान के सिनेमा ने मौन युग (1929-1946), स्वतंत्रता और विकास (1947-1959), स्वर्ण युग (1959-1977), पुनरुद्धार और पुनरुत्थान (2003-2011) के बाद अब नई धारा के सिनेमा (2011 से अब तक) को बहाना शुरू कर दिया है।
“जिंदगी तमाशा” पाकिस्तान की एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते समय आप अपनी सांसों तक को महसूस करना भूल जाते हैं। दो घंटे कब कैसे निकल गए और आप एक दूसरी दुनिया में सिनेमाई यात्रा से विचरण कर आए आपको मालूम ही नहीं पड़ता। आपके लिए कहने को फिल्म की कहानी बस एक बूढ़े इंसान के द्वारा दोस्तों के कहने पर शादी में डांस करके दिखा देने भर की कहानी है। लेकिन उस डांस से पहले और उसके बाद उसकी जिंदगी किस तरह तमाशाई रूप धारण करती है उसके लिए लाज़िम तौर पर इसे देखना चाहिए। लेकिन सच इस फिल्म का कुछ और है। फिल्म एक मौलवी के संघर्ष को बयां करती है। जिसका डांस करते एक वीडियो वायरल हो जाता है। उसके बाद लोग उसके खिलाफ हो जाते हैं। लोग कहते हैं कि जो शख्स पांच का वक्त नमाज पढ़ता है वो ऐसा कैसे कर सकता है। इसी कहानी को लेकर पाकिस्तान में विवाद हो गया।
‘तहरीक ए लब्बेक’ नाम की एक पार्टी ने इस फिल्म पर ईशनिंदा के आरोप लगाए। कहा गया कि इस फिल्म से लोग इस्लाम धर्म और पैगंबर मोहम्मद से दूर हो सकते हैं। 2019 में इस फिल्म को बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाया ही नहीं गया, बल्कि काफी प्रशंसा भी इसने वहां बटोरी। उसके अलावा ये पहली पाकिस्तानी फिल्म है, जिसने ‘किम जी सियोक अवार्ड’ अपने नाम किए।
पाकिस्तान से आप चाहें जितनी भी नफरतें कर लें जितना मर्जी उन्हें गरिया लें लेकिन सिक्के के दो पहलू होते हैं। आप इस फिल्म को ही नहीं बल्कि ऐसी कई फिल्में और धारावाहिकों को देखिए और समझें कि वहां केवल आपके दुश्मन ही नहीं बैठे हुए। बल्कि वहां भी बहुत से सजग और सचेत लोग हैं जो अपने मुल्क को बदलने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान सिर्फ मीडिया और सोशल मीडिया में दिखाई जा रही नफरती खबरों का पुलिंदा भर नहीं है।
इस फिल्म को देखकर आप भी कहेंगे सिनेमा जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद। इसके अलावा आज के समय में पाकिस्तान में कुछ प्रमुख फिल्म फेस्टिवल भी हो रहे हैं जो अपने प्रदर्शनों से दुनिया का ध्यान लगातार खींचते रहे हैं। कारा फिल्म महोत्सव, LUMS अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (FiLUMS), पाकिस्तान फ़िल्म महोत्सव – न्यूयॉर्क , पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव, लाहौर यूरेशिया फिल्म महोत्सव – लाहौर विश्वविद्यालय।