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कान 2025 (9): विश्व सिनेमा में ईरानी फिल्मों की वापसी

जफर पनाही के अलावा ईरान के अब्बास किरोस्तामी और असगर फरहदी को भी कान फिल्म समारोह में काफी महत्व मिलता रहा है। असगर फरहदी को पांच वर्ष के भीतर हीं दो दो बार ऑस्कर पुरस्कार मिला। पहली बार ‘सेपरेशन ‘ (2010) और दूसरी बार ‘सेल्समैन’ (2015) के लिए।

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कान 2025 (8): प्रतिरोध के फिल्मकार जफ़र पनाही की फिल्म को सर्वोच्च सम्मान

पाम डी’ओर पुरस्कार के लिए जब जफ़र पनाही का नाम पुकारा गया तो ग्रैंड थियेटर लूमिए में करीब साढ़े तीन हजार दर्शको ने खड़े होकर देर तक ताली बजाकर खुशी का इजहार किया। जूरी की अध्यक्ष जूलिएट बिनोशे ने कहा कि जफ़र पनाही अपने देश (ईरान) में मानवीय गरिमा और आज़ादी के लिए तानाशाही और धार्मिक कट्टरवाद के खिलाफ लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।

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कान 2025 (7): IMPPA प्रमुख को निर्माताओं की ग्लोबल संस्था में अहम पद

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फोटोग्राफिक आर्ट दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को अपने तय मानदंडों के आधार पर मान्यता प्रदान करती है। कान, बर्लिन, वेनिस, टोरंटो, बुसान सहित दुनिया भर में होने वाले सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इसी संस्था से मान्यता प्राप्त करते हैं।  भारत में इस संस्था ने केवल चार अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को मान्यता दी है – गोवा, केरल, बंगलुरु और कोलकाता।

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कान 2025 (6): सत्यजीत रे की फिल्म ‘अरण्येर दिन रात्रि’ का नया अवतार

शर्मिला टैगोर ने कहा कि आज 55 साल बाद हम इस फिल्म का संरक्षित प्रिंट देखने जा रहे हैं। मैं इतनी दूर भारत से चलकर इसीलिए यहां आई हू। करीब पचपन साल पहले इसकी शूटिंग मध्य भारत के एक जंगल में हुई थी जहां बहुत तेज गर्मी पड़ती थी और एयर कंडीशनर जैसे सुख सुविधा का कोई साधन नहीं था। हम सब अलग-अलग खपरैल घरों में ठहरे थे। दो शिफ्ट में शूटिंग होती थी, सुबह साढ़े पांच से नौ बजे और शाम को तीन से छह बजे तक। बाकी समय हम अड्डा जमाते थे और एक दूसरे को जानने समझने की कोशिश करते थे और दोस्ती करते थे। बाद में हम सभी अद्भुत दोस्त बन गए।

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कान 2025 (5): कान में नीरज घेवान की ‘होमबाउंड’ वापसी

नीरज घेवान की फिल्म ‘होमबाउंड’ के कई दृश्य बहुत ही मार्मिक है। दो नौजवानों की लाचारी और जिंदगी के लिए संघर्ष की नियति को बहुत ही संवेदना के साथ फिल्माया गया है। सबके लिए न्याय और बराबरी का विचार दृश्यों की सघनता में सामने आता है। इसमें कोई नारेबाजी और प्रवचन नहीं है और न ही प्रकट हिंसा है। ऐसा लगता है कि शोएब, चंदन और सुधा के लिए हमारा समय ही राक्षसी खलनायक के रुप में सामने खड़ा हो गया है।

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कान 2025 (4): अनुपम खेर की ‘तन्वी द ग्रेट’ का प्रीमियर

अनुपम खेर की इस फिल्म में एक संवाद बार-बार आता है कि “आई एम डिफरेंट बट नॉट लेस।” ( मैं अलग हूं पर किसी से कम नहीं हूं।) यानि नॉर्मल का उलटा एबनॉर्मल नहीं है बल्कि डिफरेंट है। अमेरिका में तन्वी की मां विद्या रैना अपने शोध में बताती हैं कि ऐसे बच्चों को अभ्यास के साथ अच्छी देखभाल से सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जा सकता है।

Mission Impossible Poster
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कान 2025 (3): कान में हॉलीवुड वाया टॉम क्रूज़ की ‘मिशन इम्पॉसिबल: द फाइनल रेकनिंग’

टॉम क्रूज़ की ‘मिशन इंपॉसिबल: द फाइनल रेकनिंग’ यह फिल्म सच्चे अर्थों में एक ग्लोबल और यूनिवर्सल फिल्म है जो अपनी पटकथा में अमेरिका के साथ रुस, भारत, पाकिस्तान, इजरायल, ब्रिटेन, उत्तर कोरिया, जापान, दक्षिण अफ्रीका आदि कई देशों को शामिल करती हैं।

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कान 2025 (2): सिनेमा के ज़रिए रूस पर वार… ‘टू प्रॉसीक्यूटर्स’

जब से रुस ने यूक्रेन पर हमला किया है तब से कान फिल्म फेस्टिवल एकतरफा यूक्रेन का समर्थन कर रहा है और इसीलिए यहां रुसी फिल्में और फिल्मकार लगभग प्रतिबंधित है। इस बार सर्गेई लोज़नित्सा की यह फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई है। यह फिल्म एक राजनैतिक थ्रिलर है जो हमें 1937-38  के रुस में स्तालिन युग के उस खौफनाक दौर में ले जाती है जब झूठे आरोप लगाकर और महान सोवियत क्रांति का गद्दार होने के संदेह में करीब दस लाख निर्दोष नागरिकों को यातना देकर मार डाला गया था।

Robert De Niro at acannes
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कान 2025 (1): ट्रम्प के सिनेमा टैरिफ के विरोध के साथ शुरू हुआ 78 वां कान फेस्टिवल

हॉलीवुड स्टार लियोनार्डो डिकैप्रियो ने रॉबर्ट डी नीरो के सम्मान में कहा कि वे दुनिया भर के अभिनेताओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। उन्होंने सिनेमा में अभिनय की परिभाषा बदल दी है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के युवा अभिनेताओं के लिए डिनीरो का काम देखना ही सबसे बड़ी ट्रेनिंग है कि कैसे किसी चरित्र का अभिनय करते हुए शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन संभव होता है।

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मृणाल सेन की ‘एक दिन अचानक’ में छिपा हर दौर का विमर्श

फिल्म ’एक दिन अचानक’ के रिटायर्ड प्रोफेसर शशांक राय के जीवन त्रासदी लगभग ऐसी ही है। भरा–पूरा मध्यमवर्गीय परिवार है।पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है।जीवन भर ईमानदारी से अध्यापन किया, साहित्य में काम किया, मगर वह ‘सम्मान’ नहीं मिला जिसके कुछ हद तक वे आकांक्षी थे। शशांक राय की पीड़ा मुख्यतः वही है जो वे अपनी बेटी नीता से एक बार कहते हैं “तुम जानती हो नीता हमारे यहां सबसे कीमती चीज है सफलता, कामयाबी! साधना डेडिकेशन की कोई कीमत नही है इस दुनिया में।”

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