वाणी जयराम : थम गईं पांच दशकों की एक प्यारी-सी आवाज़

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Jai Narain Prasad
Jai Narayan Prasad

चित्रा से भी पहले वाणी जयराम थीं। 90 के दशक में जब रहमान के संगीत के ज़रिए नई पीढ़ी चित्रा की मीठी आवाज़ के ज़रिए दक्षिण भारत के सुरीलेपन से परिचित हो रही थी, उससे काफी पहले दक्षिण भारत के सुरीलेपन मिठास के प्रतिनिधि स्वर के तौर पर 70 के दशक से ही हिंदी सिनेमा के पास वाणी जयराम थीं। ‘बोले रे पपिहा’ से ले कर ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ समेत उन्होने कई गीतों को यादगार बना दिया है। अपने घर में उनके मृत पाए जाने की खबर स्तब्धकारी है…। कलकत्ता के वरिष्ठ पत्रकार जयनारायण प्रसाद की उनसे कई मुलाकातें और बातचीत रही है। इस लेख के ज़रिए वो वाणी जयराम को याद कर रहे हैं। जयनारायण प्रसाद इंडियन एक्सप्रेस समूह के अखबार जनसत्ता कलकत्ता में 28 सालों तक काम करने के बाद रिटायर होकर कलकत्ता में ही रहते हैं। हिंदी में एम ए जयनारायण प्रसाद ने सिनेमा पर व्यापक रुप से गंभीर और तथ्यपरक लेखन किया है। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी, गायक मन्ना डे, फिल्मकार श्याम बेनेगल, अभिनेता शम्मी कपूर से लेकर अमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी तक से बातचीत। जय नारायण प्रसाद ने जाने माने फिल्मकार गौतम घोष की राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त बांग्ला फिल्म ‘शंखचिल’ में अभिनय भी किया है।

पांच दशकों से चली आ रही गायिका वाणी जयराम की एक प्यारी-सी आवाज़ 4 फरवरी 2023 को चेन्नई में थम गईं। वाणी जयराम ने हिंदी सिनेमा के मदन मोहन, ओपी नैयर, राहुल देव बर्मन, जयदेव, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी और बाप्पी लाहिड़ी जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया था।

हिंदी फिल्म ‘गुड्डी’ में पहली बार गाया

 मुझे याद है वर्ष 1971 की हिंदी फिल्म ‘गुड्डी’ से हिंदी सिनेमा में अपनी गायकी की शुरुआत करने वाली वाणी जयराम के दो गाए गीत उस जमाने में खूब सुने जाते थे। ये दोनों गीत फिल्म ‘गुड्डी’ के थे। एक गीत था – ‘बोले रे पपीहरा’ और दूसरा था – ‘हमको मन की शक्ति देना’। ये दोनों गीत उस दौर में ‘बिनाका गीतमाला’ में लगातार 16 सप्ताह तक बजे थे।

अकेली रहती थीं वाणी जयराम

  वाणी जयराम चेन्नई में अकेली ‌रहती थीं। उनके पति की मौत वर्ष 2018 में ही हो गई थीं। कोई संतान भी नहीं थी वाणी जयराम की।

पटियाला घराने से दीक्षित थीं ‌वाणी जयराम

  पटियाला घराने में दीक्षित वाणी जयराम ठुमरी, ग़ज़ल और भजन गाने में सिद्धहस्त थीं। वर्ष 1945 में तमिलनाडु के वेल्लोर में जन्मीं वाणी जयराम का असली नाम कलैवली था। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत तमिल फिल्म ‘स्वप्नम’ से की थीं। कहते हैं कि वाणी जयराम जब सिर्फ आठ साल की थीं, तबसे क्लासिकल सिंगिंग कर रही थीं। जब बड़ी हुई, तो मद्रास में बैंक ऑफ इंडिया में उन्हें नौकरी मिल गई, लेकिन संगीत उन्होंने नहीं छोड़ा। फिर तबादला लेकर बंबई आ गईं।

ऐसे हुआ था हिंदी सिनेमा से परिचय

  एक रोज़ मशहूर कंपोजर वसंत देसाई से वाणी जयराम की बंबई में मुलाकात हुई। वंसत देसाई उस दिन किसी मराठी फिल्म का संगीत कंपोज करने जा रहे थे। वाणी जयराम की आवाज़ सुनीं, तो उन्हें देखते रह गए। इस तरह, वसंत देसाई का हाथ पकड़ कर  वाणी जयराम हिंदी सिनेमा में गाने लगीं।

जब नींद ‌नहीं खुली, तो…

  30 नवंबर, 1945 में जन्मीं वाणी जयराम की संगीत यात्रा कल 4 फरवरी, 2023 को तब थम गईं, जब वो सो रही थीं। जब सुबह नींद नहीं खुली, तो उनकी नौकरानी ने पुलिस को बुलाया और दरवाज़ा तोड़ा गया। वाणी जयराम कमरे में पर मृत पाई गई।

तीन बार मिला था राष्ट्रपति पुरस्कार

  कर्नाटकी संगीत में महारत हासिल वाणी जयराम अपनी छह बहनों और तीन भाइयों में पांचवीं थीं। बेहतरीन गायिकी के लिए तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त वाणी जयराम को असल में हिंदी फिल्मों से गायक कुमार गंधर्व ने परिचय कराया था। और कुमार गंधर्व से ‌वाणी जयराम का परिचय कंपोजर वसंत देसाई ने कराया था।

19 भाषाओं में गाए थे गाने

  वाणी जयराम ने 19 भाषाओं में गाना गाया था। तमिल, तेलुगु, मलयाली, हिंदी, उर्दू, मराठी, कन्नड़ और ओड़िया में उनके अनेक गाने हैं।

  आंकड़े बताते हैं गायिका वाणी जयराम ने दस हजार से भी ज्यादा गाने गाए हैं। एमएस इलैयाराजा, केवी महादेवन तक ने वाणी जयराम से गवाया है। वर्ष 1980 में आईं हिंदी फिल्म ‘मीरा’ में वाणी जयराम का गाया ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल’ आज भी लोग चाव से सुनते हैं।

हाल में मिला था उन्हें पद्मश्री सम्मान

  वाणी जयराम को हाल ही में ‘पद्मश्री सम्मान’ से नवाजा गया था, लेकिन पांच दशकों का यह संगीत-सफर 4 फरवरी को चेन्नई में थम गया।

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