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Film Paar

गौतम घोष की ‘पार’: जीवन के भीतर पार पाने का संघर्ष

फिल्म का शीर्षक ’पार’ है,  भाववादी दर्शनों में मनुष्य सांसारिकता से छुट्टी पाकर जीवन नैया ’पार’ करना चाहता है। यहां श्रमिक दंपत्ति इस जीवन के भीतर सुकून की तलाश के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें भवसागर पार नहीं करनी है। एक नदी पार करनी है ताकि अपना घर वापस लौट सकें, जहां भले भूख,गरीबी है मगर इस तरह अनामिकता, अजनबियत, छल –प्रपंच नहीं है। यद्यपि शोषण वहां भी है मगर वहां कम से कम रात को सोने को झोपड़ी तो है!

सुसमन: आत्मा की चादर बीनने की दारुण दुख गाथा

फ़िल्म में ‘रामुलु’ एक कुशल बुनकर है पर उस का हुनर केवल प्रतिष्ठा की बात रह गयी है, वह रोटी नहीं दे पाती। वह कपड़े बुनता है मगर अपनी बेटी के लिए साड़ी बुन सके उसके लिए धागे नहीं है।