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संतोष, ऑल वी इमैजिन…, ऑस्कर और गोल्डन ग्लोब के बरक्स भारतीय सिनेमा

संध्या सूरी की फिल्म संतोष की न सिर्फ भाषा हिंदी है, बल्कि पूरी तरह आज के भारतीय समाज और उसके समसामयिक विमर्श पर आधारित है। और इन सबके बावजूद उसे सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश सिनेमा के तौर पर ऑस्कर अवॉर्ड के लिए प्रविष्टि बनने की राह में कोई अड़चन नहीं आई। शायद ऐसा इसलिए कि वहां पैमाना बेहतरीन सिनेमा चुनना था न कि देश का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व करना। ब्रिटेन ने इससे पहले ऑस्कर के लिए जिन फिल्मों को आधिकारिक प्रविष्टि बनाया है, उनमें फ़ारसी, उर्दू, पश्तो, जर्मन, रूसी, पोलिश, फ्रेंच, स्वाहिली, तुर्की जैसी भाषाओं की फिल्में हैं, क्योंकि तकनीकी रुप से इस कैटेगरी के लिए फिल्म का गैरअंग्रेजी भाषा की होना ज़रुरी है।

‘आल वी इमैजिन ऐज लाइट’: वर्ल्ड सिनेमा में भारत के लिए उम्मीद की रोशनी

पायल कपाड़िया जब भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में पढ़ती थी तो 2017 में उनकी शार्ट फिल्म ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ अकेली भारतीय फिल्म थी जिसे  70 वें कान फिल्म समारोह के सिनेफोंडेशन खंड में चुना गया था। इसके बाद 2021 में उनकी डाक्यूमेंट्री ‘अ नाइट आफ नोइंग नथिंग’ को कान फिल्म समारोह के’ डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुना गया था और उसे बेस्ट डाक्यूमेंट्री का गोल्डन आई अवार्ड भी मिला था।  लेकिन इस साल  77 वें कान फिल्म समारोह में पायल कपाड़िया ने इतिहास रच दिया…

पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’

‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ एक कलात्मक फिल्म है जो दर्शकों का मनोरंजन करती है। उनके विचारों को छूती है। उन्हें समृद्ध करती है। यह आनेवाले फिल्मकारों के लिए नये प्रतिमान गढ़ती है।

कान 2024 (5): पायल कपाड़िया की ‘आल वी इमैजिन ऐज़ लाइट’ का शानदार प्रीमियर

कान फिल्म फेस्टिवल के 77 सालों के इतिहास में तीस साल बाद कोई भारतीय फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई है। वह फिल्म है पायल कपाड़िया की मलयालम हिंदी फिल्म ‘आल वी इमैजिन ऐज लाइट’।  इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ‘स्वाहम’ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी।