मुग़ल ए आज़म 5: प्यार किया तो डरना क्या…
के आसिफकी बनाई फिल्म मुग़ले आज़म को रिलीज़ हुए इस साल 64 बरस पूरे हो जाएँगे। 1960 में 5 अगस्त के दिन ये रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म को आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे भव्य और सबसे संजीदगी से बनाई फिल्म मााना जाता है। दरअसल मुग़ल-ए-आज़म को भारतीय सिनेमा का महाकाव्य कहें तो ग़लत नहीं होगा… क्यों… इस वजह को और इस फिल्म को और बेहतर और गहराई से समझने के लिए हम जाने-माने समाजशास्त्री, सिनेविद् व लेखक जवरीमल्ल परखके प्रसिद्ध आलेख ‘मुगले आज़म:सत्ता विमर्श का लोकतांत्रिक संदर्भ’ को 8 अंकों में प्रस्तुत कर रहे हैं। यह आलेख उनकी प्रसिद्ध पुस्तकभारतीय सिनेमा का समाजशास्त्र में भी उपलब्ध है। 14 जून 2023को मुगले आज़म के निर्देशकके आसिफके जन्मदिन के मौके पर हुई इस शुरुआत की ये पांचवीं कड़ी है। जवरीमल्ल पारख जी साहित्य, सिनेमा और मीडिया पर आलोचनात्मक लेखन एव पटकथा के विशेषज्ञ हैं। ‘लोकप्रिय सिनेमा और सामाजिक यथार्थ’, ‘हिंदी सिनेमा का समाजशास्त्र’, ‘साझा संस्कृति, सामाजिक आतंकवाद और हिंदी सिनेमा’ समेत साहित्य और समाजशास्त्र से जुड़े कई विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित और सम्मानित हो चुकी हैं।न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशनकेटॉक सिनेमासीरीज़ के तहत आयोजित कई सत्रों में शामिल होते रहे हैं और सिनेमा के सामाजिक पहलुओं पर नई रोशनी डालते रहे हैं। सीरीज़ के रुप में पुस्तक के इस आलेख का प्रकाशन हमारीसिने बुक रिव्यू श्रृंखला की एक कड़ी है। (9 मार्च पर के आसिफ की पुण्यतिथि के दिन इस श्रृंखला की 5वीं कड़ी के ज़रिए उन्हे श्रद्धांजलि )
‘मुग़ले आज़म’ में राजा मानसिंह और दुर्जन सिंह का चरित्र भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस दंतकथा के अनुसार अकबर की पत्नी जोधाबाई मानसिंह की बहन है और दुर्जन सिंह सलीम का मित्र है। जोधाबाई का चित्रण फिल्म में राजपूत और हिंदू स्त्री की तरह किया गया है। वह हमेशा राजपूती वेशभूषा में रहती है। उसकी भाषा में भी अरबी-फारसी के शब्दों का कम इस्तेमाल होता है। वह अकबर के महल में राजपूती मर्यादा और हिंदू परंपराओं का पालन करते हुए रहती है। अकबर को यदि इस बात का गर्व है कि वह बाबर और हुमायूं के तैमूरी वंश से तालुक रखता है तो जोधाबाई को भी अपनी राजपूती शान और परंपरा का गर्व है। वह इस बात के प्रति न सिर्फ सचेत है बल्कि वह अपने बेटे का युद्ध से लौटने पर स्वागत और अपने पति को युद्ध पर जाते हुए विदा बहुत कुछ उसी राजपूती परंपरा से करती है जिसकी कहानियां चारण कवियों ने लिखी हैं। लेकिन जोधाबाई के चरित्र का निखार उसकी राजपूती परंपरा में नहीं बल्कि पति और पुत्र के प्रति अपने प्रेम और कर्तव्य के द्वंद्व में निहित है।
