‘स्कैम’ के दौर में ‘गुरू’ का ‘द बिग बुल’ अवतार
बॉलीवुड में आइडिया की कमी है और भेड़चाल का बोलबाला... दशकों से सुनी-पढ़ी जा रही इस बात को लिखना भी अब बेहद घिसा-पिटा लगता है। लेकिन दाद देनी होगी डिज़्नी-हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई अभिषेक बच्चन की फिल्म द बिग बुल के निर्माताओं को, जिनमें अजय देवगन भी शामिल हैं, जिन्होने डिजिटल प्लैटफॉर्म पर रिलीज़ हुई एक महासफल सीरीज़ के विषय पर डिजिटल पर ही रिलीज़ करने के लिए एक भारी भरकम फिल्म बना डाली। अमिताभ श्रीवास्तव की त्वरित समीक्षा...
अभिषेक ए बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’ हर्षद मेहता की कहानी पर आधारित है लेकि डिस्क्लेमर में सीधे-सीधे यह बात कहने से बचा गया है। हर्षद मेहता पर हंसल मेहता और प्रतीक गांधी की चर्चित वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी’ देखने के बाद अभिषेक बच्चन की ढाई घंटे की फ़िल्म बहुत साधारण, बचकानी और सतही लगती है। हालाँकि सबको अपने हिसाब से कहानी कहने का हक़ है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि हंसल मेहता और प्रतीक गांधी की जोड़ी ने बहुत बड़ी लकीर खींच दी थी। अभिषेक बच्चन की बदक़िस्मती और निर्देशक की नाकाबिलियत से ‘द बिग बुल’ उससे बहुत पीछे रह गई है। गड़बड़ी अभिनेताओं की नहीं है, पटकथा और निर्देशन की है।
फ़िल्म मुख्य किरदार हेमंत शाह को घोटालेबाज़ की तरह नहीं बल्कि बेहद महत्वाकांक्षी हीरो की तरह पेश करती है । फ़िल्म की शुरुआत में वह कहता है- जब आदमी ऊँचाई की तरफ़ देख रहा हो तो उसे टोकना नहीं चाहिए। पकड़े जाने पर कहता है- दोषी मैं नहीं, इस देश का पाॅलिटिकल सिस्टम है। उसका भाई वीरेन शाह जाँच अधिकारियों से कहता है- भगवान से भी ज़्यादा पैसे हैं हमारे पास।
इलियाना डिक्रूज़ यहाँ सुचेता दलाल से मिलतेजुलते पत्रकार के किरदार में हैं । उनके मुँह से निर्देशक ने कहलवाया है- आज़ादी के बाद चालीस सालों तक देश में कोई विकास नहीं हुआ। जिस तरह से उन्हें शेयर घोटाले की पड़ताल करते दिखाया गया है, वह बेहद बचकाना और हास्यास्पद है।
अभिषेक बच्चन से हमदर्दी है कि अच्छा अभिनेता होने के बावजूद उनको सही मुक़ाम नहीं मिल पा रहा है। अमेज़न प्राइम पर उनकी वेब सीरीज़ ‘ब्रीद: इन टू द शैडोज़’ भी अजीब उलझाऊ सी कहानी थी जिसके बारे में ज़्यादा उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं नहीं मिली थीं। ‘द बिग बुल’ उसी रास्ते पर है।