The Bow: मुक्त होने और मुक्त करने का सम्मोहन
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![Poonam Arora](https://ndff.in/wp-content/uploads/2022/06/WhatsApp-Image-2022-05-09-at-5.25.55-PM-edited-199x300.jpeg)
विश्व के सिनेमाई सौंदर्य के गुह्य रस्म-रिवाज़ सीरीज़ की तीसरी कड़ी के तौर पर प्रस्तुत है कोरियाई फिल्मकार किम की-डुक की फिल्म द बो की समीक्षा। सुख्यात युवा साहित्यकार पूनम अरोड़ा की लिखी ये समीक्षाएं उनके बेहद संवेदनशील दृष्टिकोण और भावपूर्ण अंतर्वस्तु के लिहाज़ से तो पठनीय हैं ही, इस सीरीज़ के लिए विश्वसिनेमा के भंडार से फिल्मों के चयन को लेकर उनकी दृष्टि भी बेहद सूक्ष्मपरक रही है। पूनम अरोड़ा की कविताओं, कहानियों और आलेखों का प्रकाशन देश की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में हो चुका है। इनका एक कविता-संग्रह ‘कामनाहीन पत्ता’, एक उपन्यास ‘नीला आईना’ प्रकाशित हो चुका है। एक किताब ‘बारिश के आने से पहले’ का सम्पादन कर चुकी हैं। कुछ कविताओं का अंग्रेज़ी, नेपाली और मराठी भाषा में अनुवाद हो चुका है। वो हरियाणा साहित्य अकादमी के युवा लेखन पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। प्रस्तुत है वर्ल्ड सिनेमा की कुछ चुनिंदा फिल्मों को लेकर ‘विश्व के सिनेमाई सौंदर्य के गुह्य रस्म-रिवाज’ के नाम से प्रकाशित होने वाली उनकी सीरीज़ का तीसरा भाग। इसमें साउथ कोरिया के विख्यात फिल्म निर्देशक किम की-डुक की 2005 की फिल्म ‘द बो’ की समीक्षा। किम की-डुक की फिल्में अपनी बेहद विशिष्ट कथावस्तु, ट्रीटमेंट और अंत के लिए दुनियाभर में सराही जाती रही है। कोविड के चलते 28 अक्टूबर 2020 को महज़ 59 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया था।
मुक्त होने और मुक्त करने का सम्मोहन है हथेली पर पिघले मोम की तरह…
अमूर्त सत्य को मूर्त सम्मोहन में बदल देने वाले दार्शनिक, काल्पनिक, यथार्थवादी कलाकार का नाम है किम की-डुक। एक ख़ास तरह की चुभती हुई शैली है इनके सिनेमा की।
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दक्षिण कोरियाई फिल्म निर्देशक किम की-डुक की प्रशंसक होने से पहले मैं इनकी घोर आलोचक थी क्योंकि इनके सिनेमा को सहन करने की क्षमता मुझमें न के बराबर थी लेकिन यह क्षमता विस्तारित होते ‘Spring, Summer, Fall, Winter and Spring‘ पर आने तक अपने चरम पर पहुँच गई। यह अब तक की मेरी देखी एक महानतम सिनेमाई कृति है जहाँ जीवन, मृत्यु, हमारे फैसलों, कृत्यों प्यार, पाप और पुण्य को एक घटित चक्र में किम ने अपनी दार्शनिक विद्वत्ता के साथ दिखाया है।
इसके बहुत करीब मैं ‘The Bow‘ को पाती हूँ।किम की यह फ़िल्म एक हिप्नोटिक करिस्मा को कैरी करती है। किम की हर फिल्म में जीवन दर्शन कई बार विरोधाभास में भी दिखाई देता है जैसे जहाँ अँधेरा है वहीं पर प्रार्थना भी है। हम इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि यह एक ख़ास तरह की काल्पनिक यात्रा होती है जिसमें किम के चरित्रों के यथार्थवादी और आशावादी दृष्टिकोण अक्सर छलनी हुए होते हैं। वे एक धुरी पर खड़े होते हैं जहां अतीत और वर्तमान की छलनायें जीवन के समानांतर दिखाई देती हैं। जहाँ पाप है तो प्रायश्चित की सिरहन भी है।
कहानी कुछ इस तरह है..