राजपूती मर्यादा का ज्यादा गर्व फ़िल्म में दुर्जन सिंह के माध्यम से व्यक्त हुआ है। वह सलीम से दोस्ती और अनारकली की रक्षा करते हुए अपनी राजपूती वचन और बहादुरी का हवाला देता हे। उसका गर्व इस संवाद में झलकता है, “राजपूत हारता है, उसका वचन नहीं हारता।” फ़िल्म में जिस तरह से अकबर और इन राजपूत चरित्रों को अपनी जाति और वंश के प्रति गर्व करते हुए बारबार दिखाया गया है वह एक तरह का नस्लवाद है। अभिजात होने के गर्व का सलीम और अनारकली के बीच के प्रेम से सीधी टकराहट है। फ़िल्म की कथा इसी टकराव पर टिकी है। लेकिन इसके बावजूद इस आभिजात्य के प्रति फ़िल्म बहुत आलोचनात्मक नज़र नहीं आती। यह और इस तरह के कई अंतर्विरोध इस फ़िल्म को लोकप्रियता के ढांचे से बाहर निकलने से रोकती है।
‘मुग़ले आज़म’ में अनारकली, अकबर, सलीम, जोधाबाई, दुर्जनसिंह, मानसिंह, बहार, संगतराश जैसे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को बहुत सोच विचारकर रचा गया है। अनारकली को लेकर अकबर के साथ सलीम का ही संघर्ष नहीं चलता। बहार भी सलीम को चाहती है और इस चाहना के पीछे उसका इरादा हिंदुस्तान की मलिका बनने का है। अनारकली के प्रति सलीम के झुकाव से उसके मनसूबे मिट्टी में मिल सकते हैं इसलिए वह लगातार प्रयत्न करती है कि सलीम और अनारकली जुदा हो जाए। राजमहल में चलने वाले संघर्षों की वह बहुत ही शातिर खिलाड़ी है। वह अपने दांव खामोशी और धैर्य के साथ चलती है। उसके चेहरे पर दृढ़ता और परिपक्वता झलकती है। राजमहल में उसकी हैसियत भी बहुत ऊंची नहीं है। वह अनारकली की तरह मामूली कनीज़ नहीं है। लेकिन उसका संबंध किसी शाही खानदान से है ऐसा भी प्रतीत नहीं होता। उसकी पहुंच हर कहीं और हर किसी तक है। फिर भी वह इतनी ताकतवर नहीं है कि अपने मनसूबों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर षड्यंत्र कर सके। निगार सुल्ताना ने इस भूमिका को बहुत ही परिपक्वता के साथ निभाया है।
बहार के बिल्कुल विपरीत है अनारकली। अनारकली एक मामूली कनीज़ है लेकिन इतनी सुंदर कि सलीम देखते ही उसे चाहने लगता है। पहले बुत के रूप में और बाद में असलियत में। अनारकली भी सलीम को पहली ही नज़र में चाहने लगती है। लेकिन इस चाह में एक भय छुपा है। जब उसकी छोटी बहन सुरैया उसे एहसास कराती है कि उसे साहिबे आलम से प्यार हो गया है और वह एक दिन हिंदुस्तान की मलिका बनेगी तो वह भय से सिहरते हुए कहती है, ”खुदा ऐसा ख्वाब न दिखा जिनको देखने की यह कनीज़ कभी जुर्रत नहीं कर सकती। वह हिंदुस्तान के होने वाले शहंशाह हैं“। बहन उत्तर देते हुए कहती है कि ”शहंशाह तो खुदा मियां से आते हैं लेकिन उनकी मलिकाएं तो कहीं से आ सकती हैं“। सुरैया का कहना इस अर्थ में ठीक था कि बादशाह की सभी रानियां हमेशा शाही परिवारों से ही आती रही हों यह सत्य नहीं है। लेकिन एक मामूली कनीज़ का मलिका बनाया जाना इतना आसान भी नहीं था।
