अरब डायरी 7: तीसरे रेड सी फेस्टिवल में चमकीं पाकिस्तानी फिल्में
सऊदी अरब के जेद्दा में 30 नवंबर से 9दिसंबर तक तीसरे ‘रेड सी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में पाकिस्तान की फिल्म ‘इन फ्लेम्स’ को बेस्ट फीचर फिल्म के यूसर अवॉर्ड के लिए चुना गया। इसके अलावा पाकिस्तान की एक सोशल मीडिया सेलेब्रिटी कंदील बलोच की ऑनर किलिंग पर बनी फिल्म ‘वखरी’ भी काफी सराही गई। ईजिप्ट के एल गुना फेस्टिवल की तरह जेद्दा में होने वाला रेड सी फिल्म फेस्टिवल भी अरब वर्ल्ड की बेहतरीन फिल्मों को देखने-दिखाने का एक बड़ा मंच बन चुका है। इस फेस्टिवल के ज़रिए हर साल चौंकाने वाली और बेहद संजीदा, अनसुने, अनजाने विषयों पर बनी नई-नई फिल्में सामने आ रही हैं। फेस्टिवल में शामिल हुई पाकिस्तानी फिल्मों पर एक विशेष आलेख भेजा है जाने माने फिल्म समीक्षक और लेखक अजित रायने, जो सऊदी अरब के इस फेस्टिवल में विशेष आमंत्रण पर शामिल होने पहुंचे थे।
सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में दुनिया भर के देशों की फिल्मों को पछाड़ते हुए पाकिस्तान के ज़रार कहन की फिल्म ‘इन फ्लेम्स’ ने बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड जीता। गोल्डन यूसर फॉर बेस्ट फीचर फिल्म का यह अवॉर्ड फेस्टिवल का सबसे बड़ा अवार्ड है जिसमें एक लाख अमेरिकी डालर का कैश प्राइज़ भी शामिल हैं। कंदील बलोच (1 मार्च 1990-15 जुलाई 2016) पाकिस्तान की पहली सोशल मीडिया सेलेब्रिटी थी जिसका असली नाम फौजिया अज़ीम था। 15 जुलाई 2016 की रात जब वह मुल्तान में अपने पिता के घर सोई हुई थी तो रात के साढ़े ग्यारह बजे उसके दो भाइयों- असलम और वसीम ने गला दबाकर उसकी हत्या कर दी थी। उन्होंने बाद में स्वीकार किया कि उन्होंने खानदान की इज्ज़त बचाने के लिए अपनी बहन को मार डाला।
रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल जेद्दा में इन दोनों पाकिस्तानी फिल्मों की खूब चर्चा रही। ये दोनों फिल्में पितृसत्तात्मक पाकिस्तानी समाज में औरतों की आज़ादी और संघर्ष का मुद्दा उजागर करती है। इन दोनों फिल्मों ने दुनिया भर का ध्यान सार्थक पाकिस्तानी सिनेमा की ओर खींचा है। हालांकि पिछले साल सैम सादिक की पाकिस्तानी फिल्म ‘जॉयलैंड’ (2022) को 75 वें कान फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड मिला था और उसे ऑस्कर अवॉर्ड में पाकिस्तान से आधिकारिक प्रविष्टि के बतौर भेजा गया था। धार्मिक कट्टरपंथी समूहों के दबाव में इस फिल्म को पाकिस्तान के कई राज्यों में प्रतिबंधित कर दिया गया था। पाकिस्तान में कट्टरपंथी समूहों द्वारा इस फिल्म के विरोध की मुख्य वजह यह थी कि इसमें एक शादीशुदा युवक और एक ट्रांसजेंडर की प्रेम कहानी दिखाई गई थी। हालांकि इस फिल्म का मुख्य विषय वही पितृसत्तात्मक समाज था।
ज़रार कहन की फिल्म ‘इन फ्लेम्स’ तो इस बार 96 वें ऑस्कर अवॉर्ड में पाकिस्तान से बेस्ट इंटरनेशनल फिल्म की कैटेगरी में आधिकारिक प्रविष्टि हैं। इसी साल 76 वें कान फिल्म समारोह के डायरेक्टर फोर्टनाइट में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था। बाद में टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस फिल्म को बड़ी शोहरत मिली।
ज़रार कहन की फिल्म ‘इन फ्लेम्स’ कराची की साधारण बस्ती के छोटे से फ्लैट में रहने वाली मरियम (रमेशा नवल) और उसकी विधवा मां फारिहा (बख्तावर मज़हर) की कहानी है। मरियम का एक प्रेमी हैं असद (उमर जावेद) जो उसके साथ ही मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। एक दिन समुद्र किनारे से मोटरसाइकिल पर लौटते हुए वे भयानक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं जिसमें असद की मौत हो जाती है और मरियम बच जाती है और एक ऑटोरिक्शा वाले की मदद से किसी तरह घर पहुंचती है। इस सदमे से उसे बुरे-बुरे सपने आते हैं हालांकि वह मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। मरियम अपनी विधवा मां फरिहा और छोटे भाई के साथ जिस मामूली फ्लैट में रहती है वह उसके नाना के नाम है जो एक ईमानदार पुलिस अफसर थे। वे अपने बच्चों के लिए केवल एक फ्लैट छोड़कर मर गए वह भी कुछ कर्ज़े के साथ। नाना के मरने के बाद मरियम का एक अंकल उस फ्लैट पर कब्ज़ा करने की साज़िश रचता है और उसकी मां को बहला फुसलाकर कागजात पर दस्तखत करवा लेता है। मां-बेटी को उसकी साज़िश का पता तब चलता है जब उन्हें फ्लैट खाली करने का नोटिस आता है।
पाकिस्तान और कई दूसरे मुस्लिम देशों में पैतृक सम्पत्ति में औरतों के हक दिलाने वाले कानून बहुत नाकाफ़ी है। केस दर्ज भी हो जाए तो कोर्ट में मामला सालों खिंचता है। मां के पास केस लड़ने के लिए पैसा नहीं है। फरिहा किसी तरह फ्लैट बचाने की लड़ाई लड़ रही है। उसके पास वकील को अपनी देह और रूप का प्रलोभन देकर केस लड़ने के सिवा कोई चारा नहीं है। एक दृश्य में फारिहा साजिश करनेवाले शख्स को दबंगई से बताती है कि वह मरते दम तक फ्लैट खाली नहीं करेगी, कि उसने एक वकील कर लिया है और वह केस लड़ेगी। उधर एक दिन वह ऑटोवाला मरियम के कहने पर उसे समुद्र किनारे उसी कुटिया में ले जाता है जहां उसके स्वर्गीय प्रेमी की यादें बसी हैं। ऑटोवाले की नीयत खराब हो जाती है और वह मरियम को अबला समझ उससे बलात्कार की कोशिश करता है। तभी वहां उसे ढूंढती हुई उसकी मां फरिहा पहुंच जाती है। मरियम को बचाने के दौरान ऑटोवाले की हत्या हो जाती है। मरियम के सामने उस कुटिया में आग लगाने के सिवा कोई चारा नहीं है। वह कुटिया धू-धू कर जल रही है और दोनों औरतें राहत की सांस लेते हुए वापस लौट रहीं हैं।
ईरम परवीन बिलाल की फिल्म ‘वखरी’ में एक स्कूल टीचर नूर मलिक (फरयाल महमूद) लाहौर में अपने समाज की लड़कियों का एक स्कूल खोलने के लिए वखरी नाम से अपना रूप बदल कर सोशल मीडिया पर एक अपील जारी करती है और उसका वीडियो वायरल हो जाता है। उसे भारी मात्रा में चंदा मिलना शुरू हो जाता है। वखरी का पति आठ साल पहले मर चुका है। उसका दस साल का एक बेटा है जिसकी परवरिश के हक के लिए वह ससुराल वालों से लड़ाई लड़ रही है। उसका एकमात्र अंतरंग दोस्त एक ट्रांसजेंडर गूची (गुलशन माजिद) है जो लाहौर में अंडरग्राउंड डिस्को चलाता है। वखरी और गूची डिस्को में उत्तेजक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने लगते है। उसकी शोहरत से पाकिस्तान में बहस छिड़ जाती है और उसके समर्थन और विरोध में प्रदर्शन होने लगते हैं। एक टेलीविजन रियलिटी शो अचानक होस्ट वखरी की असली पहचान उजागर कर देती हैं। वखरी को बीच में ही शो छोड़कर भागना पड़ता है। भीड़ उनका पीछा करती है। इसी अफरातफरी में कोई वखरी पर गोली चला देता है। फिल्म हालांकि सुखांत है और वखरी बच जाती है।
अंतिम दृश्य में हम उसे अपने पति की कब्र पर एकालाप करते हुए देखते हैं।
ईरम परवीन बिलाल का कहना है कि वे फिल्म को दुखांत नहीं करना चाहती थीं। इससे दुनिया भर में अपने अधिकारों के लिए लड़ रही औरतें हतोत्साहित होंगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस फिल्म के बारे में उन्होंने तब से सोचना शुरू किया जब पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को एक सभा में बम ब्लास्ट करके मार दिया गया था। यह बात जरूर है कि कंदील बलोच की हत्या के बाद उन्होंने फिल्म बनाने का निर्णय पक्का कर लिया। वे कहती हैं कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ जो भी औरत खड़ी होती है, वह मार डाली जाती है। उन्होंने इस फिल्म को पाकिस्तानी और दुनिया भर की औरतों के नाम एक प्रेम पत्र कहा है। यह फिल्म अगले साल 5 जनवरी 2024 को पाकिस्तान के सिनेमाघरों में कुछ कट के साथ रिलीज होगी।