द हिंदू बॉय: कश्मीर की एक फ़ाइल ये भी
बीते कुछ सालों से कश्मीर लगातार सियासत और खबरों के फोकस में रहा है… खासतौर पर कश्मीरी पंडितो के पलायन और उनके साथ हुई त्रासदी का पहलू। सो सिनेमा पर इसका असर पड़ना लाज़मी है। ‘द हिंदू बॉय’ उसी असर का नतीजा है, जो एक ऐसी फिल्म है जिसे ईमानदारी, नेकनीयती और इस यकीन के साथ बनाया गया है कि आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता। फिल्म पर आशीष कुमार सिंह की एक समीक्षात्मक टिप्पणी।
‘द हिंदू बॉय’ कश्मीर से हुए कश्मीरी पंडितों के पलायन पर केंद्रित है, इसीलिए लेंथ के हिसाब से शॉर्ट फिल्म होने के बावजूद इसे कश्मीरी पंडितों की स्थिति पर बनी अशोक पंडित की ‘शीन’ (2004), विधु विनोद चोपड़ा की ‘शिकारा’ (2020) और विवेक अग्निहोत्री की ‘द कश्मीर फाइल्स’ (2022) की कड़ी में गिना जा सकता है।
फिल्म में एक कश्मीरी पंडित परिवार की कहानी है, जो कश्मीर से पलायन कर जम्मू में रह रहा है। कहानी के फोकस में बिट्टू नाम का एक कश्मीरी पंडित लड़का है। कश्मीर बस उसके बचपन की यादों में ही बचा हुआ है, इसलिए जवान होने के बाद वो अपनी जड़ों को जानने-समझने के लिए एक बार वहां जाने का फैसला करता है। मां-बाप के बार बार मना करने के बावजूद, एक दिन वो चुपचाप उनके लिए चिट्ठी छोड़ कर घर से निकल पड़ता है। एक ओर पता लगने के बाद मां-बाप का घबराना-रोना पीटना और परेशान होकर मदद के लिए जगह-जगह फोन करना कश्मीर के हालात को दिखाता है तो दूसरी ओर बिट्टू जो अपनी बाइक पर निकल पड़ा है उस कश्मीर को खुद देखने, जानने, समझने… उसके तजुर्बे हैं, जो अंतिम सीन तक दर्शकों को बांधे रखते हैं।
20 मिनट की इस फिल्म की खास बात है इसमें रोचकता का लगातार बने रहना कि अब क्या होगा…जिसके लिए स्क्रीनप्ले और एडिटिंग दोनों की तारीफ करनी चाहिए। फिल्म का कैमरा वर्क बहुत अच्छा है। फिल्म को कश्मीर की खूबसूरत और रियल लोकेशंस पर जाकर शूट किया गया है जिसमें पलायन कर चुके एक कश्मीरी पंडित परिवार का घर भी शामिल है। कश्मीर के गांवों के भीतर के दृश्य देखना काफी सुखद और फ्रेश लगता है। कश्मीरी गांव को दिखाते समय छोटी छोटी बातों का ध्यान रखा गया है।
फिल्म का गीत- ‘मैं आता हूं मां अपनी मिट्टी से मिल के’- बहुत अच्छा है और इसकी धुन और संगीत भी मूड के मुताबिक काफी अच्छा रचा गया है। इसके टुकड़ों का फिल्म में जगह-जगह इस्तेमाल दृश्यों को असरदार भी बनाता है, लेकिन इसको थोड़ा ओवरयूज़ कर दिया गया है। एक शॉर्ट फिल्म में इस इकलौते गीत का अधिक इस्तेमाल एकाध बार खटकता है। फिल्म में साइलेंस, साउंड का बहुत अच्छा इस्तेमाल है। कलाकारों का अभिनय भी बहुत अच्छा है। शॉर्ट फिल्म होने के बावजूद फिल्म के प्रोडक्शन का स्केल बहुत प्रोफेशनल है। फिल्म के मुख्य पात्र बिट्टू की भूमिका में अभिनेता शरद मल्होत्रा हैं, जिन्होने अच्छा अभिनय किया है। शरद टीवी का जाना पहचाना चेहरा हैं और दर्शक उन्हे नागिन, मुस्कान, कसम तेरी प्यार की जैसे तमाम धारावाहिकों में देख चुके हैं। बाकी कलाकारों में अशरफ नागू, मलिक मुश्ताक, रुखसाना खान, हैदर, मोहम्मद हादी बिलाल और मोहसिन सभी का अभिनय अच्छा है, लेकिन कश्मीरी महिला के रुप में हसीना का अभिनय काफी नैचुरल लगता है और याद रह जाता है।
फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले शाहनवाज़ बकाल (रुफी खान) ने लिखी है। डायरेक्शन और एडिटिंग का जिम्मा भी उन्होने ही संभाला है। फिल्म देखने के बाद लगता है कि उन्होने अपने काम को बहुत मेहनत से और बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया है। पिछले साल उन्होने इनाम नामकी एक शॉर्ट फिल्म बनाई थी, महज़ पौने दस मिनट की इस फिल्म में कोई डायलॉग नहीं था पर फिल्म में एक मैसेज था, जो साफ साफ सुना जा सकता था। इस फिल्म को इस साल के मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी आधिकारिक तौर पर चुना गया है। ‘द हिंदू बॉय’ की तरह ये फिल्म भी कश्मीर पर ही आधारित थी।
कश्मीर को लेकर इन दिनों तरह-तरह की फाइलें खोली जा रही हैं… ज़ख्म कुरेदे जा रहे हैं। ‘द हिंदू बॉय’ कश्मीर के उस पहलू की एक और ज़मीनी तस्वीर पेश करती है, जिसकी चर्चा इन दिनों काफी हो रही है। हालांकि 2004 में बनी अशोक पंडित की फिल्म ‘शीन’ भी कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनके साथ हुई त्रासदी पर आधारित थी लेकिन उस फिल्म का पोलिटिकल और सोशल अप्रोच मुकम्मल था… उसमें कश्मीर की ज़मीनी हकीकत और सामाजिक ताने बाने को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया था, न ही उसे नफ़रत की दास्तान के तौर पर बुना गया था। उस फिल्म में से लवस्टोरी और गानों को हटा दिया जाए तो आज भी वो एक त्रासद दौर की मुकम्मल तस्वीर पेश करती लगती है। अपने अप्रोच में ‘द हिंदू बॉय’ कहीं न कहीं ‘शीन’ में दिखाए गए कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने को आज के परिप्रेक्ष्य में फिर से ज़िंदा करती है।
रूफ़ी ख़ान द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द हिंदू बॉय’ यू ट्यूब पर उपलब्ध है, जिसे महज़ 3 हफ्तों में 30 लाख से अधिक लोगों ने देख लिया है। ये फिल्म सभी को देखनी चाहिए…क्योंकि इसमें कश्मीर के भीतर तक जाकर कश्मीर का एक नया पहलू दिखाया गया है। जो लोग आज के कश्मीर से वाकिफ हैं उनका भी मानना है कि फिल्म की कहानी हकीकत से बहुत अलग या एक रुमानी कल्पना भर नहीं है।
कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में जो हुआ वो निस्संदेह एक बहुत बड़ी और ऐतिहासिक त्रासदी थी और उसकी भरपाई नामुमकिन है। इतिहास या सच्चाई को कभी नकारा भी नहीं जा सकता न नकारा जाना चाहिए… लेकिन उसे याद, उससे सबक सीखने और आज को बेहतर बनाने के तौर पर ही किया जाना चाहिए। ‘द हिंदू बॉय’ इस कसौटी पर खरी उतरती है।