अनारकली जब भी सलीम के सामने अपनी मोहब्बत का इजहार करती है तो उसमें अपनी हैसियत से पैदा हुए भय का एहसास साफ झलकता है। पहली बार जब वे शाही बाग में अकेले मिलते हैं। सलीम अनारकली से आग्रह करता है, ”अनारकली, इधर देखो। मैं तुम्हारी आंखों में अपनी मोहब्बत का इकरार देखना चाहता हूं। “वह मोमबती पर हाथ रखते हुए कहती है, ”इन्हें न देखिए शाहजादे। इनमें कनीज की सहमी हुई हसरतों के सिवा और कुछ नहीं।“ सलीम कहता है, ”भूल जाओ कि तुम कनीज़ हो और सलीम को अपनी आंखों में वह देखने दो जो तुम्हारी जुबान कहते हुए डरती है।“ अनारकली फिर विरोध करती है, ”मेरी आंखों से मेरे ख्वाब मत छीनिए।“ लेकिन इस इन्कार और इकरार के बीच ही सलीम और अनारकली का प्रेम परवान चढ़ने लगता है। दोनों चुपके-चुपके मिलते हैं। प्रेम के इस दृश्य पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध निर्देशक महेश भट्ट ने लिखा था कि ‘मुग़ले आज़म’ का वह प्रेम दृश्य अविस्मरणीय हे जब एक्सट्रीम क्लोज अप में दिलीप कुमार मधुबाला के आवेगपूर्ण चेहरे को सफेद पंख के साथ गुदगुदाता है। शायद यह भारतीय रजत पटल पर फिल्माया गया सबसे एरोटिक दृश्य है।20 प्रेम के इस दृश्य की विशेषता यह है कि इसमें भावनाओं के आवेग को आसानी से पहचाना जा सकता है लेकिन अभिव्यक्ति का संयम और संतुलन कहीं भी निर्देशक के हाथों से फिसलता हुआ नहीं लगता। बहार सलीम और अनारकली के मिलने को देख लेती है और सलीम भी यह जान जाता है। वह बहार को धमकाता भी है लेकिन इसके बावजूद बहार अकबर को उनके प्रेम की सूचना दे देती है।
अकबर सलीम और अनारकली को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाता है। अकबर के आने की घोषणा सुनकर अनारकली घबरा जाती है। वह वहां से भाग जाना चाहती है जबकि सलीम अकबर का सामना करने को तैयार है। सलीम अनारकली को रोकने की कोशिश करता है। अनारकली कहती है, ”अगर जिल्लेलाही ने मुझे यहां देख लिया तो अनारकली की कब्र आपके आगोश में होगी।“ सलीम कहता है, ”मोहब्बत अगर डरती है तो मोहब्बत नहीं एय्याशी है, गुनाह है।“ इसके बावजूद अनारकली अकबर का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती और वहां से भाग जाती है। अकबर सामने से आते हुए दिखाई देते हैं। वह उलटे पांव लौट आती है। एक तरफ सलीम है और दूसरी तरफ अकबर। वह डर के मारे सलीम के गले लिपट जाती है। सलीम और अनारकली की नज़रें अकबर से मिलती है। अनारकली की नज़र में खौफ का भाव है जबकि सलीम की नज़र में चुनौती है। अनारकली की स्थिति उस हिरणी की तरह है जो शिकार के सामने पड़ जाती है और जिसे भागने का कोई रास्ता नहीं सूझता। अनारकली भय से आक्रांत होकर बेहोश हो जाती है और सलीम से चिपकी हुई ही जमीन पर गिर जाती है। उसके हाथ में सलीम के गले में पहने हुए मोतियों का हार आ जाता है, उसके गिरने के साथ ही हार के मोती टूटकर बिखर जाते हैं। अकबर और सलीम दोनों एक दूसरे को खामोश निगाहों से देखते हैं। सलीम की नज़र में दृढ़ता है मानो कह रहा हो कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है और अकबर की नज़र में व्यंग्य का मानो कह रही हो कि शहजादे होकर एक कनीज़ के साथ। अकबर खामोशी से वहां से लौट जाता है। अपने महल में पहुंच कर वह अनार की कलियों को मसल डालता है।
