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लोक कलाओं की दुर्दशा: ‘द लिपस्टिक बॉय’ के बहाने

उदय शंकर,केलुचरण महापात्र, राम गोपाल,बिरजू महाराज,गोपी कृष्ण जैसे नामचीन कलाकारों ने लंबे संघर्ष के बाद कला जगत में अपनी प्रतिष्ठाजनक जगह बना ली। पर पुरुष नर्तक होने के कारण उन्हें जिस तरह समाज, जाति और परिवार की उपेक्षा,तिरस्कार और प्रताड़ना सहनी पड़ी उस के बारे में मुंह पर ताला ही लगा कर रखा गया। इन्हें जातिगत और लिंग आधारित अपमान दोनों झेलने पड़े।

मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ वाया गौरी

हिंदी सिनेमा में रियलिज़्म की नींव भले ही ‘नीचा नगर’ के ज़रिए चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1946 में ही रख दी थी, मगर समांतर, समानांतर, कला फिल्मों या सार्थक फिल्मों के...