कविता जैसी संवेदना वाली फिल्में: 30वें KIFF का समापन
Kolkata International Film Festival भारत का दूसरा सबसे बड़ा फिल्म फेस्टिवल कहा जाता है। बुधवार 4 नवंबर को शुरू होकर हाल ही में इसका समापन हुआ है। कोलकाता वैसे भी संस्कृतिप्रेमी शहर है, इसलिए न सिर्फ कोलकाता बल्कि इसपूरे क्षेत्र के सिनेमाप्रेमियों के लिए ये एक उत्सव की तरह होता है। इस बार के फेस्टिवल में क्या-क्या खास रहा, कौन-कौन सी फिल्में पुरस्कृत हुईं, कौन-कौन सी फिल्मों की खास चर्चा हुई, इस पर एक समीक्षात्मक आलेख के माध्यम से बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जयनारायण प्रसाद, जो इंडियन एक्सप्रेस समूह के अखबार जनसत्ता कलकत्ता में 28 सालों तक काम करने के बाद रिटायर होकर कलकत्ता में ही रहते हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों और रिपोर्टिंग को लेकर काफी सक्रिय रहते हैं। हिंदी में एम ए जयनारायण प्रसाद ने सिनेमा पर व्यापक रुप से गंभीर और तथ्यपरक लेखन किया है।
सिनेमा का संसार भी अनोखा है। पर्दे पर जब दृश्य उभरते हैं और संगीत व ध्वनि के माध्यम से एक अच्छी कहानी से हमारा साबका पड़ता है तब समझ में आता है हम एक ऐसी दुनिया में विचरण कर रहे हैं, जो संवेदनशील भी है और अनूठा भी।
तीसवें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव-2024 में कुछ ऐसी ही फिल्में हमें देखने को मिलीं, जो लाजवाब ही नहीं रचनात्मकता से भरी हुई थीं। इसमें भारतीय फिल्में भी थीं और विदेशी भी।
4 से 11 दिसंबर, 2024 तक चले इस तीसवें ‘कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव’ (केआईएफएफ) में 29 देशों की कुल 175 फिल्में थीं, जिसमें प्रतियोगिता खंड में 42 फीचर थीं और 30 शॉर्ट व डॉक्यूमेंट्री। ये सभी महानगर कोलकाता के 20 सिनेमा हॉल में दिखाई गईं। इसका मुख्य प्रेक्षागृह था ‘नंदन’। इसके अलावा रवींद्र सदन और शिशिर मंच प्रेक्षागृह में भी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। सेमिनार भी हुए और सिनेमा का अड्डा भी जमा। मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन भी आईं और बॉलीवुड फिल्मकार आर बल्कि ने ‘सत्यजित राय मेमोरियल लेक्चर’ दिया। मराठी और हिंदी में खूबसूरत फिल्में बनाने वाले फिल्मकार जब्बार पटेल भी दिखे और कन्नड़ सिनेमा के महारथी गिरीश कासरावल्ली भी। विदेशी फिल्मकारों की एक टीम भी थीं, जिनकी रचनात्मक फिल्मों से अमूमन रोज़ साबका हुआ।
आखिर में 11 दिसंबर की शाम फिल्म पुरस्कारों की घोषणा हुई,
जिसमें बुल्गारिया की फिल्म ‘Tarika’ को बेस्ट फिल्म का दर्जा हासिल हुआ। निर्देशक मिल्को लजारोव की इस खूबसूरत फिल्म को ‘गोल्डन रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी’ से नवाजा गया और 51 लाख रुपए का नगद पुरस्कार भी मिला। इसके अलावा बेस्ट डायरेक्टर का 21 लाख का पुरस्कार पनामा के निर्देशक एना एंडारा को मिला। एना निर्देशित फिल्म ‘विलव्ड ट्रापिक’ वाकई शानदार और संवेदनशील मूवी थीं। बंगाली पेनोरमा खंड में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार अभिजीत चौधरी की बांग्ला फिल्म ‘धुर्वोर आश्चर्य जीवन’ को मिला। इस फिल्म को साढ़े सात लाख रुपए और रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी दी गई। सर्वश्रेष्ठ शार्ट फिल्म का पुरस्कार हिंदी फिल्म ‘गूलड़ के फूल’ को मिला। इसके निर्देशक अरुण मित्रा को पांच लाख रुपए के साथ रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी दी गई। सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार फिल्म ‘भवतोषेर कारखाना’ को दिया गया। इस डाक्यूमेंट्री के निर्देशक दीपांजन चौधरी को रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी के साथ तीन लाख रुपए भी दिए गए। ‘हीरालाल सेन स्मृति पुरस्कार’ बज्जिका भाषा की फिल्म ‘अजूर’ को दिया गया। इस बज्जिका फिल्म के निर्देशक आर्यन चंद्र प्रकाश को रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी के साथ पांच लाख रुपए भी दिए गए। बेहतरीन कन्नड़ फिल्म ‘लच्छी’ और इसके निर्देशक कृष्ण गौड़ा को दस लाख रुपए और रॉयल बंगाल टाइगर ट्राफी दी गई। निर्देशक अमृत सरकार की बांग्ला फिल्म ‘मोजाट’ और निर्देशक हरिप्रसाद की मलयाली फिल्म ‘मेलविलासम’ भी इस फिल्म समारोह में नवाजी गई।