इसके अगले दृश्य में अनारकली को सिपाही उसके घर से उठा ले जाते हैं और पकड़कर कैदखाने में डाल देते हैं। बड़े-बड़े पत्थरों से बनी कैदखाने की ऊंची दिवारें भयानक से भयानक मुजरिम के मन में आतंक पैदा करने के लिए काफी है। अनारकली के कोमल जिस्म को लोहे की मोटी जंजीरों में जकड़ दिया जाता है। कैदखाने में धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगता है और जंजीरों में जकड़ी अनारकली अंधेरे में डूब जाती है। फेड इन होते हुए इस दृश्य के बाद फेड आउट में सलीम चीखता हुआ अकबर के महल में जाता हुआ दिखता है। वहां उसकी टक्कर महारानी जोधाबाई से होती है। जोधाबाई अकबर के पक्ष का समर्थन करते हुए सलीम को अनारकली का विचार त्यागने के लिए कहती है। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं होता। वह एक लिखित संदेश जोधाबाई के पास छोड़ते हुए यह कहते हुए जाता है कि ”अगर अनारकली आजाद नहीं की गई तो कैदखाने की ये रात अनारकली पर नहीं अकबरे आजम की सारी जिंदगी के मंसूबे पर भारी पड़ेगी।“ अकबर जो सीढ़ियों से उतरते हुए सलीम की बातें सुन रहे हैं उसके जाते ही तेजी से नीचे आता है। जोधाबाई के हाथ से संदेश लेता है, पढ़ता है और गुस्से में उसे फाड़कर फर्श पर फेंक देता है। अगले दृश्य में अनारकली उसी अंधेरे कैदखाने में जंजीरों में कैद है। कैदखाने की स्याह होती दिवारों के बीच घिरी अनारकली जंजीरों के बावजूद हिम्मत जुटाकर खड़े होने की कोशिश करती है। वह अपने भावों को एक दुखपूर्ण ग़ज़ल में व्यक्त करती हैः ”मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोए, बड़ी चोट खाई जवानी पे रोए“। वेदना से भरी लता मंगेशकर की आवाज़ में जैसे अनारकली का पूरा दर्द इस गीत में छलक पड़ता है। सलीम से प्रेम के अंजाम की जिस आशंका से अनारकली भयभीत रहती थी वह कैदखाने की जंजीरों के रूप में सच साबित हो चुकी थी।
दूसरे दिन अनारकली को दीवाने खास में पेश किया जाता है। वह अब भी उसी तरह भारी जंजीरों में जकड़ी हुई है। उसे दो सिपाही पकड़कर लाते हैं और बादशाह के आगे छोड़ जाते हैं। अनारकली बड़ी मुश्किल से खड़ी होती है। उसका चेहरा थका हुआ और पसीने से लथपथ है। अनारकली के हिलने-डुलने से होने वाली जंजीरों की आवाज के अलावा कोई आवाज नहीं है। पार्श्र्व संगीत भी नहीं। अकबर अनारकली को गुस्से और रुआब के साथ देखते हैं। अनारकली के चेहरे पर वैसा भय अब नहीं है जो सलीम के साथ अकबर का सामना करते समय था। वह भी अकबर की नज़रों का सामना साहस से करती है।
अकबर उससे पूछते हैं, ”हमें यकीन है कि कैदखाने के खौफनाक अंधेरों ने तेरी आरजुओं में चमक बाकी न रखी होगी, जो कभी थी।“
अनारकली अकबर से नज़रें मिलाते हुए विनम्र किंतु सधी हुई जबान में जबाब देती है, ”कैदखाने के अंधेरे इस कनीज़ की आरजुओं की रोशनी से कम थी।“
अकबर को अनारकली के जबाब में चुनौती दिखाई देती है, वह और तेज़ आवाज में कहता है, ”अंधेरे और बढ़ा दिए जाएंगे।“
अनारकली उसी सख्त और सधी हुई लेकिन धीमी आवाज में जबाब देती है, ”आरजुएं और बढ़ जाएंगी।“
अकबर की आवाज़ चीख में बदलने लगती है, ”और बढ़ती हुई आरजुओं को कुचल दिया जाएगा।“
अनारकली बिना आवाज ऊंची किए पूछती है, ”और जिल्लेलाही का इंसाफ?“
अकबर लगभग चीखते हुए कहता है, ”हम कुछ सुनना नहीं चाहते। अकबर का इंसाफ उसका हुक्म है…तुझे सलीम को भूलना होगा।
”भूलना होगा?