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पचपन-साठ वर्ष का एक वृद्ध बोट पर रहता है।वह फिशिंग बिज़नस में है। लोग उसकी बोट पर आते हैं,मछलियाँ पकड़ते हैं और चले जाते हैं। उसके साथ एक खूबसूरत कम उम्र लड़की बोट पर रहती है। वह तब से उसके साथ रह रही है जब वो सात साल की थी।अपने माँ-बाप से बिछड़ी। वह वृद्ध एक प्रोटेक्टर की तरह उसे बाहरी विषैले वातावरण (बुरी नज़रों और लोगों) से बचा कर रखता है। वह सालों से उस लड़की की देखभाल करता आ रहा है लेकिन उसके हृदय में प्रेम की सुलगती आंच भी धीमे-धीमे जल रही है। सत्रह साल की होने पर वह उस खूबसूरत लड़की से विवाह करना चाहता है और उस ख़ास दिन के लिए वह उसके लिए पोशाकें, जूते, बालों में लगाने वाले पिन आदि सब जोड़ता रहता है। लड़की बाहरी दुनियादारी से बेखबर है। न वह यह जान पाती है कि वृद्ध के हृदय में उसके प्रति कैसा प्रेम है लेकिन उन दोनों की केमेस्ट्री फार्च्यून टेलिंग के समय बहुत रूहानी होती है जैसे एक अन्तर्दृष्टिय कौशल दोनों के मध्य उस झूले की तरह अपना बैलेंस बनाये है जिस पर बैठ कर वो लड़की उस वृद्ध के आस्थावान तीरों का सामना करती है।
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कहानी में मोड़ तब आता है जब एक नौजवान लड़का बोट पर आता है।पहली बार लड़की के हृदय में आकर्षण जन्म लेता है।इसी के साथ उस वृद्ध में भी पहली बार ईर्ष्या और क्रोध उसके तराशे प्रेम पर उगने लगता है। लड़के के लौट जाने पर लड़की उस नवयुवक की याद में डूबी वृद्ध से दूरी बनाने लगती है। और एक दिन खुद को वृद्ध के बंधन से मुक्त करते हुए वह उसे छोड़ नवयुवक के साथ जा रही होती है कि वह वृद्ध आत्महत्या करने का प्रयास करता है।लड़की लौट आती है। एक ठहरी मुस्कराहट जो उसके चेहरे पर सदा रहती है, उसी ठहरी मुस्कराहट के साथ वह वृद्ध से विवाह भी करती है।
अब क्योंकि यह किम की-डुक की फ़िल्म है तो कोई साधारण अंत तो इसका हो ही नहीं सकता। एक बार उस वृद्ध से घृणा होती है जब वह अपनी इच्छा पूरी न होने पर आत्महत्या करने का प्रयास करता है लेकिन अंत में वह घृणा हमें भी मुक्त कर देती है जैसे उस वृद्ध को अपने अहम् से।
प्रेम में अलग-अलग तरह के अहम् होते हैं और अलग-अलग तरह की मुक्ति भी।
उस देह सहलाती बोट पर पारदर्शी, सफ़ेद अनोखा प्रथम सम्भोग चित्त का नही बल्कि ‘आत्मन’ का होता है। मुक्त होने और मुक्त करने का यह सम्मोहन हथेली पर पिघले मोम की तरह देर तक जमता नहीं।
यही है ‘द बो’
‘रेज़ द रेड लैंटर्न: चीनी फिल्म निर्देशक झांग इमोउ की 1991 की फिल्म