अलविदा एम टी: अपूर्ण प्रेम के अप्रतिम कथाकार का जाना
मलयालम के महान लेखक-रचनाकार-फिल्मकार एम टी वासुदेवन नायर का निधन (25 दिसंबर, 2024) साहित्य और सिनेमा जगत के लिए एक बड़ा झटका है। मलयालम साहित्य और सिनेमा में तो उनका स्थान इतना ऊंचा है कि ऐसा कोई मलयालम भाषी नहीं मिलेगा जो उनका नाम न जानता हो। एम टी के नाम से लोकप्रिय एम टी वासुदेवन नायर ने न सिर्फ मलयालम भाषा को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलायी बल्कि केरल की सांस्कृतिक आत्मा को भी अपने लेखन के ज़रिए बहुत श्रेष्ठ अभिव्यक्ति दी। उनके सांस्कृतिक और रचनात्मक योगदान के अतिरिक्त उनके व्यक्तित्व का एक अहम पहलू धर्मनिरपेक्षता और मानवता के प्रति उनका अगाध समर्पण भी रहा है जो समाज और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। हम यहां पर एमटी को याद करते हुए डॉ विजय शर्मा की नवीनतम पुस्तक ‘परदे के पीछे: सिने जगत के जादुई हाथ’ (नयी किताब प्रकाशन समूह, मूल्य रु.120) में एम टी वासुदेवन नायर पर लिखे एक अध्याय का कुछ अंश बतौर श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अध्याय का नाम है ‘एमटी: स्क्रीनप्ले राइटिंग में क्रांति’। इस संक्षिप्त आलेख से एम टी वासुदेवन नायर के काम को समझने में हिंदी दर्शकों-पाठकों को कुछ आसानी होगी।मलयालम के महान लेखक-रचनाकार-फिल्मकार एम टी वासुदेवन नायर का निधन (25 दिसंबर, 2024) साहित्य और सिनेमा जगत के लिए एक बड़ा झटका है। मलयालम साहित्य और सिनेमा में तो उनका स्थान इतना ऊंचा है कि ऐसा कोई मलयालम भाषी नहीं मिलेगा जो उनका नाम न जानता हो। एम टी के नाम से लोकप्रिय एम टी वासुदेवन नायर ने न सिर्फ मलयालम भाषा को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलायी बल्कि केरल की सांस्कृतिक आत्मा को भी अपने लेखन के ज़रिए बहुत श्रेष्ठ अभिव्यक्ति दी। उनके सांस्कृतिक और रचनात्मक योगदान के अतिरिक्त उनके व्यक्तित्व का एक अहम पहलू धर्मनिरपेक्षता और मानवता के प्रति उनका अगाध समर्पण भी रहा है जो समाज और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। हम यहां पर एमटी को याद करते हुए डॉ विजय शर्मा की नवीनतम पुस्तक ‘परदे के पीछे: सिने जगत के जादुई हाथ’ में एम टी वासुदेवन नायर पर लिखे एक अध्याय का कुछ अंश बतौर श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अध्याय का नाम है ‘एमटी: स्क्रीनप्ले राइटिंग में क्रांति’। इस संक्षिप्त आलेख से एम टी वासुदेवन नायर के काम को समझने में हिंदी दर्शकों-पाठकों को कुछ आसानी होगी।
डॉ विजय शर्मा की सबसे बड़ी पहचान विषय के प्रति उनका समर्पण और श्रमसाध्य लेखन है। पूर्व एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. विजय शर्मा की अब तक विश्व साहित्य, एफ्रो-अमेरिकन साहित्य और विश्व सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर करीब 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके वैविध्यपूर्ण लेखन और कृतित्व को चंद शब्दों में इस तरह व्यक्त कर सकते हैं- हिन्दी की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन, आकाशवाणी से फिल्म, पुस्तक समीक्षा, कहानी, साहित्य