संतोष शिवन ने इस अवसर पर आभार प्रकट करते हुए कहा कि सिनेमैटोग्राफी एक वैश्विक कला है इसलिए यह यूनिवर्सल है।जितनी आसानी से मैं तमिल और मलयालम सिनेमा में काम करता हूं उतनी ही सुविधा से हिंदी सिनेमा, हॉलीवुड और विश्व सिनेमा में काम करता हूं। उन्होंने कहा कि एक बार जापान के सिनेमैटोग्राफर एसोसिएशन के आमंत्रण पर मैं उनके साथ पचास दिन रहा। मैंने देखा कि वे मेरी फिल्म ‘दिल से’ के मशहूर गीत ‘छैंया छैंया’ गा रहे थे।
कान फिल्म फेस्टिवल के 77 सालों के इतिहास में तीस साल बाद कोई भारतीय फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई है। वह फिल्म है पायल कपाड़िया की मलयालम हिंदी फिल्म ‘आल वी इमैजिन ऐज लाइट’। इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ‘स्वाहम’ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी।
ऊपर से लग सकता है कि यह फिल्म मुस्लिम समाज पर सीधे सीधे आरोप लगा रही है कि देश की आबादी बढ़ाने में केवल वहीं जिम्मेदार है। लेकिन आगे चलकर इस मुद्दे की पृष्ठभूमि में बिना किसी समुदाय की भावना को आहत किए कई मार्मिक कहानियां सामने आती हैं। बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए निर्देशक कमल चंद्रा ने साफगोई से अपनी बात कहने के लिए इमोशनल मेलोड्रामा का प्रयोग किया है।
फ्रांस में होने वाला 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। सीधे कान से पहली रिपोर्ट…
कौथर बेन हनिया ने ‘ फोर डॉटर्स’ में एक नये तरह का सिनेमा रचा है। उन्होंने वास्तविक चरित्रों के साथ अभिनेताओं से काम कराया है। हम देखते हैं कि ट्यूनीशिया का समाज इतना आधुनिक और खुले विचारों वाला है। ओल्फा की चारों बेटियों की दिनचर्या में वास्तविक सुंदरता और आजादी है। इस्लामी रैडिकलाइजेशन के बाद सबकुछ बदल जाता है।