”यकीनन…और सिर्फ इतना ही नहीं उसे ये भी यकीन दिलाना होगा कि तुझे उससे कभी मोहब्बत नहीं थी।
”जो जबान उनके सामने मोहब्बत का इकरार न कर सकी वह इन्कार कैसे करेगी।
”तुझे सलीम पर जाहिर करना होगा कि तेरी मोहब्बत झूठी थी।…एक कनीज़ ने हिंदुस्तान की मलिका बनने की आरजू की और मोहब्बत का खूबसूरत बहाना ढूंढ लिया।“
अनारकली इस आरोप से बेचैन हो उठती है क्योंकि ये सच नहीं है। यह सही है कि अनारकली की बहन यह जानकर कि साहिबे आलम उसकी बहन से प्रेम करते हैं वह अपनी बहिन के मलिका बनने का ख्वाब देखने लगती है। लेकिन अनारकली जानती है कि यह ख्वाब कभी हक़ीक़त नहीं बन सकता। वह सलीम से प्यार करती है लेकिन मलिका बनने के लिए नहीं। हां, सलीम भी यह सपना पालता है कि वह एक दिन अनारकली से शादी करेगा और उसे हिंदुस्तान की मलिका बनाएगा। यह बात वह कहता भी है। अकबर भी यही सोचता है कि अनारकली ने हिंदुस्तान की मलिका बनने के लिए ही साहिबे आलम को प्रेमपाश में बांधा है। इसलिए वह अनारकली पर मलिका बनने का आरोप लगाता है और मोहब्बत इस आरज़ू को पूरा करने का बहाना मात्र समझता है।
अकबर और अनारकली के बीच का संघर्ष दरअसल उन हजारों प्रेम कहानियों से अलग नहीं है जो लोककथाओं, लोकगीतों और लोकप्रिय फ़िल्मों में व्यक्त होती रही हैं। अकबर का तर्क उसकी वर्गीय स्थिति से उत्पन्न तर्क है। वह उन अमीर और ताकतवर वर्ग लोगों की तरह सोचता है कि उसके बेटे से प्रेम करने वाली लड़की उसकी दौलत और ताकत के लिए उससे प्रेम कर रही है। उसका सोचना इस दृष्टि से सत्य है कि राजा-महाराजाओं और नबाबों के यहां सत्ता हासिल करने के लिए तरह-तरह की साजिशें होती रहती थीं। इतिहास और साहित्य इस तरह की कहानियों से भरा पड़ा है। रामायण और महाभारत की कहानियां भी इससे अलग नहीं है। टेलीविजन पर सास-बहू मार्का धारावाहिक भी अमीरों की धन और सत्ता संबंधी हवस की ही कहानियां हैं।
”ये सच नहीं है।…खुदा गवाह है ये सच नहीं है।“ वह बादशाह के पैर पकड़ कर कहती है, ”ये सच नहीं है।“
अकबर पांव छुड़ाते हुए कहता है, ”लेकिन तुझे ये साबित करना होगा कि ये ही सच है।“
वह ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहती है, “परवरदिगार, मुझे ये हिम्मत अता फरमा कि मैं साहिबे आलम से बेवफाई कर सकूं।“
वह अकबर के सामने झुकते हुए कहती है, ”कनीज़ जिल्लेलाही का हुक्म बजाने की कोशिश करेगी।“
लेकिन अकबर वहां से जाते हुए बुलंद आवाज में दोहराता है, ”कोशिश नहीं तामील होगी।“
बादशाह का आदेश ही उसका न्याय है। यही तो संगतराश ने अपने चित्र में दिखाया था। कनीज़ के मामले में भी इंसाफ का असली चेहरा जैसे सामने आ जाता है। अनारकली को आज़ाद कर दिया जाता है। वह सलीम से पहले की तरह मिलती है और प्रेम के प्रतीक के रूप में गुलाब का फूल पेश करती है। सलीम यही समझता है कि अकबर ने सलीम के प्रेम को स्वीकार कर लिया है और इसी वजह से उसे आज़ाद किया है। लेकिन अनारकली की बेचैनी उस गीत में व्यक्त होती है जो सलीम से मिलने के वक्त वह गाती हैः ”हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती, कहानी हमारी हकीकत न होती।“21 बहार सलीम को बताती है कि अनारकली ने ये आज़ादी खरीदी हैः
