मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ वाया गौरी
हिंदी सिनेमा में रियलिज़्म की नींव भले ही ‘नीचा नगर’ के ज़रिए चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1946 में ही रख दी थी, मगर समांतर, समानांतर, कला फिल्मों या सार्थक फिल्मों के...
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हिंदी सिनेमा में रियलिज़्म की नींव भले ही ‘नीचा नगर’ के ज़रिए चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1946 में ही रख दी थी, मगर समांतर, समानांतर, कला फिल्मों या सार्थक फिल्मों के...
मृणाल सेन स्व-शिक्षित तथा स्व-प्रशिक्षित फ़िल्म निर्देशक थे। अपनी फ़िल्म के डॉयलॉग लिखते, एडिटिंग में प्रयोग करते थे। उनका जीवन दर्शन था, ‘पृथ्वी टूट रही है, जल रही है, छिन्न-भिन्न हो रही है। तब भी मनुष्य बचा रहता है, ममत्व, प्यार और संवेदना के कारण।’
NDFF organized screening of Mrinal Sen’s film Bhuvan Shome, that paved the way for parallel cinema in Hindi film industry.