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मालेगांव के स्पूफ सिनेमा की चर्चा आज भी दुनिया भर में होती है। इसी फिल्म में एक किरदार थे नासिर शेख। रीमा कागती ने ‘मालेगांव का सुपरमैन’ डॉक्यूमेंट्री के आधार पर उसके एक प्रमुख किरदार नासिर शेख की हिंदी में बायोपिक बनाई है- ‘सुपर ब्वायज आफ मालेगांव’। फरहान अख्तर, जोया अख्तर और ऋतेष सिधवानी के साथ रीमा कागती भी फिल्म की एक प्रोड्यूसर है। यह फिल्म टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में शोहरत बटोरने के बाद सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई और काफी सराही गई।
जब अनुराग बसु ने ‘बर्फी’ की कहानी सुनाई तो पहले तो मुझे लगा कि यह रोल नहीं कर पाऊंगी, पर लहरों के खिलाफ जाना मेरी आदत बन चुकी थी। उन दिनों रणबीर कपूर न्यूयॉर्क में ‘अनजाना-अनजानी’ की शूटिंग कर रहे थे। मैं एक इवेंट में जाने की जल्दी में थी। अनुराग बसु ने कहा कि ठीक है, वे दूसरी फिल्म के लिए मुझसे बाद में मिलेंगे। मैंने उनसे पांच दिन का समय मांगा।
रणबीर कपूर ने अपने पिता ऋषि कपूर को याद करते हुए कहा कि वे हमेशा अपने कामों में व्यस्त रहते थे पर एक बार मुझे उनके साथ चार महीने रहने का मौका मिला। हम एक ही कमरे में सोते थे। वे थोड़े गरम मिज़ाज (शार्ट टेंपर) के थे। मैं उन्हें असिस्ट कर रहा था। उस दौरान मैंने इतना कुछ सीखा जितना न्यूयॉर्क के ली स्ट्रासबर्ग स्कूल की पढ़ाई के दौरान भी नहीं सीख सका था।
चौथे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में दुनिया भर से आए सिनेमा प्रेमियों से बातचीत करते हुए आमिर खान ने कहा कि वर्षों से उनकी इच्छा रहीं हैं कि तीनों खान (आमिर, शाहरुख और सलमान) किसी एक फिल्म में साथ-साथ काम करें। उन्होंने कहा कि पिछले महीने ही वे शाहरुख और सलमान से एक साथ मिले थे और वे भी चाहते हैं कि वे तीनों एक साथ काम करें। लेकिन ऐसी फिल्म के लिए जो कहानी उन्हें चाहिए वह अभी तक नहीं मिली है।
भारतीय मूल के कनाडाई फिल्मकार तरसेम सिंह की पंजाबी फिल्म ‘डियर जस्सी’ को सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार ‘सिल्वर यूसर अवार्ड’ प्रदान किया गया है। तरसेम सिंह ने विलियम शेक्सपीयर के मशहूर नाटक ‘रोमियो जूलियट’ की मूल प्रेरणा से पंजाब में एक सच्ची दुखांत प्रेम कहानी रची है।
किरण राव ने ‘धोबी घाट’ (2011) के 12 साल बाद कोई फिल्म बनाई है। ‘लापता लेडीज’ दो ग्रामीण औरतों की कहानी है जो शादी के बाद लाल जोड़े में अपने-अपने पति के साथ ससुराल आते हुए ट्रेन में लंबे घूंघट के कारण खो जाती हैं। किरण राव की यह फिल्म भारतीय समाज में औरतों की दयनीय हालत पर सतत टिप्पणी करती है।