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अकबर की हुकूमत में एक संगतराश की आवाज़: मुग़ले आज़म 4

‘मुग़ले आज़म’ की पूरी कथा इन्हीं तीन चित्रों के इर्दगिर्द बुनी गई है। अकबर द्वारा एक कनीज को मौत की सजा देना उस चित्र की माफिक है जिसमें बताया गया है कि ”शहंशाह की जबान से निकला हर लफ्ज इंसाफ है जिसकी कोई फरियाद नहीं“। अनारकली के लिए सलीम और अकबर में युद्ध होना जंग के उस चित्र की तरह है जिसके बारे में संगतराश कहता है, ”और ये मैदाने जंग है… लाखों लोगों की मौत और एक इंसान की फतह“। अनारकली का दिवार में चुनवा दिया जाना उस तीसरे चित्र के समान है जिसके बारे में संगतराश कहता है, ”और ये है, सच बोलने का अंजाम, सजा-ए-मौत“।

मुग़ले आज़मः शहंशाह अकबर के ‘राष्ट्रवाद’ की महागाथा-3

यह बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है कि फ़िल्म में बादशाह अकबर के साथ घटी घटनाएं ऐतिहासिक रूप में सत्य है या नहीं। महत्त्वपूर्ण यह है कि यह दंतकथा अकबर जैसे महान बादशाह के बारे में है जो इतिहास में अपनी उदारता और सहिष्णुता के लिए प्रख्यात है और जिसने सारे देश को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया था और जो इस सच्चाई को समझ चुका था कि इस देश पर शासन तभी किया जा सकता है जब यहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों के बीच बिना किसी तरह का भेदभाव किए व्यवहार किया जाए।

Mughal e Azam

मुग़ले आज़मः इतिहास, दंतकथा और कल्पना का अंतर मिटाने वाली फिल्म-2

मुग़ले आज़म फ़िल्म में जिस हिंदुस्तान को पेश किया गया है उसके पीछे लोकतांत्रिक भारत के प्रति फ़िल्मकार की आस्था व्यक्त हुई है। यह आस्था भारत की मिलीजुली संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा में भी निहित है। फ़िल्मकार के इस नज़रिए को समझे बिना हम ‘मुग़ले आज़म’ को एक दंतकथा पर बनी प्रेमकहानी मात्र समझने की भूल करेंगे।

Cine Book Review: सिने बुक रिव्यू के बारे में

‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ सिनेमा से जुड़ी गंभीर पुस्तकों के बारे में जानकारी देने और उनकी विषयवस्तु से परिचित कराने के लिए ऐसी नई पुस्तकों की (पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों की भी) नियमित रुप से जानकारी और समीक्षा प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहा है।

Mughal e Azam

मुग़ले आज़म: भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा महाकाव्य- 1

के आसिफ की ‘मुग़ले आज़म’ जिस विराट महाकाव्यात्मक कैनवास को लेकर बनाई गई थी उसे प्रायः समझा ही नहीं गया। ‘मुग़ले आज़म’ को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि हम इस बात को ध्यान में नहीं रखते कि यह फिल्म विभाजन की भयावह त्रासदी से उभरते देश के एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनने के आरंभिक सालों की समानांतर रचना है।

Holocaust Book

होलोकास्ट की पुनर्रचना और दर्द से गुज़रता सिनेमा

“नाजी यातना शिविरों की त्रासद गाथा”, मानव इतिहास के इन सबसे काले पलों को फिल्मों के माध्यम से याद करती है। दो सौ छप्पन पृष्ठों की ये किताब बीस फिल्मों के माध्यम से होलोकास्ट के दौर के जीवन और समाज को देखने समझने वाली फिल्मों की पड़ताल करती है।

अरुण खोपकर की ‘चलत् चित्रव्यूह’ अब हिंदी में

प्रसिद्ध मराठी लेखक-फिल्मकार अरुण खोपकर की साहित्य अकादमी से सम्मानित मराठी पुस्तक ‘चलत चित्रव्यूह’ के हिंदी अनुवाद की समीक्षा। ये पुस्तक फिल्म और कला जगत की महान हस्तियों से जुड़े उनके संस्मरणों का संग्रह है।