परिक्रमा, रूपक, वार्ता आदि प्रकाशित, इसके अलावा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के आयोजन तथा पेपर प्रस्तुति, यूनिवर्सिटी परीक्षक, विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम निर्माण समिति की सदस्य, कई हिन्दी और इंग्लिश पत्रिकाओं में सह-संपादन, ‘कथादेश’ के दो अंक का अतिथि संपादन, फिल्म क्रिटिक स्कूल ऑफ इंडिया की सदस्य, फिल्म समारोह में ज्यूरी सदस्य, ‘हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश’ में सहयोग, 14 वर्षों से साहित्य-सिनेमा-कला संस्था ‘सृजन संवाद’ का संचालन। अमर उजाला में ‘विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया’ शीर्षक से सिने-इतिहास लेखन जारी। वो प्रतिष्ठित फिल्म क्रिटिक्स सर्किल ऑफ इंडिया की सदस्य हैं। इसी साल सत्यजित राय के समस्त सिनेमा पर आधारित उनके द्वारा संपादित एकअहम पुस्तक ‘सत्यजित राय का अपूर्व संसार’ दो खंडों में पुस्तकनामा से प्रकाशित हुई है, जिसे हिंदी में सत्यजित राय पर अब तक का बेहद महत्वपूर्ण काम माना जा रहा है।
मलयाली और बंगाली का साहित्य और सिनेमा प्रेम प्रसिद्ध है, वे अपने साहित्यकार और फ़िल्मकार का सम्मान करना जानते हैं। किसी मलयाली के सामने एम. टी. कह कर देखिए वह उनके विषय में इतने सम्मान से बात करेगा, उसने उनका कुछ-न-कुछ अवश्य पढ़ा होगा, उनकी फ़िल्म देखी होगी। जी हाँ, एम. टी. वासुदेवन नायर जिन्हें प्यार से मात्र एम. टी कहा जाता है, साहित्यकार और फ़िल्मकार दोनों हैं। और जब मैं उन्हें फ़िल्मकार कह रही हूँ, तो वे एक साथ कहानी लेखक, स्क्रीनप्ले राइटर, अभिनेता और सिने-निर्देशक सब हैं। आज उनके सिने-लेखक व्यक्तित्व पर बात करती हूँ।
अगर उनके स्क्रीनप्ले सहित समस्त लेखन का सार निकाले तो यह किसी अपराध केलिए पश्चाताप एवं स्वमोचन हेतु सहा गया आंतरिक कष्ट होता है। यहाँ भावात्मक सघनता होती है और साथ ही होती है, प्रेम की लयात्मकता। उनके यहाँ भयंकर गरीबी के दर्शन होते हैं। ‘निर्माल्यं’ में यह देखा जा सकता है। वे जमींदारी प्रथा के अंत के समय होने वाले दर्द को भी दिखाते हैं। ‘अमृतं गमय’ स्क्रीनप्ले में वे यही प्रश्चाताप दिखाते हैं। एक व्यक्ति अपने पाप मोचन केलिए पूरी जिंदगी लगा देता है। भले ही वह अपना प्रेम खोता है लेकिन अंत में अपना मोचन कर पाता है। वे केरल के मलाबार क्षेत्र के मातृसत्तात्मक परिवार से आते हैं और मातृसत्तात्मक परिवार उनकी कई कहानियों में नजर आता है।
प्रेमियों को अंत में मिला कर दर्शक को प्रसन्न कर देना बहुत आसान है। एम. टी. यह नहीं करते हैं, वे प्रेम को अपूर्ण दिखाते हैं, उनके यहाँ अंत में प्रेमी-प्रेमिका का मिलन अक्सर नहीं होता है। उदाहरण केलिए उनका ‘अमृतं गमय:’ तथा ‘निर्माल्यं’ का स्क्रीनप्ले देखा जा सकता है। ‘अमृतं गमय:’ में जिससे बचपन से शादी की बात तय थी नायक को वह स्त्री नहीं मिलती है और जो स्त्री उसे प्रेम करती है, नायक के मन में भी उसके लिए कोमल भाव है उससे भी वह दूर रहता है। ‘निर्माल्यं’ में पिता के कहे पर प्रेमी अपनी छोटी बहन की शादी के एवज में शादी (एक्चेंज मैरेज) करने चला जाता है और प्रेमिका पीछे छूट जाती है।