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में जूरी थे भारतीय फिल्मकार गिरीश कासरावल्ली, एथेंस की काटिया पनटॉजी, चेकोस्लोवाकिया के मशहूर फिल्मकार मार्तिन सुलिक, अर्जेंटीना के पाब्लो सिजार और बर्लिन व रोटरडम में पुरस्कार पाने फिल्मकार ब्लॉड पेट्री।
बुल्गारिया की जिस फिल्म ‘तारिका’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला, वह वाकई बेहतरीन फिल्म थीं। इस फिल्म में तारिका नामक एक किशोरी की कथा है, जो बुल्गारिया सीमा पर सुदूर एक गांव में अपने पिता और दादी के साथ रहती हैं। उसकी मां नहीं है। वह अपनी बकरियों को पालती और उसका दूध बेचती है। इसी के सहारे उसकी और उसके परिवार की जिंदगी चलती है। इस बुल्गेरियन फिल्म में उस किशोरी के संघर्षों की कथा है। इसमें छायांकन गजब का है और पूरी फिल्म में संगीत भी कर्णप्रिय है। बच्ची और उसके पिता ने बेहतरीन अभिनय किया है। 86 मिनट की यह रंगीन बुल्गारियाई फिल्म सचमुच आकर्षक थीं।
इस अंतरराष्ट्रीय कोलकाता फिल्मोत्सव में तन्मय शेखर की फिल्म ‘नुक्कड़ नाटक’ भी सराहनीय थीं। इसे इस फिल्मोत्सव में काफी लोगों ने देखा। संजीव दे निर्देशित
‘जगन’, हीरेन बोरा की असमिया फिल्म ‘बुर्का द वेल’ और उमेश मोहन बगाडे की मराठी मूवी ‘सिनेमेन’ देखने लायक थीं। संजीव दे की फिल्म ‘जगन’ में अभिनेता सुब्रत दत्त का अभिनय वाकई यादगार था। ऐसा अभिनय हिंदी सिनेमा में कम देखने को मिलता है।
इस बार भारतीय भाषाओं की फिल्म के प्रतियोगिता खंड में कुछ दिलचस्प फिल्में शामिल थीं। इनमें उड़ीसा के प्रतिष्ठित फिल्मकार अमर्त्य भट्टाचार्य की लहरी, नवीन चंद्र गणेश की पहली फीचर फिल्म झंझारपुर और आर्यन चंद्र प्रकाश की आजूर। हालांकि इस वर्ग में कृशेन गौड़ा की कन्नड़ भाषा में बनाई फिल्म लच्छी को बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड दिया गया।
देखने लायक थी अमर्त्य भट्टाचार्य की नई फिल्म ‘लहरी’
अमर्त्य भट्टाचार्य की ओड़िया फिल्म ‘लहरी’ भी देखने लायक थीं। 121 मिनट की इस फिल्म में दो दोस्तों के संघर्षों की कथा है और बेहतरीन तरीके से इसमें शहरी पूंजीवाद के बढ़ते असर को दिखाया गया है। अमर्त्य भट्टाचार्य ने इससे पहले और भी कई फीचर और डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाई हैं और नेशनल अवॉर्ड समेत कई इंटरनेशनल अवॉर्ड जीते हैं। उनकी फिल्में दुनियाभर के 140 फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी हैं। यह अमर्त्य की आठवीं फीचर थीं। अमर्त्य भट्टाचार्य एक गंभीर और बिलकुल अलग दृष्टि और संवेदना के फिल्मकार हैं। हाल ही में बनाई उनकी फिल्म अडू गोदार (Adieu Goddard) की बहुत तारीफ हुई थी और ये पूरे देश के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी और काफी सराही गई थी।
दीपक बंद्योपाध्याय और प्रिय चट्टोपाध्याय की बांग्ला फिल्म ‘मन मताल’, अर्क मुखोपाध्याय की बांग्ला फिल्म ‘काल्पनिक’ और सौम्यदीप घोष चौधरी की बांग्ला फीचर ‘नौ मास नौ दिन एवं अंतहीन’ भी एक नए विषय को रेखांकित करती है। सौम्यदीप घोष चौधरी वाकई अच्छे फिल्मकार हैं और इन सभी का भविष्य दूरगामी हैं। सुजॉय मुखर्जी की हिंदी फिल्म ‘हुनर’ भी शानदार थीं। तीस मिनट की ‘हुनर’ ने अभी तक 39 पुरस्कार जीते हैं। वाकई सुजॉय की यह अच्छी फिल्म थीं। सुजॉय मुखर्जी अपने समय के मशहूर अभिनेता जॉय मुखर्जी के बेटे हैं।
‘झंझारपुर’ और ‘आजूर’
नवीन चंद्र गणेश की हिंदी फिल्म ‘झंझारपुर’ वाकई एक सुंदर और सराहनीय फिल्म थी। बिहार के ‘लौंडा नाच’ को केंद्र में रखकर बनाई गई यह फिल्म एक दूसरी दुनिया से हमें रूबरू कराती है। हिंदी में बनाई गई इस फिल्म में मगही भाषा के गीतों का भी इस्तेमाल किया गया है। नवीन चंद्र गणेश की यह पहली फीचर फिल्म थी। इससे पहले वे तीन डाक्यूमेंट्री बना चुके हैं। नवीन चंद्र गणेश की दृष्टि बहुत साफ है और आगे भी इनसे लंबी उम्मीद है।
बिहार के ही आर्यन चंद्र प्रकाश की बज्जिका भाषा में बनाई फिल्म ‘आजूर’ ने काफी तारीफ बटोरी। दर्शकों ने उनकी संवेदनशीलता और निर्देशकीय दृष्टि के साथ-साथ फिल्म के कल्चरल लैंडस्केप को काफी सराहा। इस फिल्म में उन्होने गांवों के गैरपेशेवर कलाकारों से अभिनय कराया है। आर्यन का काम अच्छी संभावना जगाता है उम्मीद है उनकी ये फिल्म भी आगे अच्छा प्रदर्शन करेगी।