टॉम क्रूज़ की ‘मिशन इंपॉसिबल: द फाइनल रेकनिंग’ यह फिल्म सच्चे अर्थों में एक ग्लोबल और यूनिवर्सल फिल्म है जो अपनी पटकथा में अमेरिका के साथ रुस, भारत, पाकिस्तान, इजरायल, ब्रिटेन, उत्तर कोरिया, जापान, दक्षिण अफ्रीका आदि कई देशों को शामिल करती हैं।
जब से रुस ने यूक्रेन पर हमला किया है तब से कान फिल्म फेस्टिवल एकतरफा यूक्रेन का समर्थन कर रहा है और इसीलिए यहां रुसी फिल्में और फिल्मकार लगभग प्रतिबंधित है। इस बार सर्गेई लोज़नित्सा की यह फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई है। यह फिल्म एक राजनैतिक थ्रिलर है जो हमें 1937-38 के रुस में स्तालिन युग के उस खौफनाक दौर में ले जाती है जब झूठे आरोप लगाकर और महान सोवियत क्रांति का गद्दार होने के संदेह में करीब दस लाख निर्दोष नागरिकों को यातना देकर मार डाला गया था।
हॉलीवुड स्टार लियोनार्डो डिकैप्रियो ने रॉबर्ट डी नीरो के सम्मान में कहा कि वे दुनिया भर के अभिनेताओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। उन्होंने सिनेमा में अभिनय की परिभाषा बदल दी है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के युवा अभिनेताओं के लिए डिनीरो का काम देखना ही सबसे बड़ी ट्रेनिंग है कि कैसे किसी चरित्र का अभिनय करते हुए शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन संभव होता है।
पायल कपाड़िया जब भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में पढ़ती थी तो 2017 में उनकी शार्ट फिल्म ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ अकेली भारतीय फिल्म थी जिसे 70 वें कान फिल्म समारोह के सिनेफोंडेशन खंड में चुना गया था। इसके बाद 2021 में उनकी डाक्यूमेंट्री ‘अ नाइट आफ नोइंग नथिंग’ को कान फिल्म समारोह के’ डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में चुना गया था और उसे बेस्ट डाक्यूमेंट्री का गोल्डन आई अवार्ड भी मिला था। लेकिन इस साल 77 वें कान फिल्म समारोह में पायल कपाड़िया ने इतिहास रच दिया…
संतोष शिवन ने इस अवसर पर आभार प्रकट करते हुए कहा कि सिनेमैटोग्राफी एक वैश्विक कला है इसलिए यह यूनिवर्सल है।जितनी आसानी से मैं तमिल और मलयालम सिनेमा में काम करता हूं उतनी ही सुविधा से हिंदी सिनेमा, हॉलीवुड और विश्व सिनेमा में काम करता हूं। उन्होंने कहा कि एक बार जापान के सिनेमैटोग्राफर एसोसिएशन के आमंत्रण पर मैं उनके साथ पचास दिन रहा। मैंने देखा कि वे मेरी फिल्म ‘दिल से’ के मशहूर गीत ‘छैंया छैंया’ गा रहे थे।
कान फिल्म फेस्टिवल के 77 सालों के इतिहास में तीस साल बाद कोई भारतीय फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई है। वह फिल्म है पायल कपाड़िया की मलयालम हिंदी फिल्म ‘आल वी इमैजिन ऐज लाइट’। इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ‘स्वाहम’ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी।
ऊपर से लग सकता है कि यह फिल्म मुस्लिम समाज पर सीधे सीधे आरोप लगा रही है कि देश की आबादी बढ़ाने में केवल वहीं जिम्मेदार है। लेकिन आगे चलकर इस मुद्दे की पृष्ठभूमि में बिना किसी समुदाय की भावना को आहत किए कई मार्मिक कहानियां सामने आती हैं। बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए निर्देशक कमल चंद्रा ने साफगोई से अपनी बात कहने के लिए इमोशनल मेलोड्रामा का प्रयोग किया है।
फ्रांस में होने वाला 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। सीधे कान से पहली रिपोर्ट…
कौथर बेन हनिया ने ‘ फोर डॉटर्स’ में एक नये तरह का सिनेमा रचा है। उन्होंने वास्तविक चरित्रों के साथ अभिनेताओं से काम कराया है। हम देखते हैं कि ट्यूनीशिया का समाज इतना आधुनिक और खुले विचारों वाला है। ओल्फा की चारों बेटियों की दिनचर्या में वास्तविक सुंदरता और आजादी है। इस्लामी रैडिकलाइजेशन के बाद सबकुछ बदल जाता है।