”आपकी अनारकली की नाजुक कलाइयां कैदखाने की भारी जंजीरों का बोझ नहीं उठा सकी और बदले में सोने के कंगन ले लिए।“
सलीम यकीन नहीं कर पाता। वह पूछता है, ”इसका सबूत?“
बहार बताती है, ”आज रात नवरोज के जलसे में अनारकली का नाच होगा।“
सलीम इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता। वह अनारकली के पास जाता है और उसे भली-बुरी सुनाता है और थप्पड़ मार कर चला आता है। सलीम के इस व्यवहार का अनारकली पर गहरा असर होता है। वह अकबर को दिए गए वचन को तोड़ देती है और भरे दरबार में नाचते हुए वह सलीम के प्रति अपने प्रेम का ही इजहार नहीं करती बल्कि बादशाह को चुनौती देती है, ”जब प्यार किया तो डरना क्या“। ”मोहब्बत जिंदाबाद“ गीत की तरह इस गीत में भी सीधी भाषा में अनारकली अपनी बात कहती है। कत्थक नृत्य करते हुए वह अपने प्यार को व्यक्त करती हैः दिल की बात को अब दिल में नहीं छुपाया जा सकता चाहे उसके बदले में जमाना उसकी जान ही क्यों न ले ले। नृत्य करते हुए वह छुरा निकालती है और अपने सीने पर रख लेती है। प्यार ही जीवन है और प्यार ही मृत्यु है। इसके अतिरिक्त जीवन का क्या अर्थ। वह कटार को बादशाह को समर्पित कर देती है। जाहिर है कि वह अब मौत से भी नहीं डरती।
गीत के अंतिम अंतरे में वह कहती है कि प्यार को छुपाया नहीं जा सकता वह तो चारों ओर अपने को व्यक्त करता है। फ़िल्म में इसके साथ ही शीश महल के प्रत्येक शीशे में अनारकली और सलीम का प्रतिबिंब दिखाई देने लगता है। गीत की प्रतिध्वनि भी शीशमहल से टकराकर गूंजने लगती है। जो प्यार ईश्वर से नहीं छुपाया जा सकता वह ईश्वर के बंदों से छुपाने का क्या अर्थ। अकबर भले ही बादशाह हो लेकिन वह भी ईश्वर की संतान ही है ईश्वर नहीं। इस गीत के दौरान अनारकली के चेहरे पर संकल्प और साहस की जो चमक दिखाई देती है, उसमें उस खौफ का नामोनिशां नहीं होता जब उसने पहली बार अकबर का आमना-सामना किया था। अकबर अनारकली का दुस्साहस और शीशों में प्रतिबिंब देखकर क्रोधित हो जाता है। गीत के प्रत्येक बोल के साथ उसका क्रोध बढ़ता जाता है। श्वेत-श्याम में बनी इस फिल्म का यह पूरा गीत मूल फिल्म में भी रंगीन फिल्माया गया है। क्लोज अप में अकबर के क्रोध का बढ़ना गीत के प्रभाव को और बढ़ा देता है। गीत के अंतिम अंतरे के साथ अकबर अपने सिंहासन से उठ खड़ा होता है। शीशे के एक स्तंभ को हाथ से झटककर दूर फेंक देता है। शीशों के टूटने की आवाज के साथ पूरे दरबार में खामोशी छा जाती है। वह अनारकली को संबोधित करते हुए कहता है, ”ये बेखौफ मोहब्बत, ये रक्स, ये दिलचस्प अंदाजे बयां…यकीनन हमारे इनाम के मुस्तहक हैं।“ अनारकली जवाब देती है, ”जिल्लेलाही की फराख दिली से कनीज़ को यही उम्मीद थी।