अपने बूते खड़ा होना सिखाती ‘लव ऑल’
हिंदी सिनेमा में बैडमिंटन को आधार बना ‘साइना’ नाम से बायोपिक भी बन चुकी है। लेकिन वह फ़िल्म कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई थी। परन्तु ‘लव ऑल’ उसी कमी को पूरा करती है और एक देखने लायक फिल्म बन जाती है।
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हिंदी सिनेमा में बैडमिंटन को आधार बना ‘साइना’ नाम से बायोपिक भी बन चुकी है। लेकिन वह फ़िल्म कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई थी। परन्तु ‘लव ऑल’ उसी कमी को पूरा करती है और एक देखने लायक फिल्म बन जाती है।
फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ एक ऐसे ही सवर्ण बिहारी युवक अभय शुक्ला की कहानी है जिसके पिता गांव में किसानी करते हैं और मां दूसरों के घरों में काम करती है।
“हम सब का अंत है मगर जीवन का अंत नही है”। जीवन चला चलता है। महेश भट्ट की 1984 में बनाई फिल्म सारांश की साहित्यिक समीक्षा।