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Shyam Benegal

मसाला फिल्मों की मंडी में सार्थक सिनेमा का जुनून थे श्याम बेनेगल

श्याम बेनेगल से पहले  सत्यजित रे के जरिये भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान मिल चुकी थी लेकिन बेनेगल की फिल्मों ने नये संदर्भों में एक नये प्रगतिशील नज़रिये के साथ भारतीय समाज की कहानियों को, समाज में आ रहे बदलावों को, मध्य वर्ग को, सत्ता-व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष को और प्रतिरोध को पूरी दुनिया के सामने पेश किया और भारतीय सिनेमा की प्रतिष्ठा बढ़ायी। 

कान 2024 (2): क्लासिक खंड में श्याम बेनेगल की ‘मंथन’

‘मंथन’ भारत की पहली फिल्म थी जो क्राउड फंडिंग से बनी थी। उस समय गुजरात के पांच लाख किसानों ने दो दो रुपए का चंदा देकर दस लाख रुपए जमा किए थे। कान में ‘कान क्लासिक’ खंड के तहत इसका प्रदर्शन निस्संदेह भारतीय सिनेमा के लिए गौरव की बात है।

Meryl Streep in Cannes

कान 2024 (1): कान में पहली बार 10 भारतीय फिल्में

फ्रांस में होने वाला 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। सीधे कान से पहली रिपोर्ट…

सुसमन: आत्मा की चादर बीनने की दारुण दुख गाथा

फ़िल्म में ‘रामुलु’ एक कुशल बुनकर है पर उस का हुनर केवल प्रतिष्ठा की बात रह गयी है, वह रोटी नहीं दे पाती। वह कपड़े बुनता है मगर अपनी बेटी के लिए साड़ी बुन सके उसके लिए धागे नहीं है।