“ अकबर क्रोध से दारोगा को आवाज लगाता है और कहता है, ”इस बेबाक लौंडी को ले जाओ और कैदखाने के अंधेरे में जब्त कर लो।“ सिपाही आकर उसे पकड़ लेते हैं। वह हाथ छुड़ा लेती है और खुद ही उनके साथ निर्भय होकर चल पड़ती है। फिर कुछ कदम चलकर वापस मुड़ती है और बादशाह को तीन बार झुककर पूरे अदब के साथ सलाम करती है और सिपाहियों के साथ आगे बढ़ जाती है। पृष्ठभूमि में ”जब प्यार किया तो डरना क्या“ गीत गूंजता है। अनारकली एकबार फिर कैदखाने में डाल दी जाती है।
‘मुग़ले आज़म’ में महत्त्वपूर्ण अकबर और सलीम के बीच का संघर्ष नहीं है। इतिहास में सत्ता के लिए बाप-बेटों और भाइयों के बीच संघर्ष आम बात है। यहां महत्त्वपूर्ण है एक कनीज़ का अकबर जैसे शक्तिशाली और महान बादशाह को चुनौती देना। अपने संघर्ष में वह अकेली है। सलीम की अपने पिता से लड़ाई उसकी लड़ाई से बहुत अलग है। अनारकली को आसानी से घर से उठाया जा सकता है। कैदखाने की अंधेरी कोठरी में बंद किया जा सकता है, जंजीरों से जकड़ा जा सकता है और दीवारों में चुनवाया जा सकता है। उसको दी जाने वाली सजाओं से बादशाह की न्याय व्यवस्था पर कोई आंच भी नहीं आती। इंसाफ के जिस तराजू को बादशाह अकबर की न्याय व्यवस्था का प्रतीक बताया गया है, वह न्याय व्यवस्था एक मामूली कनीज़ को न्याय देने में असमर्थ है।
सिने बुक रिव्यू श्रृंखला के तहत‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ पर आप सिनेमा से जुड़ी नई पुस्तकों की( पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों की भी) नियमित रुप से जानकारी पा सकेंगे और उनकी समीक्षा और उनके अंश भी पढ़ सकेंगे। इसके अलावा हम उन पुस्तकों पर अपने यूट्यूब प्लैटफॉर्म पर भी चर्चा का आयोजन करेंगे। सिने बुक रिव्यू के नाम से शुरु इस पहल के लिए हम रचनाकारों, समीक्षकों और प्रकाशकों के सहयोग के आकांक्षी हैं। अधिक जानकारी के लिए ई मेल पर संपर्क करें ndff.india@gmail.com
‘मुग़ले आज़म’ में न्याय का प्रतीक तराजू साझा संस्कृति के प्रतीकों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। फ़िल्म में इस तराजू को किले की खुली जगह पर रखा बताया जाता है और उसका आकार इतना बड़ा होता है कि अकबर भी उसके सामने बौने नज़र आते हैं। इस तरह फ़िल्मकार शायद यह बताना चाहता है कि इंसाफ का यह तराजू किसी राजा की हैसियत से बहुत बड़ा है। अकबर की नज़र में इंसाफ की कीमत आदमी की निजी सत्ता से कहीं ज्यादा है। यह तराजू पहली बार तब सामने आता है जब एक कनीज़ आकर उन्हें यह खुशखबरी सुनाती है कि जोधाबाई ने एक बेटे को जन्म दिया है। अकबर उस समय उस कनीज़ को अपने हाथ से अंगूठी उतारकर इनाम के तौर पर देते हैं और उस तराजू को छूकर वचन देते हैं कि ”इंसाफ के इस मुकद्दस पवित्र तराजू की कसम जिंदगी में एक बार जो भी मांगोगी अता किया जाएगा।“ यह कनीज़ उस अनारकली की मां है जो बाद में इस पूरी दंतकथा की नायिका बनती है। यही तराजू दूसरी बार तब आता है जब किशोरवय सलीम इसके एक पलड़े पर बैठा शराब पी रहा है और रंगरेलियों में मस्त है। इस कारण इंसाफ का प्रतीक यह तराजू हिचकोले खाने लगता है। उसकी इस हरकत को देखकर राजा मानसिंह उसे डांटते हुए कहता है, ”ये तराजू आपके खेलने की चीज़ नहीं है।“ जाहिर है कि इस तरह सलीम की हरकतों में मुग़लिया परंपरा को धक्का पहुंचने का संकेत दिया गया है।
