सिनेमा में ‘अफ़वाह’ और ‘द केरल स्टोरी’

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Alok Nandan Sharma

हाल में दो महत्वपूर्ण फिल्में रिलीज़ हुई हैं। एक है सुदीप्तो सेन की ‘द केरल स्टोरी’ और दूसरी है सुधीर मिश्रा की ‘अफवाह’। इन दोनों फिल्मों के कंटेंट में काफी साम्यता है जबकि ट्रीटमेंट और अप्रोच में काफ़ी फ़र्क है। क्या है इन दोनों फिल्मों में फ़र्क आंकलन कर रहे हैं आलोकनंदन शर्माआलोकनंदन पटना स्थित एक पत्रकार-लेखक-चिंतक हैं, जो अपने व्यापक अनुभवों और गहन अध्ययन के बूते समाज, इतिहास और जीवन-दर्शन को समग्रता के साथ-साथ व्यावहारिकता की सूक्ष्मता के स्तर पर भी आंकलन की क्षमता रखते हैं। फिल्मों को लेकर उनका बेहद खास और एक बिलकुल अलग नज़रिया रहा है।

एक सहज सवाल है, फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर इतना हाई अटेंशन क्यों लिया गया और फिल्म ‘अफवाह’ को अंडरप्ले क्यों किया गया जबकि दोनों फिल्मों के केंद्र में लव जेहाद है? क्या यह इसलिए हुआ क्योंकि ‘द केरल स्टोरी’ की कहानी का तानाबाना लव जेहाद में फंसी हुई लड़कियों के इर्दगिर्द बुना गया है जबकि ‘अफवाह’ में यह दिखाया गया है कि कैसे किसी घटना विशेष को सोशल मीडिया के जरिए पूरी तरह से बदल कर उसे लव जेहाद का रूप दे दिया जाता है और जाने अनजाने उस अफवाह को विस्तार देने में सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग भी संलग्न हो जाते हैं ?

फिल्म ‘अफवाह’ की कहानी एक ऐसी लड़की के इर्दगिर्द घूमती रहती है जो अपनी इच्छा के खिलाफ एक राजनेता से शादी करना नहीं चाहती है। वह घर से भागती है और फिर अमेरिका रिटर्न एक बिजनेस मैन से अचानक उसकी मुलाकात होती है। वह उसकी मदद करता है। राजनेता के गुंडों से बचकर भागते हुए उनका वीडियो वायरल होता है, और इसे लव जेहाद का रूप दिया जाता है। एक घटना को गलत तरीके से पेश किया जाता है और फिर वह सोशल मीडिया पर लव जेहाद की शक्ल अख्तियार करती हुई आग की तरह फैल जाती है। लोग उसे फारवर्ड करते जाते हैं, बिना सोचे समझे।

इस कहानी को फिल्म ‘अफवाह’ के निर्देशक सुधीर मिश्रा ने बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया है। फिल्म की गति भी लाजवाब है, और परिवेश व तमाम चरित्र भी। यह फिर दर्शकों को रोमांचित करती है।

नवाजुद्दीन सिद्दीकी और भूमि पेडनेकर ने भी सुधीर मिश्रा के सधे हुए निर्देशन में बेहतर किया काम किया है। बावजूद इसके इस फिल्म को नजर अंदाज किया गया है। सवाल उठता है क्यों ?

इस फिल्म को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया है उससे खुद इसके निर्देशक सुधीर मिश्रा भी चकित हैं। एक वेब पोर्टल के संवाददाता के साथ बातचीत में उन्होंने कहा है कि वक्त अजीब होता है। मैं चाहता हूं कि यह फिल्म लोगों तक पहुंचे। यह बातचीत के लिए है। मैं आमतौर पर लोगों की प्रतिक्रिया का परवाह नहीं करता लेकिन इस बार मुझे फिक्र हो रही है।

मतलब साफ है कि सुधीर मिश्रा चाहते हैं कि इस फिल्म मैं दिखाये जा रहा है कंटेंट पर बात हो, सोशल मीडिया के जरिए फैलाई जा रही अफवाह  के तौर तरीके पर बात हो। उन्हें लगता है कि तकनीकि क्रांति के जिस दौर में मानव सभ्यता प्रवेश कर चुकी है वह खतरनाक है, व्यक्ति विशेष के लिए भी, उसकी आजादी के लिए भी, समाज के लिए भी और धर्म और राष्ट्र के लिए भी। चूंकि इस फिल्म में लव जेहाद को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है और अफवाह फैलाने का पूरा चक्रव्यूह रचने वाले नेता को पता है कि अपनी मनपंसद चीज हासिल करने लिए किस तरह की अफवाहें फैलानी हैं और कैसे फैलानी हैं।

फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पहले दिन 8 करोड़ रुपये, दूसरे दिन 11.22 करोड़ रुपये और तीसरे दिन का कलेक्शन 16.60 करोड़ रुपये रहा। फिल्म ‘अफवाह’ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पहले और दूसरे दिन क्रमश: 25-25 लाख रुपये रहा और तीसरे दिन 50 लाख रुपये। दोनों में अपने अपने तरीके से लव जेहाद को चित्रित किया गया है। पहली फिल्म में लव जेहाद के मैकेनिज्म को प्रदर्शित किया जा रहा है, इस दावे के साथ कि यह फिल्म पूरी तरह से सच्ची घटना पर आधारित है जबकि दूसरी फिल्म में यह दिखाया जा रहा है कि लव जेहाद शब्द का इस्तेमाल कैसे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई सियासी शख्स करता है, और कैसे इसके नाम पर फैलाये जा रहे अफवाह से किसी की जान पर बन आती है।

सवाल उठता है कि कमोबेश एक ही विषय लव जेहाद के इर्दगिर्द बनी दो फिल्मों में एक फिल्म को दर्शक माथे पर क्यों बिठाते हैं दूसरी फिल्म से दूरी क्यों बना लते हैं? रिलीज होने के पहले ही फिल्म ‘द केरला स्टोरी ’ के बारे में यह दावा किया जाता है कि यह सच्ची घटना पर आधारित है और तकरीबन 32 हजार गैर मुस्लिम लड़कियां केरल जैसे राज्य से लव जेहाद के चंगुल में फंसकर गायब हो चुकी हैं। तमाम संचार माध्यमों में भी यही प्रचारित प्रसारित किया जाता है कि यह फिल्म लव जेहाद के चेहरे से नकाब हटाती है और गैरमुस्लिम लड़कियों को सतर्क करती है, जबकि फिल्म ‘अफवाह’ समाज में अफवाह फैलाकर लोगों को गुमराह करने वाले मैकेनिज्म का पर्दाफाश करती है और इसका हिस्सा न बनने के लिए सतर्क करती है।

एक समय था जब भारत में विशुद्ध रूप से एंटरटेनमेंट फिल्में बनती थी। तीन भाई बचपन में बिछड़ते थे अलग-अलग धर्म के लोगों के यहां पलते बढ़ते थे और फिर फिल्म के अंत में मिल जाते थे। दर्शक इस तरह की फिल्मों को पसंद करते थे। और बॉक्स ऑफिस पर भी इस तरह की फिल्में धमाल मचाती थी। मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा सहित कई निर्माता निर्देशकों ने इस फार्मूले के तहत फिल्में बनाई हैं। बेहतर कारोबार करने के साथ-साथ इस तरह की फिल्मों ने भारत की समरसता को भी मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह भी नहीं भूलनी चाहिए कि इस तरह की फिल्में 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद बन रही थी, इसके पहले भारत 1948 और 1965 में पाकिस्तान की ओर से 2-2 कबाइली हमलों को झेल चुका था। इसके बावजूद फिल्मों का कंटेंट भारतीय समाज के अंदरूनी हिस्से के लिए जहरीला नहीं हुआ था, और शायद उस वक्त दर्शक भी मानसिक तौर पर विभाजनकारी कंटेंट को देखने के लिए तैयार नहीं थे और फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को भी समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का पूरा पूरा एहसास था। समाज में बहुत सारी विसंगतियां होने के बावजूद वे पर्दे पर ऐसी चीजें परोसना नहीं चाहते थे जिससे इन विसंगतियों को और बढ़ावा मिले। तो पिछले 30-40 साल में ऐसा क्या हुआ, अमर अकबर एंथोनी का बंटवारा होने लगा? अमर अकबर एंथोनी को एक साथ देखने वाले दर्शकों का बंटवारा होने लगा? डिजिटल क्रांति का उद्देश्य जिंदगी को सुगम करना था, समाज में जहर घोलना या अफवाह फैलाना नहीं, शायद सुधीर मिश्रा न इसी संवाद को आगे बढ़ाने की इच्छा से फिल्म अफवाह का निर्माण किया, लेकिन सवाल उठता है कि क्या समाज इस वक्त स्वस्थ संवाद करने की स्थिति में है और क्या फिल्म लोगों को स्वस्थ संवाद करने की स्थिति में लाने की भूमिका निभा रही है ?

फिल्म क्यों देखें : अफवाह के मैकेनिज्म को समझने और नवाजुद्दीन सिद्दकी और भूमि पेडनेकर के जबरदस्त अभिनय को देखने के लिए।

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