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ALT EFF Delhi 2025: सिनेमा के मंच पर सच की पड़ताल, सख्त सवाल

फेस्टिवल के दोनों दिन बेहद महत्वपूर्ण और नई जानकारियों से भरपूर कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्में प्रदर्शित की गईं। इनमें सामाजिक अन्याय, विस्थापन, जंगलों का विनाश, शहरी सीवेज प्रणाली और मानव–पर्यावरण संबंध जैसे मुद्दों को गहराई से दिखाया गया। दूसरे दिन एक महत्वपूर्ण पैनल डिस्कशन भी आयोजित किया गया, जिसका विषय था— ‘हमारा पर्यावरण, हमारा भविष्य: स्थानीय चुनौतियाँ और समाधान’।

Pariticipants Cinephiles
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TCOTF नवंबर चैप्टर: ‘कंटेंट सिर्फ कच्चा माल होता है…’

हर महीने होने वाले फिल्मकार, लेखक, छात्र, तकनीशियन और सिनेप्रेमियों के जीवंत समूह की रचनात्मक और दिलचस्प अड्डेबाज़ी के आयोजन टॉक सिनेमा ऑन द फ़्लोर ने 6 महीने पूरे कर लिए हैं। नवंबर चैप्टर में एक बार सिनेमा के अलग-अलग पहलुओं पर खास मेहमानों के साथ चर्चा हुई। यह पहल राजधानी का एक अनोखा community-driven creative hub बन चुकी है।

Ritwik Ghatak
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क्या ऋत्विक घटक ने की भारतीय सिनेमा में ‘न्यू वेव’ की शुरुआत?

फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में अध्यापन के दौरान घटक ने फिल्मकारों की एक ऐसी पीढ़ी को आकार दिया जिन्होने सिनेमा सृजन की घटक की परंपरा को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि अपने अमूल्य योगदान से उसके लिए नया रास्ता तैयार किया, जो भारत के सिनेमा के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दौर बना, जिसे भारतीय न्यू वेव के नाम से जाना गया।

Ritwik Ghatak centenary
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ऋत्विक घटक जन्मशती: विस्थापन भोगे ‘नागरिक’ की याद

इस आयोजन में घटक की फिल्म ‘नागरिक’ की स्क्रीनिंग और उस पर महत्वपूर्ण सिनेमा विशेषज्ञों की चर्चा बहुत खास रही। विभाजन पर बनायी ऋत्विक घटक की पहली फिल्म ‘नागरिक’ की कहानी विभाजन के तुरंत बाद के कलकत्ता की है। फिल्म उत्तरी बंगाल के एक परिवार के ज़रिए युद्ध और विभाजन के बाद के दौर के संघर्षों के बारे में बात करती है।

Talk Cinema on the Floor October Chapter
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TCOTF अक्टूबर चैप्टर: कान, अश्मिता की ‘कैटडॉग’, कॉस्ट्यूम और कैरेक्टर

‘स्पॉटलाइट’ सेगमेंट ‘टॉक सिनेमा ऑन द फ़्लोर’ का सबसे खास सेगमेंट होता है। इस बार साल 2020 के कान फिल्म समारोह के ला सिनेफ़ कैटेगरी में पहला पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्म कैटडॉग की लेखक-निर्देशक अश्मिता गुहा नियोगी खास मेहमान थीं, जो मुंबई से आई थीं।

Smita Patil in Bhumika
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सिनेमा की भाषा में ‘भूमिका’

श्याम बेनेगल की ‘भूमिका’ शुरु से अंत तक रील लाइफ़ और रीयल लाइफ़ की बिना किसी दरार के एक-दूसरे में आवाजाही है। यह एक संवेदनशील-प्रतिभावान व्यक्ति की उथल-पुथल भरी जिंदगी का लेखा-जोखा है। स्मिता पाटिल ने स्वयं स्वीकार किया था, यह उनके जीवन की सर्वाधिक कठिन फ़िल्म थी, लेकिन इसी कारण यह उनके लिए सर्वाधिक संतोषप्रद फ़िल्म भी थी। पहले वे सोच रही थीं कि वे यह भूमिका न कर पाएँगी लेकिन उन्हें अपने निर्देशक पर बहुत भरोसा था (वे श्याम बेनेगल के साथ तीन फ़िल्में कर चुकी थीं), दोनों की बहुत अच्छी ट्यूनिंग थी अत: उन्होंने इस रोल को स्वीकार किया।

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