फ़िल्म के अंतिम हिस्से में यह तराजू एक बार फिर आता है जब अनारकली की मां इंसाफ का हवाला देते हुए वह अंगूठी दिखाती है जो बरसों पहले सलीम के जन्मदिन पर अकबर ने उसे दी थी और एक बार कुछ भी मांगने और उसे पूरा करने का वचन दिया था। अकबर अंगूठी को पहचानने से इंकार कर देता है और पूरे बल से उसे दूर फेंक देता है। अंगूठी जाकर तराजू के एक पलड़े पर गिर जाती है और इस वजह से वह हिचकोले खाने लगता है। अकबर को एहसास होता है कि सत्ता के मद में वह इंसाफ को भूल गया है। इसके बाद के दृश्य में जो फ़िल्म का अंतिम दृश्य भी है, हम देखते हैं कि एक सुरंग में अकबर अनारकली की मां को हाथ पकड़कर ले जा रहा है और वहां अनारकली को जिंदा उसकी मां को सौंप देता है। दुनिया की नज़रों में अनारकली को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया है लेकिन असल में उसे सुरंग के रास्ते अपने परिवार के साथ मुग़ल सल्तनत के बाहर भिजवा दिया जाता है। इस प्रकार फ़िल्म अनारकली से संबंधित एक लोकप्रिय दंतकथा में भी अपने ढंग से परिवर्तन कर देती है।
1953 में बनी ‘अनारकली’ में अनारकली दीवार में चुन दी जाती है। हालांकि उस फ़िल्म में भी अकबर अनारकली की सजा अंतिम क्षणों में माफ कर देता है। लेकिन यह खबर अनारकली तक समय पर नहीं पहुंच पाती। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनारकली की प्रेमकथा पर बनने वाली फ़िल्में अकबर के अत्याचार को किसी तरह मिटाने की कोशिश करती प्रतीत होती हैं। इस परिवर्तन का कारण यही है कि अकबर का अत्याचार अकबर के ऐतिहासिक चरित्र से मेल नहीं खाता। संभवतः फ़िल्मकारों को यह लगता होगा कि दर्शक इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि अकबर जैसा महान बादशाह इतना निरंकुश और अन्यायी हो सकता है। या यह भी संभव है कि फ़िल्मकार स्वयं इस बात में यकीन न करते हों। जो भी हो लेकिन इन पर बनने वाली फ़िल्में दंतकथा के साथ जुड़े घटनाक्रम को अपने-अपने ढंग से व्याख्यायित करने का प्रयत्न करती रही हैं। ‘मुग़ले आज़म’ में हालांकि अनारकली को जिंदा छोड़ दिया जाता है लेकिन दीवार में चुने जाने की घटना के बाद उसे पत्थर के बुत की तरह ही दिखाया जाता है। वह भावहीन चेहरा बनाए, पूरी तरह से मौन बने एक यंत्रमानव की तरह व्यवहार करती है। फ़िल्मकार संभवतः यह बताना चाहता है कि इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ता कि अनारकली जिंदा रही या मर गई। महत्त्व यह है कि यह प्रेमकथा इस तरह अत्यंत दुखद रूप में खत्म हो गई।
Contd…