पठान: राष्ट्रवाद के टेंपलेट वाला एक ‘छद्म सिनेमा’

सिनेमा अगर केवल तकनीकी फार्मूलों वाली वीडियो गेमिंग व डिब्बाबंद फूड का रूप ग्रहण कर ले, मनोरंजन को तकनीक की ‘अनरियल’ धमाचौकड़ी में बदल डाले तो समाज को उसका उपभोक्ता बनने से पहले सोचना चाहिए, न कि आठ सौ करोड़ का बिजनेस थमा देना चाहिए।