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मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ क्यों मानी जाती है खास?

मनुष्य का जीवन एकरेखीय नहीं होता। अलग-अलग जगहों में वह अलग-अलग भूमिकाओं में होता है। वह कहीं अफसर हो सकता है तो कहीं पिता, प्रेमी, पुत्र या किसी का दोस्त भी हो सकता है। हम उससे हर जगह एक जैसे व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते। व्यक्ति को इन सभी भूमिकाओं को जीना होता है। यही जीवन का सौंदर्य है।

एक दक्ष अभिनेत्री, जिनका नाम था श्रीला मजुमदार

श्रीला मजुमदार असल में निर्देशक मृणाल सेन की खोज थीं। वह कलकत्ता के बंगबासी कॉलेज से अभी ग्रेजुएट होकर निकली ही थीं और बांग्ला नाटक के रिहर्सल वगैरह में हिस्सा ले रही थी तभी निर्देशक मृणाल सेन की नज़र एक रिहर्सल के दौरान श्रीला मजुमदार पर पड़ी ‌और सांवली रंग की श्रीला को मृणाल सेन ने अपनी अगली फिल्म के लिए चुन लिया।

मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ वाया गौरी

हिंदी सिनेमा में रियलिज़्म की नींव भले ही ‘नीचा नगर’ के ज़रिए चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1946 में ही रख दी थी, मगर समांतर, समानांतर, कला फिल्मों या सार्थक फिल्मों के...

मृणाल सेन: कम्फ़र्ट ज़ोन लाँघने वाले फ़िल्मकार

मृणाल सेन स्व-शिक्षित तथा स्व-प्रशिक्षित फ़िल्म निर्देशक थे। अपनी फ़िल्म के डॉयलॉग लिखते, एडिटिंग में प्रयोग करते थे। उनका जीवन दर्शन था, ‘पृथ्वी टूट रही है, जल रही है, छिन्न-भिन्न हो रही है। तब भी मनुष्य बचा रहता है, ममत्व, प्यार और संवेदना के कारण।’

Remembering Mrinal Sen

NDFF organized screening of Mrinal Sen’s film Bhuvan Shome, that paved the way for parallel cinema in Hindi film industry.