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Alok Nandan

गुरुदत्त के बिना वर्ल्ड सिनेमा की बात करना बेमानी है

फ्रेंच न्यू वेव के संचालकों की तरह ही गुरुदत्त ने भी सेकेंड वर्ल्ड वॉर के प्रभाव को करीब से देखा था। अलमोड़ा का उदय शंकर इंडियन कल्चरल सेंटर 1944 में गुरुदत्त के सामने ही सेकेंड वर्ल्ड वॉर के चलते बंद हुआ था। गुरुदत्त यहां पर 1941 से स्कॉलरशिप पर एक छात्र के रूप में रहे थे। बाद में मुंबई में बेरोजगारी के दौरान उन्होंने आत्मकथात्मक फिल्म प्यासा लिखी। इस फिल्म का वास्तविक नाम कशमकश था।

साहब, बीबी और गुलाम का ‘एंड’ वाया के आसिफ़

साहब बीबी और गुलाम सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी थी और उधर गुरुदत्त ने फिल्म का अंत बदलने के लिए दोबारा शूटिंग की तैयारी शुरु कर दी थी…